गर्मी-सूखा-कीट सब पर भारी: जानिए कौन सी हैं जलवायु-प्रतिरोधी चारा किस्में

Gaon Connection | Jul 30, 2025, 18:46 IST
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, (IGFRI) ने किसानों और पशुपालकों के लिए ऐसी चारा किस्में विकसित की हैं, जो अत्यधिक गर्मी, सूखा और कीटों जैसी जलवायु चुनौतियों को भी झेल सकती हैं। ये किस्में अलग-अलग राज्यों और मौसमों के लिए उपयुक्त हैं और टिकाऊ पशुपालन की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही हैं
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भारत में पशुपालन न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है। लेकिन जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा और तापमान में बढ़ोतरी के कारण पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता पर बड़ा असर पड़ा है। इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (IGFRI) ने कुछ नई जलवायु प्रतिरोधी चारा किस्में विकसित की हैं, जो जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के तनावों को झेलने में सक्षम हैं। ये किस्में न केवल उत्पादन में बेहतर हैं, बल्कि विभिन्न मौसमीय परिस्थितियों के अनुरूप भी ढली हुई हैं।

आइए, इन नई किस्मों पर विस्तार से नज़र डालते हैं:

1. चारा बाजरा (खरीफ, एकल कटाई)

  • किस्म: 16ADV0111
  • विशेषताएँ: यह किस्म जैविक (कीट, रोग) और अजैविक (सूखा, गर्मी) दोनों तनावों के प्रति सहनशील है। यह खरीफ मौसम में एक बार में अच्छा उत्पादन देती है।
  • अनुशंसित राज्य: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड के मैदानी इलाके, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक।

2. चारा बाजरा (ग्रीष्मकालीन, बहु-कटाई)

  • किस्म: ADV0061
  • विशेषताएँ: यह किस्म बहु-कटाई योग्य है और जैविक-अजैविक तनावों के प्रति काफी सहनशील है। गर्मियों में चारे की निरंतर आपूर्ति के लिए उपयोगी।
  • अनुशंसित राज्य: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात।
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3. ल्यूसर्न (अल्फाल्फा)

  • किस्म: आलमदार 51
  • विशेषताएँ: यह किस्म 48-50ºC तक के उच्च तापमान में भी बढ़ सकती है। सूखा और गर्म जलवायु इसके लिए कोई बाधा नहीं है।
  • अनुशंसित राज्य: केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक।

4. सेटेरिया घास

  • किस्म: S-25
  • विशेषताएँ: झुलसा, पाला और सूखा—तीनों तरह की विपरीत परिस्थितियों में भी यह घास अच्छा उत्पादन देती है।
  • अनुशंसित राज्य: पंजाब और राजस्थान।

5. सेवन घास (Lasiurus sindicus)

  • किस्म: RLSB-11-50
  • विशेषताएँ: बीज से बीज तक केवल 110 दिनों में पकने वाली यह घास अत्यधिक सूखा सहन कर सकती है। यह विशेष रूप से रेगिस्तानी और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
  • अनुशंसित राज्य: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़।

क्यों हैं ये किस्में महत्वपूर्ण?

जलवायु लचीलापन: बढ़ते तापमान और अनिश्चित वर्षा के दौर में ये किस्में टिकाऊ पशुपालन को संभव बनाती हैं।

  • उच्च उत्पादकता: कम जल और सीमित संसाधनों में भी ये अधिक चारा उत्पादन देती हैं।
  • कम लागत, अधिक लाभ: सूखा-सहिष्णुता और कीट-प्रतिरोध के कारण किसानों को रासायनिक इनपुट्स पर खर्च कम करना पड़ता है।
  • बहु-क्षेत्रीय उपयोगिता: इन किस्मों को देश के लगभग हर भौगोलिक क्षेत्र में उगाया जा सकता है—मैदानी, पठारी और दक्षिणी राज्य सभी में।
इन चारा किस्मों का विकास न केवल भारतीय पशुपालन को जलवायु संकट के दौर में स्थिरता देगा, बल्कि इससे किसानों को चारे की कमी से निपटने में भी मदद मिलेगी। ईसीएआर-आईजीएफआरआई की यह पहल जलवायु-लचीले कृषि मॉडल की दिशा में एक सशक्त कदम है।

[स्रोत: भारतीय घास अनुसंधान संस्थान, झांसी | ICAR-IGFRI]

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