झारखंड: सारंडा के जंगलों में पहुंचने लगी हैं सरकारी योजनाएं, प्रशासन के साथ वन विभाग, सीआरपीएफ और सामाजिक संस्थाओं ने भी की पहल

गांव कनेक्शन ने सारंडा के जंगल में रहने वाले ग्रामीणों खासकर गर्भवती महिलाओं की दिक्कतों को प्रमुखता से दिखाया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्थानीय जिला प्रशासन को इन गांवों तक हर सरकारी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।

Anand DuttaAnand Dutta   4 Sep 2020 1:08 PM GMT

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सारंडा में जंगल इतना घना है कि दिन में भी सूरज की रोशनी बमुश्किल ही पहुंच पाती है। लेकिन इस जंगल के बीच बसे गावों में विकास की किरण धीरे-धीरे पहुंचने लगी है। चाईबासा जिला प्रशासन अपने वादे के मुताबिक गावों का सर्वे करा रहा है, योजनाएं तैयार करा रहा, जिम्मेदार संस्थाओं को उनका टास्क सौंपा जा रहा है।

गांव कनेक्शन में इन इलाके की समस्याओं से संबंधित खबर छपने के बाद राज्य सरकार के अधिकारियों का पूरा अमला इन गावों में पहुंचा था। इसके बाद से लगातार विकास की योजनाओं पर काम हो रहा है। इसी कड़ी में गुरूवार तीन सितंबर को चाईबासा में रिव्यू मिटिंग का आयोजन किया गया था।

बैठक के बाद कोल्हान प्रमंडल के आयुक्त डॉ मनीष रंजन ने कहा, ''सारंडा एरिया में जो डेवलपमेंट सरकार की ओर से की जा रही है, उस डेवलपमेंट प्रोसेस को कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए, इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस इलाके में 40 वनग्राम हैं। यह निर्णय लिया गया कि उन गावों में कितने परिवार रहते हैं, उसका एक हफ्ता के अंदर डिटेल्ड सर्वे करा लिया जाए। ताकि हमें यह पता चल सके कि उन्हें कौन-कौन सी सुविधाएं मिल रही हैं और कौन-कौन सी दी जानी है।''

वह आगे कहते हैं, ''एक सप्ताह में सर्वे होने के बाद यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी लोगों को अनाज मिले। अभी उनका पीडीएस डीलर बहुत दूर रहता है। लोगों को वहां तक पहुंचने में परेशानी होती है। ऐसे में उन गांवों का जो कल्स्टर है, वहां जो सेल्फ हेल्प ग्रुप काम कर रहे हैं, ऐसे तीन से चार ग्रुप को अनाज वितरण करने का लाइसेंस दिया जाएगा। ताकि लोगों को राशन लेने के लिए अधिक दूर जाना नहीं पड़े।''


डॉ मनीष रंजन ने बताया कि इसके अलावा बहुत सारे सरकारी बिल्डिंग बने हुए हैं, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। उनमें से दो बिल्डिंग में रेसिडेंसियल स्कूल शुरू करने का निर्णय लिया गया है। एक लड़कों के लिए एक लड़कियों के लिए। ताकि उन बच्चों को यह सुविधाएं मिल पाए जो पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जा नहीं पाते। साथ ही 12 लड़कियों को झारखंड सरकार की समृद्ध विद्यालय योजना के तहत चल रहे हॉस्टल वाले स्कूलों में दाखिला कराया जाएगा।

अभी पौधारोपण का समय है, ऐसे में इन गावों में 20 हजार फलदार पौधे लगाए जाएंगे ताकि आनेवाले तीन चार सालों में ग्रामीण इसका लाभ जीवीकोपार्जण के लिए भी कर सकें।

इसके अलावा यह भी निर्णय लिया गया है कि इन इलाकों के जो युवक हैं, उन्हें सीआरपीएफ और सीआईएसफ की तरफ से ट्रेनिंग दी जाएगी। ताकि वह अगर चाहें तो आर्मी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, पुलिस में भर्ती होने के लिए परीक्षाएं दे सकें। पीने के पानी के लिए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से एक योजना सौंपी गई है, जिससे उन इलाकों में पीने के पानी को मुहैया कराया जाएगा।

