गाय के पेट जैसी ये ' काऊ मशीन ' सिर्फ सात दिन में बनाएगी जैविक खाद , जानिए खूबियां

गाँव कनेक्शन | Apr 21, 2018, 14:20 IST
IIT Roorkee
बरेली (यूपी)। भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिकों और इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (आईआईटी) रुड़की ने साथ मिलकर मेकेनिकल काऊ कंपोस्टिंग मशीन तैयार की है। यह मशीन सात दिन में जैविक खाद को तैयार करेगी।

"अभी खाद तैयार करने के लिए किसानों को एक वर्ष का समय लग जाता हैं जो कि बहुत लंबा समय था। इस समय को कम करने के लिए आईआईटी रुड़की की मदद ली गई और मशीन गाय को तैयार किया गया। यह कंपोस्टिंग मशीन सात दिन में खाद तैयार कर देती है। जमीन के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए ऐसी तकनीक की जरूरत थी। इस मशीन को 2014 में तैयार किया गया था तब से इस मशीन को और बेहतर बनाने पर काम चल रहा है।" ऐसा बताते हैं, आईवीआरआई के पशु आनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रणवीर सिंह।

इस मशीन की संरचना गाय के पेट की तरह है। जिस तरह गाय के पेट में कई भाग होते हैं उसी तरह से मैकेनिकल काऊ कंपोस्टिंग मशीन के भी कई पार्ट हैं। गाय के पेट में सूक्ष्मजीवी होते हैं वैसे इस मशीन से खाद बनाने से पहले सूक्ष्मजीवी विकसित करने पड़ते हैं।
इससे पहले जैविक खाद की प्रकिया को 40 दिन में पूरा करने के लिए आईवीआरआई द्वारा जयगोपाल वर्मीकल्चर तकनीक को विकसित किया गया था। इससे भी तेजी से खाद तैयार किया जाए इसके लिए वैज्ञानिेकों द्वारा मेकेनिकल काउ कंपोस्टिंग मशीन को विकसित किया गया है। इस मशीन में रोज 100 किलो खरपतवार डालेंगे तो अगले सात दिनों के बाद से रोजाना 100 किलो खाद मिलनी शुरू हो जाएगी।

खाद बनाने वाली मशीन का डेमो देते वैज्ञानिक। मशीन के बारे में जानकारी देते हुए डॉ सिंह बताते हैं, "इस मशीन की संरचना गाय के पेट की तरह है। जिस तरह गाय के पेट में कई भाग होते हैं उसी तरह से मैकेनिकल काऊ कंपोस्टिंग मशीन के रोटरी ड्रम (बायो डायजस्टर) में भी कई चरणों के बाद खाद बनती है। गाय के पेट में सूक्ष्मजीवी होते हैं वैसे इस मशीन से खाद बनाने से पहले सूक्ष्मजीवी विकसित करने पड़ते हैं, जिसके 40 से 50 दिनों का समय लगता है। इन सूक्ष्मजीवों के विकास के बाद इसमें खरपतवार, सब्जियों के कचरे डाले जाता हैं।"

अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ रणवीर बताते हैं, "जैसे गाय चबाती हैं वैसे ही खरपतवार को मशीन में डालने से पहले उसके छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते है ताकि खाद को बनने में दिक्कत न हो। खरपतवार के साथ ही मशीन में बीच बीच में गोबर, कूड़े, कचरे और पत्तियों को मिक्स कर उस पर सूक्ष्मजीवियों का घोल डाला जाता है। मशीन के रोटरी ड्रम को दिन में एक घंटे घुमाया जाता है, ताकि कूड़ा-कचरा ऑक्सीजन और सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आ जाए। इस मशीन में ऑक्सीजन भी डाला जाता है।"

सिर्फ 7 दिन में बनेगी खाद यह मशीन एक कोण पर झुकी होती है। आगे से खरपतवार डाली जाती है और पीछे से खाद निकलती है। इस मशीन से तैयार खाद की खासियत यह हैं कि इसको कम जगह में रखा जा सकता है और इसमें बदबू भी नहीं आती है। इस निकली खाद में कुल नाइट्रोजन 2.6 फीसदी और फास्फोरस 6 ग्राम प्रति किलो होता है।

इस मशीन में लगी लागत के बारे में डॅा सिंह बताते हैं, "आईआईटी रुड़की द्वारा इस पूरी मशीन को तैयार किया गया है। इसको बनाने में पांच लाख रूपए की लागत आई हैं, क्योंकि यह पूरी लोहे की है। वेस्ट मेनेजमेंट के लिए यह मशीन काफी कारगार सिद्ध होगी। समूह बनाकर इस शहर की बड़ी कलोनियों में लगाया जा सकता है। किसान इस मशीन को छोटे रूप में तैयार करके जल्दी खाद प्राप्त कर सकते है।"

इस मशीन की जानकारी के लिए बरेली के इज्जतनगर स्थित भारतीय पशु अनुंसधान संस्थान में संपर्क कर सकते है। 0581-2311111 वेबसाइट http://www.ivri.nic.in/

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