खुले में शौच से मुक्त घोषित उत्तर प्रदेश की जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है

Daya SagarDaya Sagar   3 Oct 2019 9:17 AM GMT

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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अपना देश खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के रिवरफ्रंट पर आयोजित स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम में इसकी घोषणा की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि ग्रामीण भारत के गांवों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर लिया है।

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के अनुसार 2 अक्टूबर 2014 को ग्रामीण भारत 38.70% ही खुले से शौच मुक्त था और 2 अक्टूबर 2019 को भारत 100% खुले से शौच मुक्त हो गया। लेकिन क्या यह सच है ? इसकी जमीनी पड़ताल के लिए गांव कनेक्शन की एक टीम खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गई। इन जिलों में ओडीएफ की जमीनी हकीकत क्या है, देखें रिपोर्ट-


गोरखपुरः कहीं पूरे, कहीं अधूरे, तो कहीं जर्जर मिले शौचालय

"आपको शौचालय मिला है बाबा?"

रिपोर्टर के इतना पूछने पर ही रामप्रीत निषाद (63 साल) बिफर उठते हैं। वह प्रधान और अधिकारियों को बुरा-भला कहकर अपनी आप बीती सुनाने लगते हैं।

गोरखपुर के ग्राम पंचायत जंगल अहमद अली शाह के हरिपुर टोला निवासी रामप्रीत कहते हैं, "प्रधान के घर और ब्लॉक कार्यालय पर सैकड़ों बार जा चुका हूं। कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। लिस्ट में नाम होते हुए भी मुझे अभी तक शौचालय नहीं मिला। योगी और मोदी जी घर-घर जाकर थोड़े ही देखेंगे कि सबको शौचालय मिला या नहीं। यह तो अधिकारियों और प्रधान का काम है, जो सिर्फ लूट मचाए हैं।"

जंगल अहमद अली शाह ग्राम पंचायत के प्रधान माधव प्रसाद खुद स्वीकार करते हैं कि लगभग 150 घरों में अभी भी शौचालय का निर्माण बाकी है। पैसे की कमी का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "पंचायत फंड में पैसे की कमी हो गई थी इसलिए गांव के सभी घरों में शौचालय का निर्माण नहीं हो पाया। इस बारे में संबंधित अधिकारी और जिला प्रशासन को सूचित कर दिया गया है। फंड आते ही शेष बचे शौचालयों का निर्माण पूरा करा लिया जाएगा।"

जंगल अहमद अली शाह, गोरखपुर के सत्तार अहमद के घर में 6 महीने पहले बनी शौचालय की टंकी, यह शौचालय आज तक पूरा नहीं हो पाया है

देश के कई हिस्सों में शौचालयों के निर्माण में अधिकारियों और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने बहुत ही लापरवाही बरती है और यह हमें आसानी से देखने को भी मिल जाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहजनपद गोरखपुर में भी कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिला।

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की वेबसाइट पर अपलोड डेटा के मुताबिक, 2014 से लेकर 1 अक्टूीबर 2019 तक कुल 5 लाख 99 हजार 963 गांव ओडीएफ हो चुके हैं, इनमें से 5 लाख 74 हजार 662 गांव को सत्या्पित भी किया गया है। वेबसाइट के मुताबिक 1 अक्टूबर 2019 तक भारत 100% खुले में शौच मुक्त हो चुका है। यानि भारत ने अपने लक्ष्य के मुताबिक 2 अक्टूूबर 2019 तक ओडीएफ स्टेटस हासिल का लिया।

स्वच्छ भारत मिशन के वेबसाइट के अनुसार पूरा भारत अब ओडीएफ है

पंचायती राज विभाग के अक्टूबर, 2017 के आंकड़ों में गोरखपुर को उत्तर प्रदेश का सबसे तेज खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) हो रहा जिला घोषित किया गया था। वहीं अक्टूबर, 2018 आते-आते पूरा जिला ओडीएफ घोषित कर दिया गया।

जिले के ओडीएफ होने की झलक हमें गोरखपुर के जंगल औराई गांव में देखने को भी मिली, जिसे सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सांसद रहते हुए गोद लिया था। चौदह टोलों और एक हजार से अधिक घर वाले इस बड़े गांव में लगभग सभी घरों में शौचालय प्रयोग होते दिखे।

