इस देसी तरीके ने दिलाया फसल को नीलगाय और कीट-पतंगों से छुटकारा
Neetu Singh | Feb 10, 2018, 11:57 IST
“खेत में हर दिन नीलगाय आने से फसलों का बहुत नुकसान होता था, रोशनी को देखकर नीलगाय खेत में नहीं आती है, इसलिए मैंने ढिबरी (दीपक) का एक देसी तरीका अपने खेत में लगाया। इसकी रोशनी से नीलगाय और कीट-पतंग फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।” ये कहना है लखीमपुर के किसान गुड्डू कुमार (41 वर्ष) का।
गुड्डू द्वारा अपने खेत में रात के समय ढिबरी जलाने वाला तरीका इसलिए कारगार है क्योंकि किसानों का मानना है कि अगर रात के समय खेतों में रोशनी रहती हैं तो नीलगाय खेत में इस डर से नहीं आती है क्योंकि उसे लगता है खेत में कोई बैठा है। गुड्डू उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर मितौली ब्लॉक के मैनहन गाँव के रहने वाले हैं।
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gaoconnection गुड्डू गाँव कनेक्शन को फोन पर अपने देशी तरीके का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “ खेत में कीटपतंगों को रोकने के लिए बाजार से दवा डाल-डालकर परेशान हो गया था। दवा बहुत महंगी मिलती थी, जो खेत के उपजाऊंपन को तो कम कर ही रही थी, साथ ही इसे खाकर हम बीमार भी पड़ रहे थे। नीलगाय तो जिस खेत में घुस जाती वो पूरी फसल को ही बर्बाद करके निकलती।”
वो आगे बताते हैं, “कुछ साल पहले मैंने अपने धान के खेत में एक टीन के डिब्बे में एक गोला करके उसके अन्दर ढिबरी जलाकर, बांस के एक डंडे में लगाकर खेत के एक कोने पर लगा दिया। इसकी रोशनी से धान की पूरी फसल में न तो नीलगाय आयी और न ही कीट-पतंग लगें। इस साल भी मैंने गन्ने के खेत में इस यंत्र को लगाया था, अब गन्ना लम्बा हो गया है इसलिए हटा दिया है।” गुड्डू की तरह अगर कोई भी किसान इस यंत्र को अपने खेत में लगाते हैं तो वो फसल के नुकसान से तो बचेंगे ही साथ ही कीटनाशक के इस्तेमाल से भी बच जायेंगे। जिससे उन्हें पैसे की बचत, खेत की मिट्टी और किसान की सेहत दोनों बेहतर होगी।
वन्य जीव विशेषज्ञ कृष्ण कुमार मिश्र नीलगाय को भगाने के इस देशी तरीके के बारे में उनकी राय है, “बहुत से कीट जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, इस यंत्र को लगाने से वो कीट फसल को नुकसान पहुंचाने की बजाए इस यंत्र की तरफ आकर्षित हो जाते हैं, या फिर जहाँ यह यंत्र लगा होता है उससे दूर भागते हैं। मिट्टी का तेल फेरोमोन की तरह काम करता है, इसलिए ढिबरी की रोशनी के अलावा इसके तेल की गंध से भी कीटों को आकर्षित या अनाकर्षित करती है।” वो आगे बताते हैं, “इस वजह से ज्यादातर कीट इस यंत्र के आसपास मंडराते हैं और ढिबरी की लौ में या तो मर जाते हैं या फिर इसी यंत्र के आसपास रहते हैं, जिस वजह से फसल को नुकसान नहीं पहुंचता है।”
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बारिश के मौसम में रात के अँधेरे में हमारे घरों में जहाँ रोशनी जल रही होती हैं, वहां कीट-पतंगों की भरमार होती है। पहले के बुजुर्ग थाली में पानी भरकर रख देते थे जिससे कीट प्रकाश की तरफ आकर्षित होते थे और उस पानी में गिर जाते थे। जिससे उनके पंख भीग जाते थे, और वह उड़ने में अक्षम हो जाते थे। ज्यादातर कीट पतंगे दीपक की लौ में जलकर मर भी जाते थे। इस तरह ग्रामीणों के भोजन में ये कीट पतंग नही गिरते थे। ये उनके द्वारा अपनाया गया देशी तरीका था जो बहुत ही कारगार था।