ओडिशा का प्राचीन गांव, जहां हर घर में पटचित्र कलाकार रहते हैं

रघुराजपुर गांव के निवासी कई पीढ़ियों से विश्व प्रसिद्ध पटचित्रों और ताड़ के पत्तों पर कलाकारी के माध्यम से पौराणिक कथाएं सुना रहे हैं। गांव कनेक्शन ने ओडिशा के पुरी जिले में स्थित इस प्रसिद्ध गांव की यात्रा की और कलाकारों से उनके अनुभवों का सुना।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   11 Feb 2020 12:00 PM GMT

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पुरी जिले के रघुराजपुर गांव के पटचित्र कलाकार अवकाश नायक जब 12 या 13 वर्ष के थे, तभी से उनके पिता ने उनको पटचित्र कलाकारी का अभ्यास देना शुरु कर दिया था। अब 53 वर्ष की उम्र में अवकाश नायक एक मशहूर पटचित्र कलाकार हैं।

"मैं पिछले 35 वर्षों से पटचित्र और ताड़ के पत्तों की नक्काशी कर रहा हूं। यह मेरा खानदानी पेशा है, जिसे मैंने अपने बच्चों को भी सिखाया है। वे पुरानी पीढ़ी की तरह एक बेहतरीन कलाकार नहीं हो सकते, लेकिन उम्मीद है कि हमारे पारंपरिक कला को वे जीवित रखेंगे," नायक ने गांव कनेक्शन को बताया।

पुरी शहर से लगभग 14 किलोमीटर दूर रघुराजपुर गांव में कुल 140 घर हैं, जहां के हर घर में एक पटचित्र कलाकार हैं। प्रत्येक घर को विभिन्न कलाकृतियों और भित्तिचित्रों से से सजाया गया है। देश-दुनिया के तमाम पर्यटक यहां पटचित्रों और ताड़ के पत्तों की नक्काशी को सीखने और खरीदने के लिए आते हैं।

सूती कपड़े पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके कलाकारी करना पटचित्र कलाकारी कहलाता है। यह पेंटिंग का एक प्राचीन रूप है। ताड़ के पत्तों पर नक्काशी रघुराजपुर की एक और प्रसिद्ध कला है, जो सूखे ताड़ के पत्तों पर सुई-धागों की मदद से बनाया जाता है। इस कला में नाजुक धागों की मदद से एक कहानी को बयां करने की कोशिश की जाती है।

"हमारा गांव बहुत प्राचीन गांव है, जो पुरी के भगवान जगन्नाथ मंदिर के जमाने से है। पुरी मंदिर में हमारे पटचित्रों का उपयोग किया गया है और हम कई पीढ़ियों से भगवान जगन्नाथ की सेवा इस तरह से कर रहे हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई इस गांव में इस प्राचीन कला पद्धति का अभ्यास करते हैं," रघुराजपुर के निवासी और पटचित्र कलाकार बामदीन दास कहते हैं।

"पटचित्र और ताड़ के पत्तों की कलाकारी के अलावा सात अन्य कलाएं हैं, जिसमें गांव के लोग प्रवीण हैं। इसमें पत्थर पर नक्काशी, तुषार (रेशम का एक प्रकार) पेंटिंग, कागज से कलाकारी, नारियल के छिलके से नक्काशी, गाय के गोबर से पेंटिंग चित्र, बोतल पेंटिंग आदि शामिल है," बामदीन दास आगे बताते हैं।

रघुराजपुर प्राचीन गांव नौ तरह की कलाओं के लिए प्रसिद्ध है (फोटो- निधि जम्वाल)

पटचित्र की प्राचीन कला

पटचित्र दो शब्दों से बना है - पट्ट और चित्र। 'पट्ट' से आशय सूती कपड़े के कैनवास से है जिस पर पेंटिंग की जाती है। दावा किया जाता है कि इस कला की उत्पत्ति 5 वीं शताब्दी में हुई, वहीं कई अन्य लोग दावा करते हैं कि इसकी उत्पत्ति 8 वीं या 12 वीं शताब्दी में हुई थी।

रघुराजपुर गांव में सभी चित्रकार एक क्षेत्र में रहते हैं, जिन्हें 'चित्रकार साहे' कहा जाता है। यह राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 52 किलोमीटर दूर है।

ओडिशा के सबसे बड़े त्योहारों में से एक जगन्नाथ यात्रा की शुरूआत 'देव स्नान पूर्णिमा' से माना जाता है। इस दिन त्रिमूर्ति देवताओं भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को गर्मी से लड़ने के लिए ठंडे पानी के 108 घड़े से स्नान कराया जाता है। इसके बाद देवता 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं, जिन्हें 'अनासार' कहा जाता है। इस 15 दिन की अवधि के दौरान देवताओं को सार्वजनिक रूप से अनुपस्थित माना जाता है और रघुराजपुर के चित्रकारों द्वारा बनाए गए देवताओं के पटचित्र को लोगों के पूजा के लिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रखा जाता है। इन चित्रों को 'अनासार पट्टी' कहा जाता है।

