ज्यादा गन्ना उत्पादन से चीनी की कीमतें तो गिर ही रहीं, कंपनियों के शेयर भी लुढ़के

Mithilesh Dhar | Mar 14, 2018, 16:09 IST
Sugarcane production
चालू गन्ना पेराई सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के शुरुआती पांच महीनों में देशभर की चीनी मिलों ने 230.5 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 67.88 टन यानी 41 फीसदी ज्यादा है। ऐसे में चीनी की कीमतों में गिरावट तो आ ही रही है, चीनी कंपनियों के शेयर भी अब तेजी से गिर रहे हैं। पिछले एक साल में चीनी कंपनियों के शेयर 75 फीसदी तक गिरे हैं।

चीनी मिलों का संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबकि, एक अक्टूबर, 2017 से लेकर 28 फरवरी, 2018 तक देश में 230.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। चालू सत्र में देशभर में 522 चीनी मिलों ने उत्पादन शुरू किया मगर 28 फरवरी 2018 तक 479 मिलें चालू थीं। बाकी मिलों में उत्पादन बंद हो चुका था।

उत्पादन ज्यादा होने की वजह से चीनी कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा है। गन्ना किसानों का बकाया चुकाने के लिए चीनी मिलें अक्टूबर 2017 में इस सीजन की शुरुआत के बाद से ही इस आशंका के बीच अपने उत्पादन की बिक्री कर रही हैं कि कीमतें भविष्य में कमजोर बनी रहेंगी। न्यूनतम भंडारण सीमा के साथ-साथ निर्यात पहलों के अभाव ने भी आपूर्ति की स्थिति बदतर बना दी है।

उत्तर प्रदेश में इस सत्र में 73.95 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है, जबकि महाराष्ट्र में 84.24 लाख टन। इस प्रकार महाराष्ट्र इस साल उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ देश में सबसे ज्यादा चीनी उत्पादन करने वाले राज्य का दर्जा फिर प्राप्त कर सकता है। कर्नाटक 33.44 लाख टन चीनी उत्पादन के साथ देश में तीसरे नंबर पर बना हुआ है।

रीगा शुगर का शेयर पिछले साल अप्रैल 2017 में 39.90 रुपए की ऊंचाई की तुलना में 14 मार्च 2018 तक लगभग 74 प्रतिशत तक गिरकर 10.73 रुपए पर आ गया। सिंभावली शुगर, मवाना शुगर्स और द्वारिकेश शुगर के शेयरों में भी पिछले साल के ऊंचे स्तरों से लगभग 65 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। बजाज हिंदुस्तान का शेयर लगभग 45 फीसदी तक गिरकर 10.50 रुपए तक आ गया है। रेणुका शुगर्स का शेयर अब तक 31.25 फीसदी टूटकर 15.40 रुपए पर आ चुका है। (आंकड़े एनसई से लिए गये हैं, स्थिति बुधवार 14 मार्च दोपहर तक की)।

पिछले साल देश में महज 203 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, मगर इस सालाना खपत से ज्यादा उत्पादन होने की उम्मीद है। इस्मा ने जनवरी में कहा था कि चालू सत्र में 261 लाख टन चीनी उत्पादन उत्पादन हो सकता है, जो उसके पिछले अनुमान से 10 लाख ज्यादा है। इधर महाराष्ट्र में गन्ने की पैदावार ज्यादा होने के अनुमान के हो सकता है कि चीनी उद्योग संगठन अपने इस अनुमान में भी बढ़ोतरी करे।

भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'चीनी उत्पादन अगले सीजन में भी अधिशेष की स्थिति में रहने की वजह से सरकार को चालू सीजन के लिए 15 लाख टन शुद्घ चीनी और अगले सीजन के लिए 40 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात की अनुमति देने की जरूरत होगी।' उद्योग संस्था इस्मा ने इस साल दूसरी बार चीनी उत्पादन के अनुमान को संशोधित किया है।

पिछले साल देश में महज 203 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, मगर इस सालाना खपत से ज्यादा उत्पादन होने की उम्मीद है। इस्मा ने जनवरी में कहा था कि चालू सत्र में 261 लाख टन चीनी उत्पादन उत्पादन हो सकता है, जो उसके पिछले अनुमान से 10 लाख ज्यादा है। इधर महाराष्ट्र में गन्ने की पैदावार ज्यादा होने के अनुमान के हो सकता है कि चीनी उद्योग संगठन अपने इस अनुमान में भी बढ़ोतरी करे।

इस्मा के अनुसार, देश में चीनी खपत इस साल 250 लाख टन हो सकती है, जो पिछले साल के 246 लाख टन से अधिक है। पिछले महीने चीनी मिलों की मांग पर सरकार ने चीनी के आयात पर शुल्क 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया। चीनी उद्योग संगठनों को लगता था कि पाकिस्तान के रास्ते देश में विदेशों से सस्ती चीनी आ सकती है, जिससे बाजार में चीनी के दाम में और सुस्ती आने की संभावना थी।

पिछले सीजन से लगभग 40 लाख टन के स्टॉक की उपलब्धता को देखते हुए भारत का कुल चीनी अधिशेष 85 लाख टन पर अनुमानित है, जो पूरे भारत की चार महीने से अधिक की खपत के बराबर है। उद्योग के एक जानकार ने कहा, 'फसल की शुरुआती 15 महीने की स्थिति को देखते हुए भारत का चीनी उत्पादन अगले साल भी 2.9-3 करोड़ टन के बीच रहने का अनुमान है। इसका मतलब है कि अगले साल भी 50 लाख टन अतिरिक्त चीनी उत्पादन की संभावना है।

इस तरह से चीनी वर्ष 2019 के अंत में कुल चीनी अतिरिक्त 1.35 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा। पिछले एक साल में चीनी की कीमतें 19 प्रतिशत तक नीचे आई हैं। वाशी मंडी में थोक में शुगर में सोमवार को 3,300 रुपए प्रति क्विंटल पर बिकी जबकि अप्रैल 2017 के शुरू में यह भाव 4,076 रुपए प्रति क्विंटल पर था। चीनी की कीमतों में गिरावट की वजह से चीनी मिलों पर गन्ना बकाया का बोझ भी बढ़ा है।

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