गांव की मुख्य सड़क पर बैठे बुजुर्ग पंचम प्रसाद कहते हैं, "गांव पहले से काफी बदल गया है। जिस सड़क पर हम बैठे हैं, पहले वह शौच की वजह से गंदा रहता था। अब गांव में सबके यहां शौचालय बन गया है और लोगों ने भी अब शौचालय में जाने की आदत डाल ली है। इसलिए हम लोग यहां पर आराम से बैठे हुए हैं।" पंचम प्रसाद के साथ बैठे बुद्धु प्रसाद और चार अन्य साथी भी उनके हां में हां मिलाते हैं।

जंगल औराही के बुजुर्ग बताते हैं कि जिस रास्ते पर वे आज बैठे हैं, वह रास्ता एक साल पहले तक बैठने लायक नहीं था

लेकिन इस गांव के अगल-बगल के गांवों में स्थितियां इनसे अलग हैं। जंगल औराई के ठीक बगल में स्थित जंगल धूसड़ के घोघड़ा टोला की सुभावती देवी (56 वर्ष) गांव के चौराहे पर ही एक छोटा सा चाय का दुकान चलाती हैं। शौचालय के बारे में पूछने पर आधा-अधूरा बना शौचालय दिखाने लगीं, जिसमें सीट तो लगी है लेकिन फर्श नहीं बना है और ना ही दरवाजे लगे हैं।

सुभावती देवी कहती हैं, "छह महीने से काम यहीं पर रुका हुआ है। ना पैसा आया और ना ही पूरा शौचालय बना। हम लोग अभी भी शौच के लिए बाहर जाते हैं।" बगल में बैठी चांदमती देवी (62 वर्ष) ने भी बताया कि उनके 4 भतीजों में से किसी को भी शौचालय नहीं मिला। गांव के ही राजेश प्रसाद (48 वर्ष) बताते हैं कि टोले में 100 से ऊपर घर हैं जिनमें 40 से अधिक घरों में अभी भी शौचालय नहीं है या है भी तो आधा-अधूरा ही है।

सुभावती देवी के घर में शौचालय की सीट तो लग गई लेकिन फर्श और दरवाजा आत तक नहीं बैठ पाया। जंगल धूसड़, गोरखपुर

जंगल औराई के दूसरी तरफ स्थित जंगल अहमद अली शाह के लक्ष्मीपुर टोले के ग्रामीणों ने सड़क पर ही हमें घेर लिया। पूछने पर बताने लगे कि टोले में सिर्फ चार घरों में शौचालय बना है। बाकी के लोग बाहर ही शौच के लिए जाते हैं। वे रिपोर्टर से गुजारिश करने लगे कि प्रधान से कहकर उन्हें जल्दी ही शौचालय और आवास दिलवा दें।

गांव के सत्तार अहमद बताते हैं, "हम प्रधान के पास कई बार अर्जी लेकर गए। वह हर बार आधार कार्ड की फोटो कॉपी और फोटो मांगते हैं। अगली बार जाओ तो फिर से यही सब मांगने लगते हैं। हम लोग फॉर्म भर-भर के थक गए लेकिन शौचालय नहीं मिला। अभी भी लोग खेतों में शौच के लिए जाते हैं। जब पानी बरसता है तो लोग सांप-बिच्छू के डर से सड़क पर ही बैठ जाते हैं। क्या करें मजबूरी है।"

बगल में खड़े कमरुद्दीन अहमद बताते हैं कि सरकारी पैसा आता है तो पता ही नहीं चलता। जो थोड़ा-बहुत काम होता है, वह प्रधान के टोले और उनके जान-पहचान वाले लोगों का होता है। गोरखपुर के इन गांवों से गुजरते वक्त हमें कई लोग ऐसे लोग मिले जिन्होंने बताया कि शौचालय, सरकारी आवास और अन्य सरकारी सुविधाओं के मिलने में उन लोगों को प्राथमिकता मिली है जो प्रधान के टोले के हैं या प्रधान के करीबी हैं। ये सभी ऐसे गांव थे जो कि कई टोलों से मिलकर बने हैं और जिनकी जनसंख्या 500 से ऊपर है।