पटचित्र बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए बामदीन दास कहते हैं, "एक पट्टा बनाने के लिए दो से तीन सूती साड़ी को लिया जाता है। इमली के बीजों को रात भर भिगोया जाता है, इसके बाद उसे उबालकर गोंद बनाया जाता है। इस गोंद का उपयोग सूती साड़ियों और कपड़ों की परतों को चिपकाने के लिए किया जाता है, जिसे बाद में विशेष सफेद चाक पत्थर से पॉलिश किया जाता है। इसके बाद इस पट्टे पर एक पेंटिंग बनाई गई है।"

एक पटचित्र कलाकार पेंटिंग बनाने के लिए पांच मुख्य प्राकृतिक रंगों का उपयोग करता है। इनमें लाल, काला, पीला, सफेद और गेरुआ (लाल-गेरू) रंग शामिल हैं। "हम सफेद रंग बनाने के लिए शंख का उपयोग करते हैं। ओडिशा की पहाड़ियों पर मिलने वाले हिंगुलाल पत्थर का उपयोग लाल रंग बनाने के लिए किया जाता है। दीया काजल से काला रंग बनाता है, वहीं गेरू पत्थर हमें गेरुआ रंग देता है। पीला रंग पीले पत्थर से निकला है, जिसे हरताल कहा जाता है। इन मूल रंगों को मिलाकर कई दूसरे रंग भी बनाये जाते हैं। हमारे गांव में कृत्रिम रंगों पर प्रतिबंध है, "बामदीन दास कहते हैं।

इन सभी रंगों को सूखे नारियल के गोले में मिलाया जाता है। रंगों को कैथा (लकड़ी के सेब) के गोंद के साथ मिश्रित किया जाता है जो पेंटिंग को खराब होने से रोकता है। चित्रकारों द्वारा उपयोग किए जाने वाले महीन ब्रश चूहों के बालों से बने होते हैं।

चित्रकारों का दावा है कि उनकी कला प्रकृति और पर्यावरण का ख्याल रखती है। "हम अपनी पेंटिंग बनाने के लिए केवल प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करते हैं, जैसी- खराब सूती साड़ियों का उपयोग पट्टा बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा प्राकृतिक गोंद और चाकस्टोन का भी प्रयोग किया जाता है। हमारे सभी रंग भी प्राकृतिक होते हैं, "संजू स्वयंम बताती हैं। संजू अपने पति के साथ पटचित्र बनाती हैं।

नायक के अनुसार, पटचित्र बनाने में महिला कलाकारों की अहम भूमिका होती है। "महिला कलाकारों के बिना, हम पुरुष कलाकार कुछ भी नहीं हैं। वे ही हैं जो इमली के बीजों से गोंद तैयार करती हैं और चाक और चूना पत्थर से पट्टों का उपचार करती हैं। उसके बाद ही हम लोग पट्टों पर चित्र बना सकते हैं," नायक समझाते हैं।

ताड़ के पत्तों पर कलाकारी के मामले में भी महिलाएं अहम भूमिका निभाती हैं। ताड़ के पत्ते, जिन्हें आमतौर पर 'तलपत्र' कहा जाता है, को कहानी सुनाने के लिए सुइयों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। 'पोथीचित्र' एक प्रकार के ताड़ के पत्तों की कलाकारी है, जो एक पोथी (पुस्तक) के आकार का होता है। इसमें कहानी सुनाने के लिए चित्रों और शब्दों दोनों का इस्तेमाल एक साथ किया जाता है।

"हम सभी पारंपरिक कलाकार हैं जो महाभारत, रामायण, कृष्ण लीला, लोककथाओं आदि की कहानियों का वर्णन करते हैं। "एक 18 * 12 इंच का पटचित्र बनाने में आठ से दस दिन लगते हैं। पेंटिंग की प्रकृति के आधार पर 18 * 12 इंच के पटचित्र का मूल्य 2,000 रुपये से 5,000 रुपये के बीच होता है। जब तक यह बाजार में पहुंचता है, तब तक कीमत तिगुनी हो जाती है," रघुनाथ दास बताते हैं। रघुनाथ दास रघुराजपुर गांव के निवासी हैं जो कि पटचित्र कलाकारी करते हैं।

