कम पानी में धान की खेती करने के लिए करें एरोबिक विधि से सीधी बुवाई
Divendra Singh | Jun 26, 2021, 11:08 IST
धान की खेती करने वाले किसानों का सबसे अधिक खर्च सिंचाई में लगता है, ऐसे में एरोबिक विधि से धान की खेती करने से नर्सरी और रोपाई के समय लगने वाले पानी की बचत हो जाती है।
धान की खेती में सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है, लेकिन धान की दूसरी कई ऐसी विधिया हैं, जिनसे खेती करने पर पानी भी कम लगता है और उत्पादन भी मिलता है।
धान की खेती की ऐसी ही एरोबिक विधि है, जिसमें न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुवाई करने के लिए बीज को एक लाइन में बोया जाता है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, "देश के एक बड़े भाग में धान की खेती होती है, जहां पर सिंचाई का साधन नहीं वहां पर किसान धान की अच्छी खेती कर सकते हैं। कई विधियां हैं जिनसे धान की खेती करते हैं।"
वो आगे कहते हैं, "किसानों के बीज धान की एरोबिक विधि भी काफी प्रचलित हो रही है, इस विधि से बुवाई करने में खेत भी तैयार नहीं करना होता है और पलेवा भी नहीं करना होता है। इसमें दूसरी विधियों के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। क्योंकि दूसरी विधि में पहले तो नर्सरी में ज्यादा पानी लगता है उसके बाद जब नर्सरी तैयार हो जाती है तो रोपाई के समय भी पानी भरना पड़ता है, जबकि इस विधि में कम पानी लगता है।"
धान की सीधी बुवाई की एरोबिक विधि। फोटो: आईआरआरआई एरोबिक धान लगाने के लिए किसान को खेत तैयार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। किसान को खेत में पानी भरने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि रोपाई के समय सबसे ज्यादा पानी लगता है जो इस विधि में बच जाता है। एक एकड़ में धान की बुवाई के लिए 6 किलो बीज की जरूरत होती है। इसे सूखी जमीन पर भी लगाया जा सकता है। यह खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त माना जाता है। एरोबिक धान की फसल को 115 से 120 दिन के अंदर उत्पादन किया जा सकता है।
एरोबिक विधि से खेती करने वाले किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस विधि से बुवाई के लिए सूखा बर्दाश्त करने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए। इस विधि से बुवाई करने से पहले गर्मियों में गेहूं की कटाई के बाद जुताई कर देनी चाहिए, इससे बारिश का पानी खेत को अच्छी तरह से मिल जाता है।
अगर धान की खेती की कर रहे हैं तो यह भी ध्यान दें कि आपके यहां बारिश कैसी हो रही है। अगर 15 दिन तक बारिश नहीं होती है तो सिंचाई कर देनी चाहिए, जैसे कि गेहूं में सिंचाई करते हैं, उसी तरह से सिंचाई करनी चाहिए।
बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए जिस तरह से गेहूं के खेत में मेड़ बनाकर छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देते हैं, इसी तरह से धान के खेत में भी छोटे-छोटे मेड़ बनाकर अलग-अलग हिस्सों में बांट देना चाहिए। इससे बारिश होती है तो पानी खेत में रहता है।
इसमें खरपतवार नाशक का प्रयोग तभी कर जब खेत में पर्याप्त नमी रहे। खरपतवार नाशी के छिड़काव से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
धान के साथ अगर उड़द या मूंग की फसल भी बो देते हैं तो खरपतवार नहीं लगते हैं। इस विधि से बुवाई के लिए हमेशा उन्नत किस्मों का चुनाव करें। अगर ऊंचाई पर खेत है तो जल्दी पकने वाली किस्मों का चुनाव करें अगर निचली खेत हैं जहां पर बारिश का पानी इकट्ठा होता है तो वहां पर मध्यम किस्में का ही चयन करें।
