तूफानों के चलते हुई बारिश से बढ़ा नदियों का जलस्तर, रेत में खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान

Tejaswita Upadhyay | Jun 01, 2021, 14:22 IST
देश में नदियों के किनारों पर हर साल गर्मियों के महीनों में लाखों किसान सब्जियों और खीरा, तरबूज-खरबूजे की खेती करते हैं। लेकिन इस बार मई के महीने में हुई बारिश और नदियों का जलस्तर बढ़ने से इन किसानों को भारी नुकसान हुआ है।
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मऊ (उत्तर प्रदेश)। चक्रवाती तूफान "ताऊते" और "यास" गुजर चुका है लेकिन इसने अपने पीछे बर्बादी की मोटी लकीर खींच दी है। कोरोना महामारी के बीच चक्रवात का तटवर्ती इलाकों में जमकर कहर बरपा है। पिछले 15 दिनों में हुई कई बार की बारिश के चलते नदियों का जलस्तर मई में ही ऊपर आ गया था, जिससे नदियों के तट पर खेती करने वाले रेत किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है।

भारी बारिश की वजह से मऊ जिले के उत्तरी छोर पर बहती सरयू नदी का जल-स्तर इतना बढ़ गया है कि इसके किनारे रेत पर बोई गई सैकड़ों एकड़ गर्मियों की सब्जियां-फल परवल, तरोई, लौकी, तरबूज-खरबूजा, ककड़ी जैसी फसलों मई महीनों में ही डूब गई थीं। नदियों के तटों, रेतों और कछारों में खेती करने वाले किसानों को पूर्वांचल में रेत किसान के नाम से जाना जाता है, इन पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।

1 जून की सुबह उत्तर प्रदेश के मऊ, बाराबंकी, उन्नाव समेत कई जिलों में मूसलाधार बारिश हुई। जिसके चलते आने वाले दिनों में कई सरयू (घाघरा), गंगा समेत कई नदियों का जलस्तर बढ़ सकता है।

मऊ जिले में सरयू किनारे खेती करने वाली महिला किसान बसंती देवी (40 वर्ष) गांव-कनेक्शन को बताती हैं, "इस बार नदी ने रेता (ज्यादा सूखी जमीन) छोड़ा था, जिसकी वजह से मनमाफिक सब्जियों की बोआई की थी, हर रोज 2,000 रुपए की सब्जी निकल रही थी, लेकिन जबसे पानी बढ़ना शुरु हुआ काफी फसल डूब गई है।"

बसंती देवी मऊ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर दोहरीघाट कस्बे में रहती हैं, ये इलाका सरयू के किनारे हैं जहां बसंती देवी ने खीरा, काकड़ी, नैनवा, सरपूतिया, लौकी, करेली, तरबूज, खरबूज लगाए थे। अपना दर्द बयां करते हुए बसंती देवी के आंसू छलक आते हैं। वो अपने साड़ी के एक कोने से आंसू पोछते हुए कहती हैं, " अभी तक जो लागत लगाए थे वे भी नहीं निकले थे।"

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उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के दोहराघाट इलाके में घाघरा (सरयू) के बढ़े जलस्तर में डूबी सब्जियों की फसलें। फोटो- तेजस्विता उपाध्याय सरयू नदी का जलस्तर हर साल फरवरी-अप्रैल तक काफी घट जाता है जिससे नदी सिकुड़ जाती है और अपने तट पर रेत छोड़ जाती है। नदी के सिकुड़ने पर कुछ लोगों द्वारा रेतीली जमीन पर खेती की जाती है। ऐसा लगभग पूरे देश में होता है। क्योंकि ये जमीन किसी के नाम नहीं होती है इसलिए इस फसल की बर्बादी पर किसी तरह का मुआवजा भी नहीं मिलता है। ये खेती पूरी तरह किसान अपने जोखिम पर करते हैं।

इस साल चक्रवात की वजह से असमय नदी का जल-स्तर मई के दूसरे पखवाड़े में ही चढ़ने लगा था और जून की शुरुआत में काफी ऊपर आ गया है। मऊ जिले में दोहरीघाट से लेकर सूरजपुर तक रेत के किसानों द्वारा उगाई गई हजारों एकड़ की सब्जी की फसलें डूब गई।

दोहरीघाट के ही एक और किसान चिरकुट साहनी (45 वर्ष) बताते हैं, "हर साल 15 जून के बाद घाघरा का जलस्तर बढ़ता है लेकिन इस बार तूफान (ताऊते) के बीच हुई भीषण बारिश से हमारी हरी सब्जी की खेती बर्बाद हो गई और जो बची थी वह सरयू का जलस्तर बढ़ने से नदी के पानी में डूब कर बर्बाद हो गई।"

आगे साहनी बताते हैं, "एक एकड़ जमीन पर बुआई की थी जिसमें एक लाख रुपए की फसल तैयार होनी थी पर अब फसलें डूबने से चव्वनी भी आफत हो गई हैं।"

