भारत में 45 फीसदी कामगारों का वेतन 10 हजार से भी कम- रिपोर्ट

श्रम मंत्रालय के सामयिक श्रम बल सर्वे (PLFS) के अनुसार देश में 72 फीसदी वैतनिक कामगार ऐसे हैं जिनका मासिक वेतन सातवें वेतन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम मासिक आय 18 हजार रुपये से भी कम है।

Daya SagarDaya Sagar   9 Aug 2019 1:12 PM GMT

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भारत में 45 फीसदी कामगारों का वेतन 10 हजार से भी कम- रिपोर्ट

भारत में 45 फीसदी कामगारों का वेतन 10 हजार रुपये से भी कम है, वहीं 32 फीसदी महिला कामगारों को हर महीने 5000 रुपये से भी कम का वेतन मिलता है। हाल ही में जारी हुई सामयिक श्रम बल सर्वे (Periodic Labor Force Survey-PLFS) में यह आंकड़े निकलकर सामने आए हैं। श्रम मंत्रालय द्वारा कराए गए इस सर्वे में 4 लाख 33 हजार 339 व्यक्ति शामिल थे। इसमें 2,46,809 ग्रामीण और 1,86,530 शहरी कामगार शामिल थे। यह सर्वे जुलाई 2017 से जून 2018 के दौरान किया गया।

कामगारों पर कराए गए इस सर्वे में कामगारों की स्थिति, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा और वेतन के बारे में सवाल पूछे गए। इस सर्वे के अनुसार देश के 12 फीसदी कामगारों का वेतन 5 हजार जबकि 45 फीसदी कामगारों का वेतन 10 हजार रुपये से भी कम है।

72 फीसदी वैतनिक कामगारों को नहीं मिलता सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन

सातवें वेतन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम मासिक आय 18 हजार रुपये पाने वाले वैतनिक कामगारों की संख्या देश में महज 28 फीसदी है। यानी देश में 72 फीसदी वैतनिक कामगार ऐसे हैं जिन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम आय भी नहीं मिलती। ध्यान रखने वाली बात है कि इसमें सिर्फ वैतनिक कामगार शामिल नहीं है। अगर इसमें अवैतनिक कामगारों की संख्या को जोड़ लिया जाए तो आंकड़ा और बड़ा हो सकता है।



महिला कामगारों की स्थिति पुरूषों से खराब

इस सर्वे में यह भी बताया गया है कि लिंग और क्षेत्र के आधार पर कामगारों के वेतन में अंतर किया जाता है। मसलन महिलाओं का औसत वेतन पुरूषों और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का वेतन शहरी क्षेत्र के लोगों से कम है। सर्वे के अनुसार महिला कामगारों की संख्या, वेतन और सामाजिक स्थिति पुरूष कामगारों की तुलना में खराब है।

54.9 प्रतिशत ग्रामीण पुरूषों के मुकाबले सिर्फ 18.2 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं ही सक्रिय रूप से श्रमबल में हैं। वहीं 57 प्रतिशत शहरी पुरूषों के मुकाबले सिर्फ 15.9 फीसदी शहरी महिलाएं श्रमबल का हिस्सा हैं। अगर हम वेतन की बात करें तो 10 हजार से कम वेतन वाली महिलाओं की संख्या 63 फीसदी से अधिक है। वहीं 5 हजार से कम वेतन वाली महिलाओं की भी संख्या 32 फीसदी से अधिक है।

शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण भारत में वेतन कम

इस सर्वे के अनुसार शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में वेतन या मजदूरी काफी कम है। ग्रमीण भारत में 10 हजार से कम वेतन वाले कामगारों की संख्या 55 फीसदी तक है जबकि शहरी भारत में यह संख्या महज 38 फीसदी है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश में सिर्फ 3 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनका वेतन 50 हजार रुपये प्रतिमाह से अधिक है जबकि 1 लाख से अधिक वेतन वाले कामगारों की संख्या सिर्फ 0.2 फीसदी है। आपको बता दें कि इस सर्वे में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के कामगारों को शामिल किया गया है।

नियमित वेतन वाले कामगारों की संख्या में महज पांच फीसदी का इजाफा

इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में नियमित वेतन वाले कामगारों की संख्या महज 5 प्रतिशत तक बढ़ी है। गौरतलब है कि नियमित वेतन लोगों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा देता है। इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का वेतन भी अनियमित क्षेत्र के कामगारों की तुलना में बेहतर होती है। लेकिन भारत में ऐसे लोगों की संख्या अभी भी काफी कम है।



50 फीसदी कामगारों को नहीं मिलती पीएफ, पेंशन और छुट्टी की सुविधा

हालांकि नियमित वेतनभोगी कामगारों में 71 फीसदी कामगार ऐसे हैं जिनके पास कोई लिखित कॉन्ट्रैक्ट नहीं होता। वहीं 50 फीसदी वेतनभोगी कामगारों को पीएफ और पेंशन की सुविधा नहीं मिलती। जबकि नियमित कामगारों में 54.2 फीसदी कामगारों को वैतनिक छुट्टी नहीं मिलती। उन्हें अपना वेतन कटवाकर छुट्टी लेना पड़ता है।



कूड़ा उठाने वाले मजदूरों और चौकीदारों का वेतन सबसे कम

इस सर्वे के अनुसार कूड़ा उठाने वाले मजदूरों और चौकीदारों का वेतन सबसे कम है। उन्हें औसतन 7000 रुपये प्रतिमाह मिलता है, जबकि खेतों में काम करने वाले खेतिहर मजदूरों की औसत मासिक आय 8000 रुपये है।

33 फीसदी युवा कुशल कामगार बेरोजगार

सर्वे के मुताबिक देश में 33 फीसदी युवा (15-29 वर्ष) ऐसे हैं जिन्हें किसी ना किसी स्किल में कुशलता प्राप्त है लेकिन वे बेरोजगार हैं। जबकि देश में कुल कुशल बेरोजगारों की संख्या 18 फीसदी है। महिला कुशल बेरोजगार कामगारों की संख्या 21 जबकि पुरूष कुशल कामगारों की संख्या 17 फीसदी है।

वहीं केंद्र सरकार का दावा है कि उन्होंने स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया और मुद्रा योजना के द्वारा देश के लाखों युवाओं को रोजगार दिया है। लेकिन श्रम मंत्रालय की ही यह सर्वे रिपोर्ट सरकार के दावों को कहीं ना कहीं खोखला साबित करती है। हाल ही में आए राष्ट्रीय राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि देश में बेरोजगारी की दर पिछले 45 सालों में सबसे अधिक है।



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