कुरमौल, गोरखपुर के जर्जर शौचालय

उधर कभी 'लोहिया गांव' रहे कुरमौल की समस्या दूसरी है। गोरखपुर के पिपरौली ब्लॉक में स्थित इस गांव के लगभग सभी घरों में शौचालय है लेकिन पचास फीसदी से अधिक घरों में इसका प्रयोग नहीं होता और गांव के लोग बाहर शौच के लिए जाने पर मजबूर हैं।

गांव के राजेंद्र यादव के दुआर पर बने शौचालय में भूसा भरा हुआ मिला। पूछने पर उनकी पत्नी कहती हैं, "शौचालय बनाने के नाम पर खानापूर्ति की गई। टंकी के नाम पर एक मीटर से भी कम का गढ्ढा खोदा गया, जो बार-बार भर जाता था। इसलिए हम लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते।"

उन्होंने अपने बेटे के नाम से बना एक और शौचालय दिखाया जिसका सीट टूटा हुआ था। इस शौचालय का प्रयोग अब घर की महिलाएं स्नानघर और कपड़े बदलने के लिए करती हैं।

राजेंद्र यादव के घर में बने शौचालय का प्रयोग गाय का चारा रखने और कपड़े बदलने के काम में आता है

वहीं गांव की बेइला देवी के घर में शौचालय के नाम पर सिर्फ टंकी बची है, जो 1 मीटर से भी कम गहरी है। पूछने पर अपनी देशज भाषा में वह बताती हैं, "टूट गईल, गिर गईल, बहरा गईल। का बताई का भईल।" बेइला देवी ने आगे बताया कि जब शौचालय अपने आप टूटकर गिरने लगा तो उन्होंने भी उसे गिर जाने दिया क्योंकि वह जगह घेर रहा था।

दरअसल कुरमौल गांव के लोगों को अखिलेश यादव की पूर्ववर्ती सरकार के समय ही शौचालय मिल गया था। लेकिन इन शौचालयों को बनाने में निर्धारित मानको को दरकिनार किया गया और खराब मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया। इसलिए गांव के कई शौचालयों के दीवार जर्जर दिखे तो कहीं उसका टंकी लीकेज मिला।


क्या कागजों में ओडीएफ हो गया बाराबंकी?

शौचालय मिला है? इस सवाल पर 40 साल की रमावती देवी घर के बाहर बने शौचलय को दिखाते हुए कहती हैं- ''मिला तो है, लेकिन अधूरा बना है। प्रधान ने सिर्फ सीट बैठाकर दे दिया, न टैंक है और न ही छत पड़ी है। अब जंगल में ही जाते हैं, इसमें तो जाएंगे नहीं।''

रमावती देवी उत्त र प्रदेश के बाराबंकी जिले के बजगहनी गांव की रहने वाली हैं। बजगहनी गांव में ज्याएदातर शौचालय अधूरे बने हैं। किसी में सीट है तो टैंक नहीं है और किसी में सीट, टैंक और छत तक नहीं है, बस ढांचा खड़ा कर दिया गया है। बजगहनी गांव का यह हाल तब है जब बाराबंकी जिला और यह गांव ओडीएफ (खुले में शौच मुक्तक) घोषित कर दिया गया है।

बजगहनी गांव की यह कहानी बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाओकांक्षी परियोजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए कैसे गांव और जिले कागजों में ओडीएफ घोषित किए जा रहे हैं।

बजगहनी गांव के ही रहने वाले अजय कुमार बताते हैं, ''बरसात से पहले प्रधान आए थे और यह शौचालय बनवा गए। हमने गड्ढा भी खोदा, लेकिन बरसात में वो भर गया। यह आधा बना शौचालय पड़ा हुआ है। इसका कोई इस्तेममाल नहीं करता। घर के सब लोग खेत में ही शौचा के लिए जाते हैं।''

अजय कुमार आधे बने शौचालय को दिखाते हुए कहते हैं, ''इस शौचालय के लिए हमारे पास कोई पैसा भी नहीं आया है। प्रधान ने ही बनवाया है और कह गए हैं कि दोबारा आकर बनवा देंगे, लेकिन फिर वो आए ही नहीं। करीब 3 महीने होने को आए हैं, तबसे यह ऐसे ही पड़ा है।''

