हर्बल घोल की गंध से खेतों के पास नहीं फटकेंगी नीलगाय , ये 10 तरीके भी आजमा सकते हैं किसान

Arvind Shukla | Feb 15, 2018, 11:05 IST
बुंदेलखंड
इन दिनों खेती करना छुट्टा जानवरों के चलते बहुत मुश्किल हो गया है। देखते ही देखते छुट्टा गाय और नीलगाय के झुंड़ पूरा का का पूरा खेत चर जाती हैं। तार लगवाना महंगा सौदा है, ऐसे में कुछ कृषि जानकारों ने ये 10 उपाय बताएं हैं..
उत्तर प्रदेश में बाराबंकी से लेकर बुंदेलखंड तक लगभग हर जिले के किसान नीलगाय के आतंक से परेशान हैं। हजारों रुपए की लागत और हड्डी तोड़ मेहनत से तैयार होती फसल को छुट्टा जानवर बर्बाद कर देते हैं, किसानों को सबसे अधिक नुकसान नीलगाय करती हैं। कई किसान रात-रात भर जागकर खेतों की रखवाली कर रहे हैं। इन छुट्टा जानवरों का असर खेती पर पड़ रहा है।

नीलगाय के आतंक से परेशान किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने कई घरेलू और परंपरागत नुस्ख़े बताए हैं जिससे काफी कम कीमत में किसानों को ऐसे पशुओं से आजादी मिल सकती है। गोमूत्र, मट्ठा और लालमिर्च समेत कई घरेलू चीजों से तैयार हर्बल घोल इस दिशा में कारगर साबित हो रहा है। हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर 20-30 दिन तक खेत के आसपास नहीं फटकते हैं। कृषि के जानकार, वैज्ञानिक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित किसान कॉल सेंटर (1800-180-1551) के किसान सलाहकार किसानों को इऩ देसी नुस्ख़ों को आजमाने की सलाह दे रहे हैं।

हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर 20-30 दिन तक खेत के आसपास नहीं फटकते हैं। कृषि के जानकार, वैज्ञानिक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित किसान कॉल सेंटर (1800-180-1551) के किसान सलाहकार किसानों को इऩ देसी नुस्ख़ों को आजमाने की सलाह दे रहे हैं।
कानपुर में स्थित यूपी और उत्तराखंड से किसान कॉल सेंटर पर इऩ दिनों रोजाना करीब 16 हजार कॉल आती हैं, इऩमें से ज्यादातर लोग नीलगाय और गायों से बचने के उपाय पूछ रहे हैं। कॉल सेंटर में कार्यरत किसान सहायक पंकज कुमार यादव बताते हैं, "बुंदेलखंड से लेकर लखीमपुर तक से आने वाली हर दूसरी कॉल में लोग इनसे बचने की सलाह मांग रहे हैं। हमारी शोध टीम ने कई उपाय तैयार किए हैं, जिसमें तारबंदी के अलावा अलावा हर्बल घोल तक शामिल हैं, ज्यादातर उपाय वो हैं जिसे किसान घर में बना सकें और लागत कम आए।" वो आगे बताते हैं, खुद नीलगाय के गोबर से तैयार घोल की गंध से ये (नीलगाय) दूर तक नहीं भटकती हैं।

छुट्टा गाय और नीलगायों पर भी असरदार हैं ये देसी नुस्खें। नीलगाय झुंड में रहती हैं तो जितना ये फसलों को खाकर नुकसान करती हैं उससे ज्यादा इनके पैरों से नुकसान पहुंचता है। सरसों और आलू के पौधे एक बार टूट गए तो निकलना मुश्किल हो जाता है। भारतीय गन्ना अऩुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक (कीट और फसल सुरक्षा) डॉ. कामता प्रसाद बताते हैं, परंपरागत तरीके किसानों को जरुर आज़माने चाहिए। हालांकि लंबे समय के लिए ये कारगर नहीं है क्योंकि ये (नीलगाय) बहुत चालाक जानवर हैं तो बाड़ लगवाना सबसे बेहतर रहता है।

नीलगाय रोकने के लिए इस तरह बनायें हर्बल घोल

  1. नीलगाय को खेतों की ओर आने से रोकने के लिए 4 लीटर मट्ठे में आधा किलो छिला हुआ लहसुन पीसकर मिलाकर इसमें 500 ग्राम बालू डालें। इस घोल को पांच दिन बाद छिड़काव करें। इसकी गंध से करीब 20 दिन तक नीलगाय खेतों में नहीं आएगी। इसे 15 लीटर पानी के साथ भी प्रयोग किया जा सकता है।
  2. बीस लीटर गोमूत्र, 5 किलोग्राम नीम की पत्ती, 2 किग्रा धतूरा, 2 किग्रा मदार की जड़, फल-फूल, 500 ग्राम तंबाकू की पत्ती, 250 ग्राम लहसुन, 150 लालमिर्च पाउडर को एक डिब्बे में भरकर वायुरोधी बनाकर धूप में 40 दिन के लिए रख दें। इसके बाद एकलीटर दवा 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने से महीना भर तक नीलगाय फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इससे फसल की कीटों से भी रक्षा होती है
  3. खेत के चारों ओर कंटीली तार, बांस की फंटियां या चमकीली बैंड से घेराबंदी करें।
  4. खेत की मेड़ों के किनारे पेड़ जैसे करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस, जिरेनियम, मेंथा, एलेमन ग्रास, सिट्रोनेला, पामारोजा का रोपण भी नीलगाय से सुरक्षा देंगे।
  5. खेत में आदमी के आकार का पुतला बनाकर खड़ा करने से रात में नीलगाय देखकर डर जाती हैं।
  6. नीलगाय के गोबर का घोल बनाकर मेड़ से एक मीटर अन्दर फसलों पर छिड़काव करने से अस्थाई रूप से फसलों की सुरक्षा की जा सकती है।
  7. एक लीटर पानी में एक ढक्कन फिनाइल के घोल के छिड़काव से फसलों को बचाया जा सकता है।
  8. गधों की लीद, पोल्ट्री का कचरा, गोमूत्र, सड़ी सब्जियों की पत्तियों का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय खेतों के पास नहीं फटकती।
  9. देशी जीवनाशी मिश्रण बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय दूर भागती हैं।
  10. कई जगह खेत में रात के वक्त मिट्टी के तेल की डिबरी जलाने से नीलगाय नहीं आती है।
बाराबंकी समेत कई जिलों के ग्रामीण छुट्टा गाय और साड़ों से परेशान।

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