किसानों को मिलेगा उपज का सही दाम, ठेका खेती को सरकार की हरी झंडी

केंद्र सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक और प्रयास किया है। सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट खेती का मॉडल जारी जारी कर दिया। किसान अपनी फसलों को बेचने के लिए प्राइवेट कंपनियों से करार कर सकेंगे और अपनी फसल का उचित दाम पा सकेंगे।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   23 May 2018 8:29 AM GMT

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किसानों को मिलेगा उपज का सही दाम, ठेका खेती को सरकार की हरी झंडी

नई दिल्ली। किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार कई योजनाएं चला रही है। इसी क्रम में मंगलवार को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन मॉडल संविदा खेती और सेवाएं अधिनियम-2018 को लागू करने के लिए कृषि मंत्रियों ने बैठक की। इसमें संविदा खेती (सीएफ) की पद्धति को लेकर चर्चा की गई। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने एक और कानूनी सुधार की ओर कदम बढ़ाया है। कांट्रैक्ट खेती (ठेके पर खेती कानून) के मॉडल कानून को सरकार ने मंगलवार को हरी झंडी दे दी। किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने के लिए एक प्रारूप तैयार किया गया है। यह प्रारूप न केवल कृषि फसलों के लिए तैयार किया गया है, बल्कि पशुपालन, डेयरी और पॉल्ट्री उत्पादों के क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल हो सकेगा।
केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह ने बताया कि ठेका खेती के उत्पादकों एवं प्रायोजकों के हितों की रक्षा करने के लिए कृषि मंत्रालय ने आदर्श एपीएमसी अधिनियम, 2003 का प्रारूप तैयार किया है जिसमें प्रायोजकों के पंजीकरण, अनुबंध की रिकॉर्डिंग, विवाद निपटान तंत्र के लिए प्रावधान किए गए हैं। कृषि मंत्री ने बताया," किसानों को खेतीबाड़ी में कमाई बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने अनुबंध खेती का एक मॉडल कानून मसौदा जारी किया है।"

क्या होती है ठेका खेती
कई बार देखा गया कि खऱीदार ना मिलने पर किसानों की फसल बर्बाद चली जाती है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी। ऐसे में ही ठेका खेती की ज़रूरत महसूस की गई, ताकि किसानों को भी उनके उत्पाद की मुनासिब कीमत मिल सके। सरकार ने केंद्रीय कृषि नीति में, कॉन्ट्रैक्ट खेती के क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का ऐलान किया था। कृषि के क्षेत्र में पूंजी निवेश को बढ़ावा देना भी ठेका खेती का उद्देश्य है।
केंद्र सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक और प्रयास किया है। सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट खेती का मॉडल जारी जारी कर दिया। किसान अपनी फसलों को बेचने के लिए प्राइवेट कंपनियों से करार कर सकेंगे और अपनी फसल का उचित दाम पा सकेंगे।
खेती का बीमा भी होगा
कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम से इसे पूरी तरह से अलग रखा गया है। विवाद निपटारे के लिए व्यवस्था होगी और खेती का बीमा भी होगा। किसानों के हितों की रक्षा के लिए अनुबंध के समय आस-पास की मंडियों के मॉडल भाव से 10 फीसदी अधिक भाव पर अनुबंध होगा। अगर संबंधित एग्री जिंस का व्यापार आस-पास की मंडियों में नहीं होता है तो फिर होलसेल की मंडियों में सात दिन के भाव के आधार पर औसत कीमत तय की जायेगी तथा उस पर 10 फीसदी और जोड़कर ही कंपनी किसान से अनुबंध कर सकेगी।


यूपी के शामली निवासी किसान एमएस तरार (45वर्ष) का कहना है,"इस कानून के बन जाने बस से किसानों के आय पर कुछ असर नहीं पड़ने वाला है। कई देशों में यह कानून बहुत पहले से लागू है, बावजूद इसके वहां के किसानों को उनकी फसल क सही दाम आज तक नहीं मिल पाता है।"
मध्य प्रदेश के मंदसौर के रहन वाले किसान अर्जुन पटटीदार (40वर्ष) का कहना है," कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग किसानों के लिए फायदे का सौदा रहेगा, क्योंकि इसके तहत खेती करने से किसानों को एक निश्वित दाम तो मिलेगा ही।"
झारखंड के रांची निवासी उन्न्तशील किसान गंशू महतो (40वर्ष) का कहना है," फिलहाल अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि यह कानून किसानों के लिए कितना फायदेमेंद होगा। कम से कम दो तीन सीजन बीतने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। "
एमपी के मंदसौर जिले के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी दशरथ पांडेय का कहन है," कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से निश्चित रूप से किसानों की आय बढ़ेगी। पूरी दुनिया में इस तरह की खेती हो रही है। इस कानून को बहुत सोच समझ कर बनाया गया है।"

भारत में अनुबंध खेती का चलन पुराना
किसी फसल की खेती अनुबंध के तहत करने का चलन भारत में बहुत लंबे समय से रहा है। नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद खेती से जुड़ी बड़ी कंपनियां भी किसानों के सीधे संपर्क में आईं और गन्ने, आलू, कॉफी जैसी नकदी फसलों की खेती के लिए अनुबंध के तहत शुरू की। इनमें से ज्यादातर अनुबंध फसल तैयार होने के बाद एक नियत दाम पर किसान से खरीदे जाने के बारे में होते थे। नब्बे के दशक के बाद अलगे लगभग तीन दशकों तक कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग ने जोर पकड़ा। सीधे कंपनियों से अनुबंध करके खेती करने लगे। लेकिन इसी सब के बीच किसान के हित बड़ी कंपनियों द्वारा मारे जाने की चर्चा उठने लगी। इसका एक कारण ये भी था कि इस व्यवस्था को देश में कभी कानून के रूप में नहीं ढाला गया था। अरुण जेटली ने इसी दिशा में कदम बढ़ाने की घोषणा बजट भाषण में की थी। एक तरफ किसान खुश हैं कि नियम बनने से कोई बड़ी कंपनी उन्हे ढग नहीं पाएगी, वहीं दूसरी ओर उनकी चिंता ठेका खेती या बटाई खेती को लेकर भी है।


     

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