बीएचयू प्रवेश परीक्षा: कोरोना, बाढ़, ट्रांसपोर्टेशन के कारण आधे छात्रों की छूट रही प्रवेश परीक्षा, फिर भी प्रशासन एंट्रेंस कराने पर अड़ा

छात्रों के भारी विरोध के बाद बीएचयू के ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन के लगभग 2 दर्जन से अधिक कोर्सेज के लिए प्रवेश परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं, जो सितंबर माह के अंत तक चलेंगी। हालांकि इन परीक्षाओं में उपस्थित होने वाले छात्रों की संख्या आधे से भी कम है, जिसकी प्रमुख वजह कोरोना महामारी है।

Akash PandeyAkash Pandey   2 Sep 2020 1:18 PM GMT

-आकाश पांडेय

वाराणसी के रहने वाले अनिल 16 अगस्त को हुई उत्तर प्रदेश खंड शिक्षा अधिकारी (UP BEO 2020) के परीक्षा के दौरान कोरोना संक्रमित हो गए थे। इसके बाद उनके पूरे परिवार को कोरोना हो गया। कोरोना के कारण अनिल के पिता जी का देहांत हो गया। अनिल को इसके बाद बीएचयू में एमए समाजशास्त्र की प्रवेश परीक्षा देनी थी।

अनिल जब अपनी बीएचयू की प्रवेश परीक्षा सेंटर पर जाकर पूछते हैं कि क्या कोरोना पॉजिटिव बच्चों के लिए अलग से परीक्षा देने की व्यवस्था है तो प्रशासन ने उन्हें परीक्षा देने से मना कर दिया। उन्हें परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया, जबकि बीमार लोगों के लिए अलग से व्यवस्था करने की बात परीक्षा कराने वाली एजेंसी कर रही है।

कोरोना महामारी के विकट समय में सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन देश में होने वाली तमाम प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करा रही हैं। इसमें नीट, जेईई, यूपीएससी, क्लैट, बीएड, नेट/जेआरएफ, और तमाम विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएं शामिल हैं। गौरतलब है कि अब भारत में प्रतिदिन के कोरोना केस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा आते हैं और कुल कोरोना मरीजों के मामले में हम अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर हैं। ऐसे

इसको लेकर छात्र लगातार सोशल मीडिया से लेकर अन्य माध्यम से केंद्र सरकार से इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं। इन परीक्षाओं को लेकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बीएचयू के एक छात्र नीरज लगातार 17 दिन से सत्याग्रह कर रहे हैं। बीएचयू में भी प्रवेश परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। 24 अगस्त से ही रोज प्रवेश परीक्षाएं लगातार चालू हैं।

मुजफ्फरपुर, बिहार से वाराणसी रूलर डेवलपमेंट मैनेजमेंट और सोशल वर्क की एमए की प्रवेश परीक्षा देने आने वाले प्रियांक बताते हैं कि - मेरा सेंटर सारनाथ में पड़ा था। सेंटर पर सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल नहीं रखा जा रहा है। मुझे परीक्षा देने के लिए मुजफ्फरपुर से वाराणसी आना पड़ा। यातायात की और वाराणसी में रूकने की बड़ी समस्या रही क्योंकि कोविड के इस भयानक समय में हमें कोई अपने घर में क्यों ही रखेगा? सेंटर पर लगभग 30% से 40% बच्चे ही आ रहे हैं।

बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले पीयूष की भी परीक्षा भी छूट गई है। पीयूष इस वक्त बाढ़ से परेशान हैं। पीयूष बताते हैं कि यातायात का साधन उपलब्ध न होने के कारण एक वैकल्पिक रास्ते के होते हुए भी मैं परीक्षा नहीं दे पाया। इस कारण से हो सकता है आगे मेरी डीयू और जेएनयू की प्रवेश परीक्षा भी छूट जाए और मुझे घर पर ही बैठना पड़े। गौरतलब है कि बीएचयू के बैचलर्स और मास्टर्स के लगभग 2 दर्जन से अधिक कोर्सेज के लिए देश भर के लगभग 5 लाख विद्यार्थियों ने फॉर्म भरा है।

मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के रहने वाले धर्मेंद्र पाल फोन पर बताते हैं, "यातायात की सुविधा ना होने के कारण उनकी एमए इतिहास की प्रवेश परीक्षा छूट गई। कोई यातायात का साधन नहीं था। मेरे पिताजी किसान हैं तो मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं गाड़ी रिजर्व करके जा पाऊं।"

मध्यप्रदेश के ही रीवा के रहने वाले अंकित बताते हैं कि उनकी एमए समाजशास्त्र की प्रवेश परीक्षा इसलिए छूट गई क्योंकि उनके पास यातायात की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले मंटु और उनके कुछ साथियों ने बीएचयू की परीक्षा देने के लिए एक बोलेरो रिज़र्व की, जिसका किराया सात हजार था। मंटु बताते हैं कि कोरोना के खतरे के बीच उनका लगभग पंद्रह सौ रुपए खर्च हो गया।

बलिया के रहने वाले मंगलेश हाल ही में हुई यूपी बीएड की प्रवेश परीक्षा में बैठने के बाद कोरोना से संक्रमित हो गए और अभी क्वरंटीन हैं इस कारण से उनकी प्रवेश परीक्षा भी छूट गई। मंगलेश बताते हैं, "मेरी बीएचयू की तीन प्रवेश परीक्षाएं छूट गई हैं। मेरी हिंदी, राजनीति विज्ञान और बीएचयू बीएड की तीनों परीक्षाएं छूट जाएंगी। साधन की भी परेशानी है। वर्तमान में आर्थिक स्थिति भी खराब है। बनारस जाने पर तीनों परीक्षाओं के दौरान रूकने और खाने-पीने में ज्यादा खर्च हो जाएगा इस कारण से भी मैं नहीं जा पाया।"

उधर नीट,जेईई समेत तमाम प्रवेश परीक्षाओं को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने की मांग लेकर 17 दिनों से बीएचयू में ही धरने पर बैठे नीरज कहते हैं, "सरकार और प्रशासन बेशर्म हो चुका है। इनको छात्रों और उनके परिवार के जान की कोई चिंता नहीं है। कोरोना के प्रतिदिन के बढ़ते केस और मौतें इसकी भयावहता दिखा रही है पर सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। बीएचयू प्रशासन को परीक्षा में शामिल हुए बच्चों का प्रतिशत बताना चाहिए जिससे सारी सच्चाई सामने आ जाए।"

दूसरी तरफ बीएचयू प्रशासन की तरफ से पीआरओ राजेश सिंह का कहना है कि प्रशासन सभी एहतियात बरतते हुए परीक्षाएं आयोजित करा रहा है। जो बच्चे परीक्षा नहीं देना चाहते या जो लापरवाही कर रहे हैं बस वही बच्चे परीक्षा देने नहीं आ रहे हैं। हांलाकि बीएचयू परीक्षा में शामिल हुए बच्चों और अनुपस्थिति बच्चों का आधिकारिक आंकड़ा नहीं दे रहा है।

देश के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक कहते हैं कि बच्चे परीक्षा देना चाहते हैं। इसलिए प्रवेश पत्र निकाल रहे हैं। जबकि असल बात यह है कि कोई भी छात्र अपना सेंटर जानने के लिए प्रवेश पत्र निकालता है, उसके बाद ही ये परिस्थिति बनती है कि वो जा पाएंगे या नहीं। मंत्री जी ने कहा सभी बच्चे परीक्षा देना चाहते हैं तो ऐसा क्या कारण है कि बीएचयू प्रवेश परीक्षा की उपस्थिति 40% तक रह रहीं हैं। क्या छात्र परीक्षा से डरे हैं या कोरोना से, इसे आसानी से समझा जा सकता है।

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