साम्बा महसूरी धान की उन्नत किस्म से ज्यादा होगा उत्पादन, मधुमेह के मरीज भी खा सकेंगे चावल

भारतीय चावल संस्थान और कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र हैदराबाद ने संयुक्त रूप से उन्नत साम्बा महसूरी बैक्ट्रीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी धान की किस्म को विकसित है। उन्नत साम्बा महसूरी में ग्लासेनिक इंडेक्स (जीआई) 55 फीसदी कम होने के कारण धान की यह किस्म डायबिटीज मरीज के लिए ठीक है।

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लखनऊ। मधुमेह रोगियों के लिए अच्छी खबर है। मधुमेह रोगियों को डॉक्टर ज्यादातर चावल खाने से परहेज करने की हिदायत देते हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी किस्म विकसित की है, जिससे मधुमेह रोगी भी चावल का आनंद उठा सकेंगे। साम्बा महसूरी की ये किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट रोग प्रतिरोधी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस किस्म का धान से उत्पादन न सिर्फ ज्यादा होगा बल्कि उसका बाजार में अच्छा भाव भी मिल सकता है।

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आईसीआर की संस्था भारतीय चावल संस्थान और सीएसआईआर की कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र हैदराबाद ने संयुक्त रूप से उन्नत साम्बा महसूरी बैक्ट्रीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी धान की इस किस्म को विकसित कियाहै। उन्नत साम्बा महसूरी किस्म में ग्लासेनिक इंडेक्स (जीआई) 55 फीसदी कम होने के ये किस्म मधुमेह के मरीजों के लिए भी मुफीद है। साथ ही महसूरी की यह किस्म प्रगतिशील किसानों की आय बढाने में काफी मददगार साबित होगी। खरीफ सीजन के लिए लखनऊ में सीमैप के माध्यम से 80 किसानों को इस धान के 10-10 किलो मुफ्त बीज दिए गए। बैक्टीरियल ब्लाइस्ट वो रोग है, जिसमें धान की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिससे 50 फीसदी तक उत्पादन कम हो जाता है। इस रोग का कोई इलाज नहीं है। वैज्ञानिकों ने एक जंगली किस्म के धान के डीएनए को म्यूटेशन के द्वारा साम्बा महसूरी की उन्नत किस्म में स्थानरित कर इसे विकसित किया है।


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इस अवसर पर कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र हैदराबाद के निदेशक डॉ. राकेश कुमार मिश्रा ने बताया," उन्नत साम्बा महसूरी में ग्लासेनिक इंडेक्स (जीआई) 55 फीसदी कम होने के कारण धान की यह किस्म डायबिटीज मरीजों के लिए काफी मुफीद है। अमूमन धान की अन्य प्रजातियों में जीआई 55 फीसदी से अधिक पाए जाने के कारण डॉक्टर डायबिटीज मरीजों को चावल खाने से परहेज का करने का निर्देश देते हैं, लेकिन अब डायबिटीज के मरीज भी चावल का आनंद उठा सकते हैं। इस धान की ढाई लाख एकड़ में खेती हो चुकी है, जिसके दवारा किसानों को करीब 250 करोड़ का फायदा हुआ है।"सीएसआईआर – सीसीएमबी, हैदराबाद द्वारा एक ऐसी उन्नत किस्म को विकसित किया है, जो कि न सिर्फ उत्पादकता और दानों के गुणवत्ता में साम्बा महसूरी के समान हो, बल्कि बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के प्रति प्रतिरोधी भी हो। उन्नत साम्बा महसूरी का विकास मार्कर-अस्सिस्टेड सिलेक्शन द्वारा किया गया है और यह ट्रांसजेनिक नहीं है। उन्होंने बतायाकि ये किस्म 7 दिन पहले पकेगी और ये न जीएम है और ना ही हाईब्रिड (संकर) इसलिए आगे भी किसान इस धान को बीज की तरह आसानी से इस्तेमाल कर सकेंगे।

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डा. मिश्रा ने आगे बताया, "इस चावल की प्रजाति की विश्वसनीयता कायम करने के लिए सीसीएमबी सर्टिफाइड करेगा। विदेशों के लिए भेजे जाने वाले बासमती चावल को भी सीडीएफडी होने के बाद भेजा जाता है। और किसान चाहें तो वो भी हमारी संस्था से इसका सर्टिफिकेट ले सकेंगे।"इस दौरान सीमैप के निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा, "ग्रामीण विकास, खासकर किसानों की आमदनी बढ़ाने और उनके जीवन में खुशहाली लाने के लिए वैज्ञानिक अपने शोधों को जनमानस तक पहुंचाने में जुटे हैं। एरोमा मिशन लाखों किसानों के लिए नए अवसर बना रहा है। इसके साथ ही आईसीआर के साथ ही वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआई की प्रयोगशालाएं भी किसाानों की बेहतरी के लिए शोधों में जुटी हैं।" लखनऊ में ब्लाइट आउट कार्यक्रम के तहत सीएसआईआर-सीसीएमबी द्वारा उन्नत साम्बा महसूरी चावल के बीजों का वितरण सीएसआईआर-सीमैप लखनऊ में किया गया। सीएसआईआर-सीमैप में लगभग 80 किसानों को एक एकड़ के लिए 10 किग्रा बीज उपलब्ध कराए गए। लखनऊ के अलावा यूपी के गोरखपुर औरदेवरिया में भी 200 किसानों को बीज दिए जाएंगे। यूपी के अलावा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और उडीसा समेत 8 राज्यों में इस धान की सफल खेती शुरू हो चुकी है। बीजों का वितरण डॉ. राकेश मिश्रा, निदेशक सीसीएमबी डॉ. आलोक धवन, निदेशक आईआईटीआर और प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, निदेशक सीमैप के द्वारा किया गया।

यह उन्नत किस्म हो रही लोकप्रिय

डॉ. राकेश कुमार मिश्रा ने आगे बताया,"भारत में पहली बार एक मात्र धान की ऐसी प्रजाति विकसित की गई है जिसमें तीन बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी जीन मौजूद हैं। इसको आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है। देश के उन सभी क्षेत्रों में जहां धान की बारीक किस्म की खेती की जाती है और जहां बैक्ट्रीरियल ब्लाइट रोग से उत्पादकता प्रभावित होती है। यह उन्नत साम्बा महसूरी काफी लोकप्रिय हो रही है।"

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