धान की बुवाई करते समय कोशिश करनी चाहिए कि सीडड्रिल या जीरो टिलेज मशीन से बुवाई करें, क्योंकि इसमें एक लाइन में बुवाई होती है, जिससे निराई करने में आसानी होती है। लेकिन अगर ऐसी सुविधा नहीं है तो छिटकवा विधि से बुवाई करें।
अगर मई में बुवाई करते हैं तो 12 किलो प्रति एकड़ बीज लगता है और वही अगर जून-जुलाई में करते हैं तो बीज और कम 10 किलो के करीब ही लगता है। ज्यादा बीज बोने से पौधे कमजोर हो जाते हैं।
धान की खेती की ऐसी ही एरोबिक विधि है, जिसमें न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुवाई करने के लिए बीज को एक लाइन में बोया जाता है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, "देश के एक बड़े भाग में धान की खेती होती है, जहां पर सिंचाई का साधन नहीं वहां पर किसान धान की अच्छी खेती कर सकते हैं। कई विधियां हैं जिनसे धान की खेती करते हैं।"
वो आगे कहते हैं, "किसानों के बीज धान की एरोबिक विधि भी काफी प्रचलित हो रही है, इस विधि से बुवाई करने में खेत भी तैयार नहीं करना होता है और पलेवा भी नहीं करना होता है। इसमें दूसरी विधियों के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। क्योंकि दूसरी विधि में पहले तो नर्सरी में ज्यादा पानी लगता है उसके बाद जब नर्सरी तैयार हो जाती है तो रोपाई के समय भी पानी भरना पड़ता है, जबकि इस विधि में कम पानी लगता है।"
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एरोबिक विधि से खेती करने वाले किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस विधि से बुवाई के लिए सूखा बर्दाश्त करने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए। इस विधि से बुवाई करने से पहले गर्मियों में गेहूं की कटाई के बाद जुताई कर देनी चाहिए, इससे बारिश का पानी खेत को अच्छी तरह से मिल जाता है।
अगर धान की खेती की कर रहे हैं तो यह भी ध्यान दें कि आपके यहां बारिश कैसी हो रही है। अगर 15 दिन तक बारिश नहीं होती है तो सिंचाई कर देनी चाहिए, जैसे कि गेहूं में सिंचाई करते हैं, उसी तरह से सिंचाई करनी चाहिए।
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बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए जिस तरह से गेहूं के खेत में मेड़ बनाकर छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देते हैं, इसी तरह से धान के खेत में भी छोटे-छोटे मेड़ बनाकर अलग-अलग हिस्सों में बांट देना चाहिए। इससे बारिश होती है तो पानी खेत में रहता है।
इसमें खरपतवार नाशक का प्रयोग तभी कर जब खेत में पर्याप्त नमी रहे। खरपतवार नाशी के छिड़काव से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
धान के साथ अगर उड़द या मूंग की फसल भी बो देते हैं तो खरपतवार नहीं लगते हैं। इस विधि से बुवाई के लिए हमेशा उन्नत किस्मों का चुनाव करें। अगर ऊंचाई पर खेत है तो जल्दी पकने वाली किस्मों का चुनाव करें अगर निचली खेत हैं जहां पर बारिश का पानी इकट्ठा होता है तो वहां पर मध्यम किस्में का ही चयन करें।
धान की बुवाई करते समय कोशिश करनी चाहिए कि सीडड्रिल या जीरो टिलेज मशीन से बुवाई करें, क्योंकि इसमें एक लाइन में बुवाई होती है, जिससे निराई करने में आसानी होती है। लेकिन अगर ऐसी सुविधा नहीं है तो छिटकवा विधि से बुवाई करें।
अगर मई में बुवाई करते हैं तो 12 किलो प्रति एकड़ बीज लगता है और वही अगर जून-जुलाई में करते हैं तो बीज और कम 10 किलो के करीब ही लगता है। ज्यादा बीज बोने से पौधे कमजोर हो जाते हैं।