पशुओं के ब्याने के बाद मिल्क फीवर और कीटोसिस बीमारियों का खतरा
Diti Bajpai | Jul 10, 2018, 12:14 IST
पशुओं में गर्भधारण के बाद मिल्क फीवर और कीटोसिस जैसी बीमारियों का सबसे अधिक खतरा रहता है। पशुओं में बढ़ते इन बीमारियों के प्रकोप के कारण न केवल पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता घट जाती है बल्कि दुबारा प्रजनन में भी काफी दिक्कतें आती है।
लखनऊ। पशुपालकों को अपने पशुओं के गाभिन होने के समय सबसे अधिक देखभाल की जरुरत पड़ती है। पशुओं के गाभिन होने के बाद उनमें बीमारियां फैलना आम हो जाता है। मिल्क फीवर और कीटोसिस नामक बीमारियां दुधारु पशुओं के गर्भधारण के बाद ही उत्पन्न होती है।
''पशुओं में मिल्क फीवर होना, जेर का समय से न निकलना या उसका फंस जाना, कीटोसिस समेत कई तरह की बीमारियां ब्यांत के बाद पशुओं को होती है। पशुपालक की जरा सी लापरवाही से उसको आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। अगर पशुपालक पशु का उचित रख-रखाव और प्रंबधन की व्यवस्था करता है तो इन बीमारियों से पशुओं को बचाया जा सकता है।'' डॅा योगेश मिश्रा पशुविशेषज्ञ।
पशुओं के ब्यांत के बाद का समय दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि ब्यांत के बाद के तीन महीने में पशु दुग्धकाल के कुल उत्पादन का लगभग 60-65 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन करता है। इसलिए इस दौरान पशु का उचित रख-रखाव और प्रंबधन, उचित पोषण और पौष्टिक तत्वों का सही मात्रा में पशु द्ववारा सेवन अत्यधिक आवश्यक है। यदि हम इन सभी बातों का ध्यान रखें तो निश्चित रुप से हम अपने पशु से इस दौरान पूरा दुग्ध उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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पशुओं में गर्भधारण के बाद मिल्क फीवर और कीटोसिस जैसी बीमारियों का सबसे अधिक खतरा रहता है। पशुओं में बढ़ते इन बीमारियों के प्रकोप के कारण न केवल पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता घट जाती है बल्कि दुबारा प्रजनन में भी काफी दिक्कतें आती है।
यह बीमारी अधिक दूध देने वाले पशुओं में ब्याने के कुछ समय बाद देखने को मिलती है। इसमें पशु सुस्त हो जाता है, खाना-पीना छोड़ देता है और दुग्ध उत्पादन में लगातार गिरावट आने लगती है। यदि ये बीमारी लगातार चलती रहे तो पशु दूध देना बंद कर देता है और प्रजनन संबंधी अनेक समस्यायें पैदा हो जाती हैं। इस बीमारी का एक मुख्य लक्षण है कि पशु के मुंह से एक अलग तरह की बदबू आने लगती है।
ब्याने के तुंरत बाद उचित पोषण की कमी, सही चारे और दाने का चुनाव न होने के कारण ये समस्या पैदा होती है। कई बार किसान पशुओं का पाचन सही करने के लिए सरसों का तेल/घी आदि दे देते है जो पशुओं में अपचन संबंधी समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसका प्रभाव पशु के दुग्ध उत्पादन पर भी पड़ता है। पशु के शरीर में जरुरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और पशु के अगले प्रजनन संबंधी समस्या भी पशुपालकों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनती है।
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ब्यांत के कुछ समय बाद दुधारु पशुओं में होने वाली ये एक मुख्य समस्या है। इस बीमारी में पशु में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है। वो खाना-पीना छोड़ देता है और एक जगह बैठ पाता है। इस बीमारी का मुख्य कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी होना है। पशु के आहार में कैल्शियम की कमी और उसका शरीर में सही ढंग से अवशोषध न होने से ये समस्या पैदा होती है। क्योंकि दूध में कैल्शियम काफी मात्रा में होता है, इस कारण ये समस्या ब्यांत के बाद अधिक मात्रा में देखने को मिलती है। इस समस्या से पशु के दूध उत्पादन में काफी कमी आ जाती है और पशुपालक का काफी आर्थिक नुकसान होता है।
''पशुओं में मिल्क फीवर होना, जेर का समय से न निकलना या उसका फंस जाना, कीटोसिस समेत कई तरह की बीमारियां ब्यांत के बाद पशुओं को होती है। पशुपालक की जरा सी लापरवाही से उसको आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। अगर पशुपालक पशु का उचित रख-रखाव और प्रंबधन की व्यवस्था करता है तो इन बीमारियों से पशुओं को बचाया जा सकता है।'' डॅा योगेश मिश्रा पशुविशेषज्ञ।
पशुओं के ब्यांत के बाद का समय दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि ब्यांत के बाद के तीन महीने में पशु दुग्धकाल के कुल उत्पादन का लगभग 60-65 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन करता है। इसलिए इस दौरान पशु का उचित रख-रखाव और प्रंबधन, उचित पोषण और पौष्टिक तत्वों का सही मात्रा में पशु द्ववारा सेवन अत्यधिक आवश्यक है। यदि हम इन सभी बातों का ध्यान रखें तो निश्चित रुप से हम अपने पशु से इस दौरान पूरा दुग्ध उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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पशुओं में गर्भधारण के बाद मिल्क फीवर और कीटोसिस जैसी बीमारियों का सबसे अधिक खतरा रहता है। पशुओं में बढ़ते इन बीमारियों के प्रकोप के कारण न केवल पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता घट जाती है बल्कि दुबारा प्रजनन में भी काफी दिक्कतें आती है।
कीटोसिस
अपचन संबंधी समस्या
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