कांग्रेस के स्थापना दिवस पर 135 साल पुरानी एक तस्वीर का इतिहास

Jamshed Qamar | Dec 28, 2017, 11:57 IST
rahul gandhi
भारतीय इतिहास की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज अपना स्थापना दिवस मना रही है। आइये इस मौके पर हम एक बार अतीत के पन्नों को फिर से खंगालते हैं और जानने की कोशिश करते हैं क्या है कांग्रेस का इतिहास

कांग्रेस का इतिहास

कांग्रेस का इतिहास

कांग्रेस का इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन साल 1885 में हुआ जिसका श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म 1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वो अंग्रजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित 'बंगाल सिविल सेवा' में पास होकर साल 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने। 1857 की गदर के वक्त वो इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और 1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने।

इसी बीच महात्मा गाँधी भारत लौटे और उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन शुरु किया। शुरु में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली।

साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में महात्मा गाँधी की भूमिका बढ़ी, हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।

1947 के बाद क्या हुआ?

जवाहर लाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने

स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।

इंदिरा गांधी बनीं पहली महिला प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी, पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ

नेहरू की अगुआई में 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। साल 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आख़िरकार मोरारजी देसाई को दरकिनार कर नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।

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