राज्य सरकार के साथ वन विभाग, सेल, सीआरपीएफ के साथ मिलकर होगा काम


वहीं जिलाधिकारी अरवा राजकमल ने बताया कि, ''पिछले हफ्ते सड़क निर्माण विभाग और वन विभाग की ओर से इलाके का सर्वे किया गया था। लगभग 10 किलोमीटर की सड़क बननी है, ताकि उन इलाकों में सड़क पहुंचाई जा सके। इसके साथ ही इलाके के तेज विद्यार्थियों के लिए स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के नए नियुक्त अधिकारियों ने अपना शेड्यूल बनाया है, वह इन्हें मेडिकल, इंजीनियरिंग, एएनएम, ह्यूमैनिटी आदि की पढ़ाई कराएंगे।''

उनके मुताबिक, अगले तीन सप्ताह में सभी को आयुष्मान कार्ड मुहैया करा दिया जाएगा। चार जगहों पर कम्यूनिटी इंफ्रास्ट्रकर के रूप में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) सेंटर का निर्माण करेगी। यहां हेल्थ संबंधी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। जिसमें सांप काटने, सामान्य बीमारियों, गर्भवती महिलाओं का इलाज, टीकाकरण आदि की सुविधाएं लोगों को मिल सके। हमने यह भी तय किया है कि प्रत्येक 15 दिनों पर इसका रिव्यू किया जाए।

डिस्ट्रिक्ट कलक्टर (डीसी) ने यह भी बताया कि सेल यहां खनन करती है। ऐसे में उसे कहा गया है कि बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए छोटी बस का इंतजाम वह करे। साथ ही सेल को चार कम्यूनिटी सेंटर बनाने की सहमति सेल ने दी है। इन गांवों में पानी के लिए बोरिंग मशीन ले जाना संभव नहीं है। ऐसे में सोलर के माध्यम से पानी पहुंचाने का इंतजाम किया जा रहा है। इंजीनियरों ने इलाके का निरीक्षण कर लिया है। कुल 40 में से जिन गांवों में लोगों को वनाधिकार पट्टा मिल गया है, उनको केंद्र बनाकर फिलहाल काम शुरू कर दिया जा रहा है।

अरवा राजमकल के मुताबिक इलाके की भौगोलिक स्थिति काफी मुश्किल भले हैं। लेकिन यहां रह रहे लोगों को देखते हैं तो लगता है इन्हें सब कुछ दिया जाना चाहिए, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। इस काम में राज्य सरकार की विभिन्न संस्थाओं के अलावा वन विभाग, सेल, सीआरपीएफ से लगातार सामंजस्य के साथ काम करना होगा।

एनजीओं ने पहुंचाई बड़ी संख्या में मदद, बांटे कपड़े


इससे पहले बीते रविवार को रांची से युवाओं का एक दल इन गांवों में पहुंचा, जहां महिलाओं, बच्चों, पुरुषों को कपड़े, साबुन, मास्क, चप्पल आदि बांटे गए। 'अमन प्रयास' नामक संस्था की ओर से इलाके में महिलाओं को साड़ी की मदद के लिए छह हजार रुपए दिए गए।

गांव पहुंचे युवाओं में शामिल आलोक कुमार पांडेय ने बताया कि उन लोगों ने एक हफ्ते में रांची शहर में घर-घर जाकर कपड़े जमा किए। इसमें पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, समाजसेवी अतुल गेरा, चाइल्ड लाइन रांची की तनुश्री सरकार, रिटायर्ड आईएफएस आरपी सिंह, रांची यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के अधिकारियों सहित कई अन्य लोगों ने कपड़े और आर्थिक मदद दिए। रिंज एन सुरिल संस्था की प्रियंका जैन ने इन कपड़ों को धोने का जिम्मा लिया।

अभिषेक कुमार ने बताया कि रविवार को रांगरिंग गांव में एक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। जहां बाकि तीन गांव बोरदाबाटी, होंजोरदिरी, नुइयागड़ा के ग्रामीणों को भी बुलाया गया था। चारों गांव के प्रधान की मदद से इनके बीच 350 से अधिक साड़ी, 170 जोड़ी चप्पल, 200 साबुन की टिकिया, बच्चों के कपड़े, गर्भवती महिलाओं के लिए सुविधाजनक हल्के कपड़े (नाईटी) सहित पुरुषों के लिए भी कपड़े बांटे गए।

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