बाराबंकी के इस शौचालय में आज तक छत नहीं लग पाई। गढ्ढा भी खुला छोड़ दिया गया

बता दें शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से 12 हजार रुपए दिए जाते हैं। हालांकि कई गांव में प्रधान द्वारा ही शौचालय बनाए गए, ऐसे में सीधे तौर पर 12 हजार रुपए लाभार्थी के खाते में नहीं भेजे गए।

इस संबंध में जब बजगहनी गांव के प्रधान आशोक कुमार से बात की गई तो उन्होंिने बताया, शौचालय के लिए लाभार्थी के खाते में पैसे भेजने का ही प्रावधान है। लेकिन कई बार लोग इस पैसे का इस्तेामाल किसी और चीज के लिए कर देते थे। इस वजह से कई जगह प्रधानों के द्वारा शौचालय बनाए गए हैं। जहां तक बात अधूरे बने शौचालय की है तो जब शौचालय बनना शुरू हुए तो बरसात का मौसम आ गए। इस वजह से यह अधूरे हैं। जल्दन ही इनका काम पूरा करा दिया जाएगा।

हालांकि प्रधान की इस बात को बजगहनी गांव के ही रहने वाले रामचंद्र चौहान (38 साल) की कहानी झुठला देती है। रामचंद्र चौहान अपना आधा बना शौचालय दिखाते हुए कहते हैं, ''देखिए इसमें टैंक ही नहीं है। जब यह इस्तेनमाल करने लायक ही नहीं तो क्यान इस्तेेमाल करें। अब मजबूरी में शौच के लिए बाहर ही जाना होता है।'' यह पूछने पर की यह शौचालय कब बना था, रामचंद्र कहते हैं- ''इसे बने तो 6 महीने होने आए। यानि बरसात के मौसम से काफी पहले।''

रामचंद्र ने गांव कनेक्शयन की टीम को दो शौचालय दिखाए दोनों ही इस्ते माल करने लायक नहीं थे। उनका दावा है कि गांव में 99 प्रतिशत शौचालय बेकार पड़े हैं।

इतना ही नहीं गांव में जो आवास बनाए गए हैं उनमें भी शौचालय बनाकर नहीं दिए गए। गांव की रहने वाली आशा देवी को भी एक ऐसा ही आवास मिला है। आशा देवी बताती हैं, हमारे मकान में शौचालय नहीं है। आवास में शौचालय मिलेगा ऐसा हमें बताया गया था, लेकिन नहीं मिला। प्रधान ने कहा है कि शौचालय दे देंगे। न जाने कब तक आएगा।

बाराबंकी का यह शौचालय प्रयोग के लायक नहीं है

बाराबंकी जिले में 1169 ग्राम पंचायत और 1845 राजस्व ग्राम हैं और जिले की कुल आबादी 32 लाख 60 हजार 699 है। डीपीआरओ रणविजय सिंह बताते हैं कि बेसलाइन सर्वे 2012 के अनुसार जिले को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। जिले में अब तक करीब तीन लाख शौचालय बनवाए जा चुके हैं। अभी हाल ही में सर्वे कराया गया है जिसमें 15000 और पात्र चयनित किए गए हैं जिनके भी शौचालय बनवाने का काम शुरू हो गया है।

बाराबंकी जिले सूरतगंज ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत बसारी की रहने वाली 45 वर्षीय रुखसाना बानो बताती हैं, "प्रधान द्वारा बताया गया कि हमारा शौचालय बनाया जाएगा। हमारे घर में शौचालय के लिए गड्ढा भी खोद दिया गया। करीब एक साल बीत गया। शौचालय नहीं बना। इस बीच हमने कई बार प्रधान से शौचालय बनवाने की बात कही लेकिन ग्राम प्रधान ने कहां अब हम तो शौचालय नहीं बनवा पाएंगे तो घर के बीच में खुदा गड्ढा भी हमने पाट दिया है। घर के सभी लोग अभी भी शौच के लिए बाहर ही जाते हैं।"

