भारत के 70 फीसदी हिस्से में सामान्य से अधिक बारिश, देश में मानूसन के आगमन को कर सकता है प्रभावित

इस साल 1 मार्च से 6 मई के बीच देश के 59 प्रतिशत जिले ऐसे रहें जहां पर सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई हुई, वहीं 9 प्रतिशत जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। यदि ऐसा ही कुछ और दिनों तक चला तो देश में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून का आगमन प्रभावित हो सकता है।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   8 May 2020 10:18 AM GMT

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भारत के 70 फीसदी हिस्से में सामान्य से अधिक बारिश, देश में मानूसन के आगमन को कर सकता है प्रभावित

मार्च से मई तक चलने वाले प्री मॉनसून सीजन का अभी तीन और हफ्ता बाकी है। लेकिन भारत के मौसम विभाग (आईएमडी) के बारिश के आंकड़ों से पता चलता है कि देश के एक बड़े हिस्से में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है।

एक मार्च से 7 मई के बीच देश के कुल 36 मौसम उपखंडों में से 18 में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है। इनमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और चंडीगढ़, झारखंड, बिहार, पूर्वी राजस्थान आदि शामिल हैं।

इसी अवधि में हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, कोंकण, गोवा, और मध्य महाराष्ट्र के 6 उपखंडों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। सामान्य से 'बहुत अधिक बारिश' तब कहा जाता है, जब सामान्य से 60 फीसदी बारिश अधिक होती है। वहीं सामान्य से 'अधिक बारिश' का अर्थ होता है, जब सामान्य से 20 प्रतिशत से 59 प्रतिशत तक अतिरिक्त बारिश हो।

देश के कुल 666 जिलों में 59 प्रतिशत जिले ऐसे हैं, जहां पर सामान्य से 'बहुत अधिक बारिश' हुई है, वहीं 9 प्रतिशत जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। गाव कनेक्शन लगातार कई राज्यों से भारी वर्षा और ओलावृष्टि से होने वाले फसलों के नुकसान पर रिपोर्ट करता आ रहा है।

मार्च और मई के बीच हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को बहुत नुकसान हुआ है

भू विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. राजीवन गांव कनेक्शन को बताते हैं, "इस प्री-मॉनसून सीजन में उत्तरी राज्यों में अधिक बारिश हुई। लेकिन आम तौर पर मई में ऐसा बहुत कम होना चाहिए। हमें कुछ और दिनों तक इंतजार करना चाहिए। अगर बारिश और ओलावृष्टि संबंधी गतिविधियां जारी रहीं, तो ये निश्चित रूप से मॉनसून आगमन की प्रक्रिया को प्रभावित करेंगी।"

"जब तक ये सिस्टम उत्तर से हिमालय की ओर नहीं जाते, तब तक मॉनसून का प्रसार हिंद महासागर से उत्तर की ओर नहीं होगा ... यह मॉनसून की प्रगति को प्रभावित कर सकता है। हम इस पर नजर बनाए हुए हैं। 15 मई के बाद ही हम मॉनसून का कोई पूर्वानुमान करेंगे,'' राजीवन आगे कहते हैं।

15 अप्रैल को आईएमडी ने 2020 के दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीजन का पहला पूर्वानुमान जारी किया था, जिसमें बारिश के लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का ± 5% की त्रुटि के साथ 100 फीसदी होने का अनुमान लगाया गया था। 1961-2010 की अवधि के लिए पूरे देश में मॉनसून सीजन का एलपीए 88 सेंटीमीटर होता है।

सोर्स- भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी)


उसी दिन आधिकारिक मौसम एजेंसी ने भारत में मॉनसून की शुरुआत, प्रगति और वापसी की सामान्य तारीखें भी घोषित की थीं। हालांकि केरल के तट से मॉनसून की शुरुआत की तारीख अभी भी एक जून ही है।

आईएमडी के नवीनतम प्री-मॉनसून डाटा पर करीबी नजर डालने से पता चलता है कि देश के अधिकतर मौसम उपखंडों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई। उदाहरण के लिए 1 मार्च से 7 मई के बीच पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उपखंडों में क्रमश: 383 प्रतिशत और 302 प्रतिशत बारिश दर्ज की गई। वहीं झारखंड के सभी 24 जिलों और हरियाणा के सभी 21 जिलों में 'सामान्य से बहुत अधिक' बारिश हुई।

