चूहों से फसल को बचाने के लिए किसानों को दिया जाएगा प्रशिक्षण

Ashwani Nigam | Sep 16, 2017, 12:55 IST
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लखनऊ। धान की फसल लगाए चूहों की हर साल की तरह इस साल भी चूहों से कैसे निपटा जाए इसकी चिंता सता रही है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर की एक रिपोर्ट के अनुसार एक एकड‍़ धान की फसल में तीन से लेकर चार कुंतल धान का नुकसान चूहों की वजह से हो जाता है।

राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार खेत में खड़ी फसलों को 5 से लेकर 15 प्रतिशत तक की हानि चूहा पहुंचाते हैं। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की तरफ से खेती को बचाने के लिए अखिल भारतीय कृन्तक नियंत्रण अनुसंधान की समन्वित परियोजना चला रहा है, जिसमें चूहों से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

इस परियोजना से जुड़े कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर.एस. त्रिपाठी ने बताया '' शोध में पता चला है कि चूहे हर परिस्थिति में जिंदा रहते हैं। चूहों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने कृषि और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है, इसलिए इसके नियंत्रण के लिए व्यापक स्तर पर काम किया जा रहा है। ''

अखिल भारतीय कृन्तक नियंत्रण नेटवर्क परियोजन के अनुसार चूहों में कुछ विशेष प्रकार के जैविक गुण जाए जाते हैं जिसके कारण इनका नियंत्रण करने में मुश्किलें आ रही हैं। कृषि वैज्ञानिक आर‍.एस. त्रिपाठी ने बताया कि चूहों में छेनी यानि चीजल के आकार की एक जोड़ी आगे के कुतरने वाले दांत होते हैं, इन्हें इंसाइजर कहते हैं। यह दांत प्रतिदिन 0.4 मिलीमीटर की दर से बढ़ते रहते हैं यानि एक साल में 12 से लेकर 15 सेंटीमीटर बढ़ सकते हैं, इस कारण चूहे हमेशा इसकी घिसाई करते रहते हैं। अगर वह ऐसा नहीं करतें तो यह दांत बढ़कर चूहें के मस्तिष्क और मुंह को भेद सकते हैं।

कृन्तक नियंत्रण नेटवर्क से जुड़े शोध में यह जानकारी मिली है कि दांत न बढ़े इसलिए चूहे कठोर से कठोर वस्तुएं जैसे लकड़ी के दरवाजे, बिजली के तार काट डालते हैं। चूहे सबसे ज्यादा खड़ी फसलों को काटते हैं। चूहों में असीमित प्रजनन क्षमता होती है। एक जोड़ा चूहा एक वर्ष में 800 से लेकर 1200 की संख्या बढ़ा लेता है। चूहा 3 से लेकर 7 दिन तक बिना पानी और भोजन के रह लेता है। शोध में यह पता चला है कि मरूस्थलीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला जरबिल चूहा एक साल तक बिना पानी के जीवित रहा जाता है।

चूहों के नियंत्रण के लिए कृन्तक नियंत्रण नेटवर्क के जरिए किसानों को जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसमें यह बताया जा रहा है कि चूहे ज्यादातर खेतों की ऊंची-ऊंची मेड़ों पर बिल बनाकर रहते हैं। ऐसे में किसान यदि मेड़ों को छोटा कर दें तो चूहों का प्रकोप कुछ कम हो सकता है।

कृन्तक नियंत्रण नेटवर्क के जरिए किसानों को बताया जा रहा है कि चूहों की समस्या किसी एक खेत या किसान की समस्या नहीं है, इसलिए किसी एक किसान के जरिए इसका नियंत्रण सभव नहीं है। ऐसे में चूहों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए गांव के अधिक से अधिक किसान सामूहिक तौर पर चूहा नियंत्रण कार्यक्रम पर काम करें। गांव की सरकारी और सामुदायिक जमीन पर चूहा अधिक से अधिक बिल बनाकर अपनी जनसंख्या बढ़ाते हैं इसलिए इन जगहों पर सफाई का विशेष अभियान चलाया जाए। खरपतवार नियंत्रण से भी चूहों की संख्या में कमी की जा सकती क्योंकि जब खेत में फसल नहीं होती है तो चूहे इन खरपतवार को खाकर जिंदा रहते हैं।

चूहों की बढ़ती संख्या और उनसे मानव जाति को होने वाला नुकसान पूरे विश्व के लिए चिंता की बात हो गई है। ऑस्ट्रेलिया में 2003 में आयोजित दूसरे मूषक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने घोषणा की थी कि चूहे 70 प्रकार के विविध रोगों को फैला सकते हैं। वहां बताया गया कि चूहों के काटने से रेट बाइट फीवर होता है। इसी तरह यदि चूहे को मच्छर, मक्खी, खटमल आदि धोखे से भी काट लें, तो मानव को प्लेग जैसी बीमारी होती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक हर वर्ष लगभग दो करोड़ चूहों का नाश किया जाता है। इसके बाद भी चूहों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। किसानों के सबसे बड़े और जानी दुश्मन ये चूहे ही हैं। ये चूहे एक साल में इतने अधिक अनाज का नुकसान करते हैं कि उससे विश्व की आधी आबादी का पेट भरा जा सकता है। इससे अरबों रुपयों का नुकसान प्रतिवर्ष होता है। इसके बाद भी चूहों की आबादी घटाने में सफलता नहीं मिल रही है।



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