पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में अम्फान की तबाही से 72 की मौत, 20 लाख लोग हुए बेघर

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पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में अम्फान की तबाही से 72 की मौत, 20 लाख लोग हुए बेघर

- अरित्र भट्टाचार्य

बंगाल की खाड़ी में बना चक्रवाती तूफान अम्फान 20 मई की दोपहर पश्चिम बंगाल-बांग्लादेश के सुंदरवन से टकराया। हालांकि तट पर टकराने से पहले यह थोड़ा सा कमजोर पड़ा था। लेकिन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुमान के अनुसार इस तूफान ने बांग्लादेश जाने से पहले दक्षिण और दक्षिण-पूर्व बंगाल में भीषण तबाही मचाई। इस तूफान के कारण पश्चिम बंगाल में कम से कम 72 लोगों की मौत हो गई और कम से कम 20 लाख लोगों के घर उजड़ गए।

राज्य की राजधानी कोलकाता में बिजली कटौती हुई और कई हिस्सों में बाढ़ जैसे हालात बन गए। राज्य के बड़े हिस्से में सड़क, बिजली, मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रभावित, जिससे नुकसान का सटीक आकलन करना शुरूआत में थोड़ा मुश्किल रहा।

"मैंने पहले कभी ऐसी आपदा नहीं देखी। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राज्य का दौरा करने और स्थिति देखने के लिए कहूंगी, "मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात अम्फान द्वारा मारे गए लोगों के परिवारों को 2.5 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा करते वक्त कहा। शुक्रवार सुबह पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल का दौरा कर राहत कार्यों का जायजा लिया।

गांव कनेक्शन ने प्रभावितों से बातकर समझने की कोशिश की कि उनके लिए यह कितना बड़ा नुकसान है। इस चक्रवाती तूफान से उत्तर और दक्षिण 24 परगना के साथ-साथ पूर्वी मिदनापुर सबसे प्रभावित जिला रहा, जहां पर चक्रवात ने हजारों घरो, सड़कों, पुलों, तटबंधों, घाटों, और मोबाइल नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया।


"बाढ़ और तेज हवाओं ने मछली पकड़ने के तालाबों और झीलों, पोल्ट्री फार्मों, फसल के लिए तैयार हजारों एकड़ धान, आम, लीची और सुपारी के बागानों को नष्ट कर दिया है," बांग्ला संस्कृति मंच के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम बताते हैं।

उन्होंने कहा, "समुद्र से आए खारे पानी ने सुंदरवन के कृषि भूमि को बर्बाद कर दिया, जिससे अगले तीन से पांच साल तक कोई खेती संभव नहीं है। केंद्र से एक बड़ी राहत पैकेज इस समय की जरूरत है।"

दक्षिण 24-परगना जिले में स्थित गैर-लाभकारी संस्था मुक्ति 8,000 स्वयंसेवकों के साथ राहत कार्यों में लगी हुई है। मुक्ति के लोगों ने बताया कि प्रभावित जिलों में लगभग 20 लाख लोगों के घर उजड़ गए।

उत्तर 24 परगना के हसनाबाद ब्लॉक का घुनी गांव पूरी तरह से जलमग्न हो चुका है। "हमारा गांव पानी के भीतर है। सभी मिट्टी के घर नष्ट हो गए हैं और 100 से अधिक लोगों ने एक मस्जिद की छत पर शरण ली है। हमारे गांव में अभी तक कोई राहत टीम नहीं आई है। हसनाबाद शहर और इस गांव के बीच नौ अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह बाढ़ आई हुऊ है, "घूनी गांव की सेलिमा खातुन गाँव कनेक्शन को बताती हैं।


चक्रवात अम्फान से पहले भी कई कमजोर और छोटे चक्रवाती तूफान भी हाल के सालों में पश्चिम बंगाल के तटीय हिस्सों को तबाह कर चुके हैं। इनमें से सबसे खतरनाक चक्रवात आइला था, जो 2009 में सुंदरबन के तट से टकराया था और एक लाख से अधिक लोग बेघर हो गए थे। 2019 में भी सुंदरबन में दो चक्रवाती तूफान फानी और बुलबुल ने तबाही मचाई थी।

इन अनुभवों से सीख लेते हुए और भारत मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमानों के आधार पर राज्य सरकार ने करीब पांच लाख लोगों को तूफान से पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। उन्हें पास के स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में बने राहत शिविरों में भेजा गया।

कोलकाता में बांग्ला संस्कार मंच के सदस्य शांतनु सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया, "इसके अलावा पिछले चक्रवातों के अनुभव से परेशान स्थानीय निवासियों ने भी कई क्षेत्रों में लोगों को अस्थायी शिविरों में ले जाने का बीड़ा उठाया, ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके।"

