ओडिशा की कंधमाल हल्दी को मिला जीआई टैग, 60 हजार से ज्यादा किसानों को होगा फायदा

Mithilesh DharMithilesh Dhar   16 April 2019 10:15 AM GMT

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लखनऊ। अपने रंग और खास सुगंध के लिए प्रसिद्ध कंधमाल की हल्दी को जीआई टैग मिल गया है। दक्षिणी ओडिशा में पैदा होने वाली इस हल्दी को अब पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी। इसका ज्यादा प्रयोग औषधीय दवाओं के लिए किया जाता है। इसके लिए जीआई टैग की मांग काफी से की जा रही थी।

ओडिशा सरकार ने पिछले साल कंधमाल हल्दी की भौगोलिक मान्यता (जीआइ टैग) को लेकर आवेदन दिया था। प्रदेश सरकार इससे पहले रसगुल्ले का जीआई टैग भी लेना चाहती थी जिसे लेकर काफी विवाद भी हुआ और बाद में वो पश्चिम बंगाल को मिल गया।

सरकार की ओर से सेंट्रल टूल रूम एवं ट्रेनिंग सेंटर (सीटीआटीसी) द्वारा की गई इस अर्जी के संबंध में संस्था प्रमुख सचिकांत कर ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए बताया "कंधमाल हल्दी की गुणवत्ता एवं इसकी स्वतंत्रता पर पिछले 2 साल से अनुसंधान जारी था। पूरे तथ्य के साथ जीआइ टैग के लिए आवेदन किया गया था। देश के अन्य हिस्सों में होनी हल्दी की अपेक्षा कंधमाल हल्दी का रंग सोने सा सुर्ख है और इसमें बहुत से गुण पाये जाते हैं।"

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ओडिशा एग्रीकल्चर की वेबसाइट की मानें तो जिला कंधमाल की लगभग 15 फीसदी आबादी हल्दी की खेती करती है। जीआई टैग मिल जाने से इसे विश्व बाजार में एक बड़ा बाजार मिलेगा।

कंधमाल एपेक्स स्पाइसेस एसोसिएशन ने पिछले साल इस स्थानीय उत्पाद के लिए जीआई टैग की मांग की थी, उनके समूह के द्वारा ही इसके लिए आवेदन दिया गया था।

कंधमाल एपेक्स स्पाइसेस एसोसिएशन के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर स्वागत मोहराना ने गांव कनेक्शन को बताया "उत्कल दिवस के मौके पर हमें जीआई टैग मिला, इसके लिए सेंट्रल टूल रूम एवं ट्रेनिंग सेंटर की तरफ से कुछ गाइडलाइंस भी जारी की गयी है। इससे हम खुश हैं, इस बेहद खास हल्दी के लिए यह अच्छी खबर है। अब कंधमाल हल्दी की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होगी और इससे इस प्रोडक्ट को नये बाजार भी मिलेंगे। कंधमाल हल्दी में अन्य हल्दियों की अपेक्षा तेल की मात्रा ज्यादा होती है।"

नवंबर 2018 में जीआई इंडिया ने कंधमाल हल्दी को जीआई टैग देने के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया था कि हल्दी की यह खास किस्म जीआई जर्नल में शामिल की जा सकती है। ब्यूटी प्राडेक्ट बनाने वाली कंपनिया इस हल्दी का प्रयोग करती हैं। इसके लिए फार्मा कंपनियों में भी इसकी अच्छी खास मांग रहती है। इसके अलावा ओडिया खानों में भी इसका प्रयोग होता है। स्वागत मोहराना ने बताया।

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कंधमाल एपेक्स स्पाइसेस एसोसिएशन का निर्माण 1998 में हुआ था और कंधमाल के लगभग 12000 किसान इसके सदस्य हैं। यह संस्था जैविक हल्दी का कारोबार करती है जो आदिवासियों की मुख्य नकदी फसल है। स्वागत ने बताया कि कंधमाल जिले में कंधमाल हल्दी की खेती सालाना 16,000 हेक्टेयर में की जा रही है जिससे जिले में 60 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। सालाना उत्पादन 40,000 मीट्रिक टन है।

जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है।

ऐसा नाम उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है। दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है।

कंधमाल हल्दी की खास बातें

  • कंधमाल हल्दी का रंग सुनहरा पीला होता है और यह हल्दी की अन्य किस्मों से भिन्न है।
  • इस हल्दी की ख़ास बात यह है कि इसके उत्पादन में किसानों द्वारा किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • स्वास्थ्य के लिए काफी उपयोगी यह कंधमाल हल्दी यहां के जनजातीय लोगों की प्रमुख नकदी फसल है।
  • शासन तंत्र द्वारा भी कंधमाल हल्दी को स्वतंत्रता का प्रतीक अथवा अपनी उपज माना जाता है।
  • मूल रूप से कंधमाल के आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली यह हल्दी अपनी औषधीय विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।

  

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