हैदरगढ़ तहसील के द्विवेदी गंज ब्लॉक के कर्मा मऊ निवासी 65 वर्षीय श्यामा कहती हैं, "इस बुढ़ापे में बाहर जाने में बहुत दिक्कत होती है। कई बार प्रधान जी से कहा पर हमें शौचालय नहीं मिला। बाहर शौचालय जाने से कई बार गिरकर चोट भी लग चुकी है।"

टाडपुर निवासी राजेंद्र सिंह कहते हैं कि करीब सात-आठ माह पहले हमारे शौचालय के टैंक की खुदाई हुई। लेकिन उसके आगे का काम हुआ ही नहीं। 22 वर्षीय रेशमा कहती हैं क्या फायदा ऐसे शौचालय का जिसका टैंक ही नहीं बना है।


हरदोई: किसी में दरवाजा तो किसी में शौचालय सीट ही नहीं

रामदेवी (65 वर्ष) अपने अधूरे बने शौचालय को दिखाती हैं जो तीन महीने पहले बना था जिसमें अभी तक सीट नहीं रखी गई है। वह बताती हैं, "हमने केवल जगह बताई थी बाकी का काम ठेकेदार ने किया। बरसात में बाहर जाने में बहुत दिक्कत है। बहुत बार कह चुके हैं कि इसको पूरा कर दो पर कोई सुनने वाला नहीं है। हमारे खाते में न कोई पैसा आया न हमें जानकारी कि इसमें कितनी लागत आयी है।" रामदेवी हरदोई जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर संडीला ब्लॉक के सुन्दर पुर ग्राम पंचायत की रहने वाली हैं।

गाँव कनेक्शन ने जब इस गाँव में बने 10-12 शौचालय देखे तो सबकी स्थिति लगभग एक जैसी ही थी। किसी का दरवाजा टूटा मिला तो किसी में सीट नहीं रखी। शौचालय के बगल में रखे टूटे दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए रामप्यारी (35 वर्ष) कहती हैं, "जब शौचालय बना था कुछ दिन बाद ही इसका दरवाजा टूट गया। पर्दा लगाकर बच्चे जाते हैं तो डर लगा रहता है। हमने 12,000 रुपए प्रधान के हाथ में दे दिए थे। सोचा था अच्छा बन जाएगा तो बाहर नहीं जाना पड़ेगा।"

सुन्दरपुर ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान याशीन अली ने अधूरे बने शौचालयों के बारे में बताया, "हमारी पंचायत में एक साथ 400 शौचालय आये थे जिसमें 350 बन गये हैं। बरसात की वजह से 40-50 अधूरे रह गये हैं। एक महीने के अन्दर अधूरे शौचालय बनवा लेंगे। पैसे हम नहीं लेते है, लाभार्थी के खाते में जाते हैं।"

हरदोई की इस शौचालय को देखकर आप स्थिति का अंदाजा अपने आप लगा सकते है

संडीला के सहायक खंड विकास अधिकारी अजय अवस्थी कहते हैं, "अभी संडीला खुले से शौच मुक्त नहीं हुआ है। चार-पांच ग्राम पंचायत ही खुले से शौच मुक्त हुई हैं। अगर अधूरे शौचालय बने हैं तो उसे पूरा कराना चाहिए। लाभार्थी अगर 12000 की प्रोत्साहन राशि खुद लेने का इच्छुक होता है तो उसके खाते में पैसे दे दिए जाते हैं। अगर लाभार्थी कहता है हमें पैसे नहीं चाहिए प्रधान खुद ही बनवा दें क्योंकि एक शौचालय बनवाना एक व्यक्ति के लिए मुश्किल होता है तो प्रधान बना देता है।"

वहीं सूचना के अधिकार पर काम कर रहे अशोक भारती ने बताया, "स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण की वेबसाइट के अनुसार सुन्दरपुर ग्राम पंचायत में 341 शौचालय बन चुके हैं। प्रति शौचालय 12,000 की राशि के अनुसार 40 लाख 92 हजार रुपए की राशि खर्च हुई है। लेकिन जो शौचालय बने हैं उसमें 12,000 की गुणवत्ता नहीं है। एक शौचालय में मुश्किल से 4000-6000 में पूरा किया गया है। इस हिसाब से ये शौचालय आधी राशि में ही तैयार हुए हैं, सभी ग्राम पंचायतों की लगभग ऐसी ही स्थिति है।"


