अब नहीं जलाना पड़ेगा फसल अवशेष, बीस रुपए में बना सकते हैं जैविक खाद
Divendra Singh | Mar 29, 2018, 11:50 IST
फसल अवशेष को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्व नष्ट हो जाते हैं। डी कम्पोजर के माध्यम से इन अवशेषों को सड़ाकर खाद बनाने से किसानों को बहुत फायदा होगा।
लखनऊ। खरीफ की फसल की कटाई के बाद अगली फसल की जल्दी बुवाई के लिए किसान धान की पराली को खेत में ही जला देते हैं। धान की कटाई में हार्वेस्टर के इस्तेमाल होने से सबसे बड़ी समस्या फसल अवशेष प्रबंधन की होती है, किसान फसल अवशेष जला देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है, ऐसे में वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग कर किसान फसल अवशेष से छुटकारा पा सकते हैं, साथ ही बढ़िया जैविक खाद भी मिल जाती है।
वेस्ट डीकम्पोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद ने विकसित किया है। वेस्ट डीकम्पोजर को गाय के गोबर से खोजा गया है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु हैं, जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिससे जहां ये डाले जाते हैं एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ाकर खाद बना देती है, जमीन में डालते हैं, मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की संख्या को नियंत्रित करता है
फसल की कटाई से पहले 200 लीटर वेस्ट डी कम्पोसर सॉल्यूशन को प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें, इसके बाद फसल कटाई के बाद रोटावेटर की सहायता से फसल को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 20-25 दिनों के बाद फसल अवशेष बिना किसी समस्या के खेत में मिल जाता है।
इसके अलावा फसल कटाई के बाद सिंचाई में पानी के साथ वेस्ट डीकम्पोस्टर साल्यूशन को खेत में मिला देना चाहिए, इसके बाद सेरोटावेटर की सहायता से फसल को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 20-25 दिनों के बाद फसल अवशेष बिना किसी समस्या के खेत में मिल जाता है।
वेस्ट डीकंपोजर राष्ट्रीय जैवि खेती केंद्र के सभी रीजनल सेंटर पर उपलब्ध है। यह गाजियाबाद, बंगलुरु, भुवनेश्वर, पंचकूला, इंम्फाल, जबलपुर, नागरपुर और पटना के रीजनल सेंटर से प्राप्त किया जा सकता है या फिर Hapur Road, Near CBI Academy, Sector 19, Kamla Nehru Nagar, Ghaziabad, Uttar Pradesh 201002, Phone: 0120 276 4906 इस पते पर भी पैसे मनी आर्डर करके मंगा सकते हैं।
ये भी पढ़ें- उत्तराखंड के इस ब्लॉक के किसान करते हैं जैविक खेती, कभी भी नहीं इस्तेमाल किया रसायनिक उर्वरक
पिछले कुछ वर्षों में फसल कटाई के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे फसल के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं, जिसे किसान बाद में जला देते हैं। इन अवशेषों को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्व नष्ट हो जाते हैं। डी कम्पोजर के माध्यम से इन अवशेषों को सड़ाकर खाद बनाने से किसानों को बहुत फायदा होगा।
वेस्ट डीकम्पोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद ने विकसित किया है। वेस्ट डीकम्पोजर को गाय के गोबर से खोजा गया है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु हैं, जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिससे जहां ये डाले जाते हैं एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ाकर खाद बना देती है, जमीन में डालते हैं, मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की संख्या को नियंत्रित करता है
"देश के करीब 20 लाख किसानों को इसका फायदा मिल चुका है। जल्द ही ये संख्या 20 करोड़ तक पहुंचानी हैं। वेस्ट वेस्ट डीकम्पोजर की खास बात है इसकी एक शीशी ही पूरे गांव के किसानों की समस्याओं का समाधान कर सकती है। इससे न सिर्फ तेजी से खाद बनती है, जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, बल्कि कई मिट्टी जमीन बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।" डॉ.कृष्ण चंद्र गांव कनेक्शन को बताते हैं। डॉ. कृष्ण चंद्र कृषि कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के जैविक खेती परियोजना को लेकर शुरू किए गए विभाग राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, गाजियाबाद के निदेशक और वेस्ट डीकम्पोजर की खोज करने वाले प्रधान वैज्ञानिक हैं।
ऐसे करें इस्तेमाल
इसके अलावा फसल कटाई के बाद सिंचाई में पानी के साथ वेस्ट डीकम्पोस्टर साल्यूशन को खेत में मिला देना चाहिए, इसके बाद सेरोटावेटर की सहायता से फसल को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 20-25 दिनों के बाद फसल अवशेष बिना किसी समस्या के खेत में मिल जाता है।
ये भी पढ़ें- गोबर खेत से गायब है कैसे होगी जैविक खेती
यह जैविक खाद एक छोटी शीशी में होता है। 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ डालकर इस विशेष जैविक खाद को उसमें मिला दिया जाता है। इस 200 लीटर घोल में से एक बाल्टी घोल को फिर 200 लीटर पानी में मिला लें। इस तरह यह घोल बनाते रहें। खेत की सिंचाई करते समय पानी में इस घोल को डालते रहें। ड्रिप सिंचाई के साथ इस घोल का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे यह पूरे खेत में यह फैल जाएगा।