पश्चिम बंगाल के तटीय इलाके में रहने वाले लोगों ने इससे पहले भी कई तूफानों का सामना किया है, लेकिन चक्रवात अम्फान के प्रकोप ने उन्हें भी हैरान-परेशान कर दिया है। सोशल मीडिया इसे झेलने वाले लोगों के बयानों, वीडियो और फोटो से भरा पड़ा है, जिन्होंने इस शक्तिशाली तूफान को झेला है।


कोलकाता की रहने वाली हैली गोस्वामी अलीपुर, चेतला, सदर्न एवेन्यू और रासबिहारी जैसे मुहल्लों में हुए तबाही से चकित थी। उन्होंने बताया, "यह सब अभूतपूर्व है। शहर छोटे-छोटे टुकड़ों में बट चुका है और बड़ी संख्या में गिरे हुए पेड़ों और मलबे के कारण यातायात भी लगभग असंभव हो गया है। अधिकांश क्षेत्रों में बिजली और पानी की सप्लाई कटी हुई है। सिर्फ भगवान ही जानते हैं कि तूफान वाली रात कितने पक्षियों की मौत हो गई।"

चक्रवात से प्रभावित नादिया जिले के धुबुलिया गांव के निवासी साजिद जंगी ने कहा कि तूफान के सभी मिट्टी के घरों, क्षतिग्रस्त खेतों और फसलों को नष्ट कर दिया। "आधी रात में हवा और बारिश और भी खतरनाक हो गई। लहरें सड़कों, बिजली के खंभों, दीवारों और छतों को पार कर गई और कई लोग एक झटके में बेघर हो गए,"उन्होंने बताया।

"चक्रवात अम्फान ने पश्चिम बंगाल के सात से आठ जिलों, खासकर दक्षिण 24-परगना को तबाह कर दिया है। इंटरनेट या टेलीफोन सुविधाएं तबाह हो चुकी हैं और सड़क उखड़े और टूटे हुए पेड़ों से भर गए हैं। सभी मिट्टी के घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं, अधिकांश तटबंध टूट गए हैं और खेतों में खारा पानी भर गया है। सुंदरवन पहुंचने और शारीरिक रूप से नुकसान का आकलन करने में अभी दो से तीन दिन लग सकते हैं, "मुक्ति के संस्थापक और अध्यक्ष शंकर हलदर ने कहा।

राष्ट्रीय आपदा राहत बल (NDRF) के कर्मियों ने कोलकाता में राहत कार्य शुरू कर दिया है। ज्यादातर जगहों पर वे उखड़े हुए पेड़ों, बिजली के तारों, क्षतिग्रस्त वाहनों और सड़क से अन्य मलबों को हटाने में व्यस्त हैं।


"पश्चिम बंगाल में लगभग पांच लाख लोगों को आश्रय स्थलों में बने रहने के लिए कहा गया है। एनडीआरएफ की चार अतिरिक्त टीमों को राहत कार्यों में सहायता के लिए कोलकाता भेजा जा रहा है, " एनडीआरएफ के महानिदेशक एस एन प्रधान ने बताया।

सक्रिय गैर-लाभकारी और नागरिक समाज समूहों ने गांव कनेक्शन को बताया कि चक्रवात प्रभावित जिलों में भोजन, पेयजल, दवाओं और मच्छरदानी की तत्काल राहत उपलब्ध कराई जा रही है।

दक्षिण 24-परगना के गोसाबा के रहने वाले जमाल मंडल 18 मई को बेंगलुरु से लौटे थे। वह वहां मजदूरी का काम करते थे। 25 मार्च से हुई देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से उन्होंने कुछ भी नहीं कमाया था और उन्हें अपने परिवार से मिलकर राहत मिली थी। लेकिन इस तूफान ने उनकी इस खुशी को भी खत्म कर दिया। चक्रवात से उनके मिट्टी का घर गिर गया और उन्हें पत्नी और चार बेटियों के साथ एक कैम्प में आश्रय लेना पड़ा, जहां उन्होंने एक टेंट में अपनी रात बिताई।


सिविल सोसाइटी समूहों ने चेतावनी दी है कि कोरोना के कारण हुआ लॉकडाउन और फिर चक्रवाती तूफान अम्फान से किसानों और प्रवासी श्रमिक गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। "कई किसानों ने लॉकडाउन के प्रतिबंधों के कारण अपनी फसल को काटना बंद कर दिया था। चक्रवात अम्फान ने अब उनकी उपज को नुकसान पहुँचाकर उनके संकट को और गहरा कर दिया है। यह प्रवासी श्रमिकों को भी प्रभावित करेगा, जो वर्तमान में अपने गांवों में लौट रहे हैं क्योंकि कई इस मौसम में सब्जियां उगाकर जीवन जीने की उम्मीद में शहरों से आए थें। इससे हुए नुकसान से उबरने के लिए कम से कम दो से तीन साल लगेंगे," इस्लाम बताते हैं।

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