ललितपुर: जमीनी हकीकत दावों से एक दम अलग

रिपोर्ट की मानें तो बेसलाइन में ललितपुर ओडीएफ यानि खुले में शौच से मुक्त हो गया है। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

मड़वरा ब्लॉक के गांव कारीटोरन गाँव की सुखवती (46 वर्ष) कहती हैं, "सूरज निकलने से पहले और अस्त होने के बाद शौच जाना पड़ता है। अंधेरे में डर भी लगता है। किसी को साथ में लेकर जाना पड़ता है। प्रधान के हाथ जोड़े, पैर पड़े तब जाकर गड्ढा खुदवाया, लेकिन शौचालय अभी तक नहीं बना। उनसे पूछती हूं तो कहते हैं कि तुम्हारे नाम का अभी आया नहीं है।"

इसी गाँव की वाती (55 वर्ष) बताती हैं,"रात में खाना खाने के बाद एक ही चिंता सताती हैं कि सुबह जल्दी उठकर शौच जाना है। प्रधान ने शौचालय बनवाया ही नही है और हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि शौचालय बनवा सकें।"

झाँकर गाँव के मखन (55 वर्ष) शौचालय को दिखाते हुए बताते हैं, "शौचालय में लकड़ी पड़ी है। बरसात से गड्ढा पट गया। अब मैंने शौचालय में लकड़ी रख दिया है। अभी भी शौच के लिए बाहर ही जाना पड़ता है।"

ललितपुर जनपद के 6 ब्लॉक की 416 ग्राम पंचायतों के 679 गांवों में एसबीएम बेबसाइट के अनुसार बेसलाइन पर 1,79,701 लाख परिवार दर्ज थे। वित्तीय वर्ष - 2014-15 से 2019-20 कुल 1,17,021 लाख परिवारों को स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाये गये। नई फीडिंग के बाद बेबसाइट पर अब जिले में 228656 लाख परिवार हैं। इन परिवारों में से वर्ष 2013-14 के पहले निर्मल भारत अभियान जैसी विभिन्न योजनाओं से 62,680 हजार परिवारों के शौचालय कागजों पर बना दिये गये हैं। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।

आधा-अधूरा बना शौचालय जो भूसा रखने के काम आ रहा है

"2013-14 के पहले निर्मल भारत अभियान से शौचालय बना करते थे। उस समय खातों का कोई हिसाब किताब नहीं था। प्रधान और सेक्रेटरी अपने हिसाब से काम करते थे। ज्यादातर जगहों पर लापरवाही बरती गई है। इसकी जानकारी सभी अधिकारियों को है।" यह बात नाम ना छापने की शर्त पर एक रिटायर्ड एसडीओ पंचायत ने कही। उन्होंने आगे बताया कि 62,680 शौचालय निर्मल भारत अभियान के तहत बस कागजों पर ही बने हैं।

महरौनी ब्लॉक की बम्होरीघाट में भी शौचालयों की स्थिति ठीक नहीं है। गांव पूरन देवी (40 वर्ष) कहती हैं, "करीब 80 शौचालय आधे अधूरे पड़े हैं। उनमें से एक हमारा भी है। किसी के गेट नहीं हैं तो किसी की छत। प्रधान से जब भी पूछती हूं तो वो कहते हैं कि अब हमारे पास पैसे नहीं है, बनवाएं कैसे।"

इन जिलों के अलावा गांव कनेक्शन की टीम सीतापुर और शाहजहांपुर भी गई। इन जिलों के कई जगह की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही मिली। कई गांवों के लोगों की लापरवाही भी देखने को मिली। लोगों को शौचालय बनाने के लिए पैसे तो मिले लेकिन उन्होंने उनका प्रयोग किसी और काम में कर लिया।

रिपोर्ट- गोरखपुर से दया सागर

बाराबंकी से रणविजय सिंह और वीरेंद्र सिंह

हरदोई से नीतू सिंह,

ललितपुर से अरविंद सिंह परमार

सीतापुर से मोहित शुक्ला

शाहजहांपुर से रामजी मिश्रा

यह भी पढ़ें- क्या सच में खुले में शौच मुक्‍त (ODF) हो सकेगा भारत?


   

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