23.2 मिलीमीटर की सामान्यता के मुकाबले, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली में 89.1 मिलीमीटर बारिश हुई। वहीं पूर्वी राजस्थान में 8.5 मिलीमीटर की सामान्य बारिश के मुकाबले 34 मिलीमीटर बारिश हुई। इस प्रकार पूर्वी राजस्थान में 301 प्रतिशत बारिश का रिकॉर्ड दर्ज किया गया।

राजीव कहते हैं, "हमें याद रखना चाहिए कि बारिश का यह बड़ा प्रतिशत प्रस्थान (200 और उससे अधिक) इसलिए है क्योंकि हमने वर्षा के सामान्य मानक बहुत कम तय किए हैं। दिलचस्प बात यह है कि हमारे मौसम संबंधी पूर्वानुमान मॉडल देश के उत्तरी भागों में सामान्य से अधिक बारिश होने का सुझाव पहले से दे रहे थे। फिर भी हम सामान्य से अत्यधिक हुई बारिश के कारणों पर हम विस्तृत अध्ययन करेंगे।"


लेकिन प्री-मॉनसून सीजन के दौरान देश में इतने बड़ी मात्रा में अतिरिक्त वर्षा के पीछे क्या कारण है? भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर श्रीधर बालासुब्रमण्यम कहते हैं, "यह पश्चिमी विक्षोभों की बढ़ी हुई संख्या और उदासीन अल नीनो परिस्थितियों के संयुक्त प्रभाव को दिखाता है।"

पश्चिमी विक्षोभ एक बाह्य उष्णकटिबंधीय तूफान है, जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र से पैदा होकर और भूमध्य सागर व कैस्पियन सागर से नमी लेकर पूर्व की ओर जाता है और उत्तर भारत में सर्दियों के समय में वर्षा का कारण बनता है।

राजीवन ने भी कहा कि इस प्री-मॉनसून सीजन में होने वाली अतिरिक्त वर्षा देश के उत्तरी भागों में चल रही पश्चिमी विक्षोभों की अधिक संख्या से संबंधित हो सकती है। "इस साल हमने पाया कि विक्षोभों की आवृत्ति अधिक है और मौसम प्रणाली भी दक्षिण की तरफ अधिक विस्तारित हुआ है। चूंकि पश्चिमी विक्षोभ उत्तरी मैदानी इलाकों में धीरे-धीरे चलते हैं, इसलिए बहुत बारिश होती है। हालांकि तेज बारिश बहुत कम ही होती है," उन्होंने समझाया।

बालासुब्रमण्यन के अनुसार 2018 में भी प्री-मॉनसून सीजन का कुछ इसी तरह का रुझान रहा था। वह कहते हैं, "चूंकि उस साल ENSO (अल नीनो सदर्न आसिलेशन) निष्क्रिय था, इसलिए व्यापारी हवाएं हिंद महासागर के बेसिन से बहुत नमी ला रही थीं। लेकिन 2018 में ENSO जुलाई के अंत में विकसित हुई, इसलिए उस साल इतनी अधिक बारिश नहीं हो सकी थी।"

इस प्री-मॉनसून सीजन में अधिक बारिश देश के उत्तरी भागों में बढ़ने वाली पश्चिमी विक्षोभों की अधिक संख्या से संबंधित हो सकती है।

हालांकि उन्होंने दावा किया कि 2020 का मॉनसून सीजन 2018 से अलग होने जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ENSO निष्क्रिय है और इसका सूचकांक धीरे-धीरे नीचे गिर रहा है और ENSO के विकसित होने के भी कोई संकेत नहीं हैं। यदि कुछ भी हो, कमजोर ला नीना परिस्थितियां प्रबल हो सकती है। "पूर्वी प्रशांत सागर अच्छा शीतलन प्रवृत्ति दिखा रहा है जिसका अर्थ यह है कि दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून के दौरान सामान्य से अधिक बारिश होने की बहुत अच्छी संभावना है," उन्होंने कहा।

आईएमडी इस प्री-मॉनसून सीजन की अधिक बारिश पर एक विस्तृत अध्ययन करेगा। हालांकि राजीव ने कहा कि इस वजह से मॉनसून सीजन की बारिश को प्रभावित नहीं होना चाहिए, जिसे केवल अल-नीनो और हिंद महासागर की असंगतियों जैसे बड़े पैमानों से नियंत्रित किया जा सकता है।

अब सबकी नजरें आसमान की ओर है!

अनुवाद- दया सागर

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