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एमपी में सतना जिले के बकिया बराज डैम के कछार में करीब 1 हजार एकड़ में तरबूज और खरबूजे की फसल होती है तो बारिश के चलते बर्बाद हो गई थी। मऊ के सिंचाई विभाग के अधिकारी अभियंता (एक्सियन) वीरेंद्र पासवान गांव कनेक्शन से बातचीत में कहते हैं, "यास और ताऊते तूफान का असर पूर्वांचल में भी देखने को मिला है। चारों तरफ हो रही भारी बारिश से नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा है। कुछ दिनों बाद ही इसके घटने की भी संभावना है।"

किसानों के लिए समस्या ये भी है कि मौसम विभाग ने आने वाले एक दो दिन में भी बारिश का पूर्वानुमान जताया है।

मौसम विज्ञान विभाग,पुणे के एग्रोमेट निदेशक डॉ. एन चट्टोपाध्याय बताते हैं, "पश्चिमी विक्षोभ के कारण अभी अलग-अगल राज्यों में बारिश हो रही है, अभी मानसून नहीं आया है यह प्री मानसून की बारिश है। अभी एक दो दिनों तक ऐसा ही मौसम रहेगा।"

उत्तर प्रदेश में मौसम विभाग के निदेशक डॉ. जेपी गुप्ता बताते हैं, "पश्चिमी विक्षोभ के कारण इस समय बारिश हो रही है, अभी मानसून आने में देरी है, लेकिन अगले दो-दिनों तक छिटपुट बारिश होती रहेगी।"

चिरकुट साहनी आगे कहते हैं, "लॉकडाउन पहले से ही हमारे पेट पर लात मार रहा है। राज्य सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक जितने समय के लिए बाजार खुलता है उतनी देर में हम अपनी फसल नहीं बेच पाते हैं। उस पर से अब तूफान ने पूरी कमर तोड़ दी है।"

चक्रवाती तूफानों के चलते हुई बारिश से नुकसान सिर्फ यूपी के ही किसानों का नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश में भी नदियों के किनारे खेती करने वाले किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं। तूफानों के चलते हुई बारिश से बढ़ा नदियों का जलस्तर, रेत में खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान हुआ है।

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मध्य प्रदेश का बकिया डैम इलाका, जहां किसानों के इस साल भारी नुकसान हुआ। फोटो- सचिन तुलसा त्रिपाठी मध्य प्रदेश के सतना जिले में बकिया डैम के आसपास करीब एक किलोमीटर की दायरे में 10 से गांवों के करीब 300 किसान खेती करते हैं। जिनकी तरबूज और खरबूजे की फसल बर्बाद हो गई थी। 17 से लेकर 19 मई तक चक्रवाती तूफान ताउते (तौकाते) के चलते गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई इलाकों में भारी बारिश हुई थी तो यूपी और एमपी में भी काफी बारिश हुई थी जिसका असर नदियों के जलस्तर में नजर आया था।

सतना जिले में रामपुर बघेलान ब्लॉक के गांव बकिया बैलो के किसान कुलपति सिंह (35वर्ष) बताते हैं, " 4-5 एकड़ में खरबूजा की करते हैं जिससे 2 से 3 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है लेकिन पहले कोरोना के चलते ठीक नहीं रहा। फिर बारिश के चलते 50 फीसदी फसल बर्बाद हो गई।" कुलपति के मुताबिक उनके जैसे सैकड़ों किसानों की कमाई का मुख्य जरिया गर्मियों की ये खेती होती है। कुलपति ने पिछले साल 8 लाख रुपए का एक ट्रैक्टर लिया था, जिसकी 70 हजार रुपए की छह महीने की किस्त आती है। कुलपति खरबूजा बेचकर इसे देने वाले थे लेकिन अब नुकसान हो गया।

वैसे तो मॉनसून के दौरान भारत के कई राज्यों में नदियां तबाही मचाती हैं, किनारे रहने वालों का नुकसान होता है। गंगा, कोसी, यमुना, राप्ती, गंडक, ब्रह्मपुत्र और घाघरा (सरयू) जैसी नदियां हर साल उत्तर और पूर्व भारत के लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। वहीं नदि महानदी, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियां दक्षिण भारत में तबाही मचाती हैं।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के बाढ़ से हर साल औसतन 5000 करोड़ रूपए की संपत्ति का नुकसान होता है। वहीं लगभग 1.680 करोड़ रूपए की फसलें हर साल नष्ट होती हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिले में बकिया डैम के आसपास करीब एक किलोमीटर के दायरे में 10 से गांवों के सैकड़ों किसान खेती करते हैं। जिनकी तरबूज और खरबूजे की फसल बर्बाद हो गई थी।

वैसे तो मॉनसून के दौरान भारत के कई राज्यों में नदियां तबाही मचाती हैं, किनारे रहने वालों का नुकसान होता है। गंगा, कोसी, यमुना, राप्ती, गंडक, ब्रह्मपुत्र और घाघरा (सरयू) जैसी नदियां हर साल उत्तर और पूर्व भारत के लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। वहीं नदि महानदी, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियां दक्षिण भारत में तबाही मचाती हैं।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के बाढ़ से हर साल औसतन 5000 करोड़ रूपए की संपत्ति का नुकसान होता है। वहीं लगभग 1.680 करोड़ रूपए की फसलें हर साल नष्ट होती हैं।

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