रघुराजपुर के कलाकारों की कोई आय निश्चित नहीं है। "यह सब पर्यटकों की आवाजाही पर निर्भर करता है। कई दिनों में तो बहुत बिक्री होती है लेकिन कई दिन खाली-खाली जाते हैं। औसतन, एक परिवार महीने में लगभग 10,000 रुपये कमा लेता है, " कलाकार स्वयम् बताते हैं। उन्होंने बताया कि गांव से कई कलाकार दूसरे शहरों में लगने वाले शिल्प मेलों में जाते हैं और अपनी कलाकृतियां बेचते हैं।

मई 2019 में आए चक्रवात फानी ने रघुराजपुर गांव में कई लाख रुपयों के कच्चे माल और कलाकृतियों को नष्ट कर दिया। (फोटो: निधि जम्वाल)

चक्रवात फानी का प्रकोप

पिछले साल (2019) मई के महीने में, चक्रवात फानी ने पुरी में एक भूस्खलन किया, जो बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बना। रघुराजपुर को भी चक्रवात फानी का सामना करना पड़ा।

"मैंने 1999 के 'सुपर चक्रवात' का भी सामना किया था, लेकिन फानी उससे कहीं ज्यादा मजबूत था। भारी बारिश के साथ-साथ हवा की गति भी बहुत तेज थी। हमारे घर में पानी घुस गया और सारा कच्चा माल खराब हो गया। एक टिन-शेड के घर में संग्रहीत मेरी सभी अनूठी कलाकृतियां पूरी तरह से नष्ट हो गई क्योंकि छत उड़ गई और हमारा घर ढह गया, "नायक बताते हैं।

उन्होंने दावा किया कि चक्रवात फानी में उनका कम से कम एक लाख रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि अब हम अपनी कला क्या का दाम बताएं?

नायक फानी चक्रवात में नुकसान झेलने वाले एकमात्र चित्रकार नहीं हैं। "हम जानते थे कि फानी तूफान 3 मई को आ रहा है। लेकिन हमने यह नहीं सोचा था कि यह इतना तेज तूफान होगा। इसने सभी नारियल और ताड़ के पेड़ों को उखाड़ कर फेंक दिया, मिट्टी के घरों को समतल कर दिया और और खपरैल की छतों को उड़ा दिया, "बामदीन दास ने कहते हैं। उन्होंने बताया कि इस वजह से ना उनकी सिर्फ कलाकृतियां नष्ट हुईं बल्कि नई शुरुआत करने के लिए कोई कच्चा माल भी नहीं बचा। इसके अलावा कलाकारी के लिए उपयोग होने वाले ताड़ के पत्ते भी इलाके में नहीं बचे।

बामदीन दास के सिर पर 3 लाख रुपये का कर्ज है, जिसे उन्होंने बैंक से 'कलाकार ऋण' के रूप में उधार लिया था। दुःख जताते हुए वह कहते हैं, "हम चित्रकारों के पास पर्याप्त बचत नहीं होता है। इसलिए, अपनी कलाकृतियों को आगे बढ़ाने और कच्चे माल को खरीदने के लिए हमें ऋण लेना होता है। मुझे नहीं पता कि मैं ऋण कैसे चुकाऊंगा क्योंकि मेरी सभी कलाकृतियां नष्ट हो गई हैं।''

फानी के दौरान रघुनाथ दास के घर पर दो नारियल के पेड़ गिर गए, जिसके कारण घर ढह गया और पानी के साथ बह गया। "मैंने अपने पट्टचित्रों को खो दिया। मैंने अपने कुछ पट्टचित्रों को बाद में धूप में सुखाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब कोई भी उन चित्रों को नहीं खरीदेगा, " दुःखी रघुनाथ दास कहते हैं।

आपदा राहत के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी 'रैपिड रिस्पांस' ने फानी से प्रभावित रघुराजपुर के कलाकारों की मदद के लिए 'रघुराजपुर पुनर्निर्माण' नाम से एक परियोजना की शुरूआत की थी। रैपिड रिस्पांस ने पिछले साल जून में 'कलामित्र' नाम से एक आजीविका परियोजना की भी शुरूआत की, जिससे प्रभावित कलाकार समुदाय को नए कौशल सीखने और उनके जीवन के पुनर्निर्माण में मदद की जा सके।

इन सबसे उबरने की राह काफी लंबी और कठिनाईयों से भरी हुई है। रघुराजपुर के चित्रकार अपने पुश्तैनी कला के भविष्य के बारे में निश्चिन्त नहीं हैं। "समय अब बदल गया है। यह एक आधुनिक दुनिया है, जिसमें हर कोई शिक्षित होकर नौकरी पाना चाहता है। हमारे कुछ बच्चे अभी भी पढ़ाई के साथ-साथ पटचित्र कला सीख रहे हैं। लेकिन, क्या यह पर्याप्त होगा? "रघुनाथ दास इन सवालों के साथ हमें अनुत्तरित छोड़ जाते हैं।

यह स्टोरी मूल रुप से अंग्रेजी में लिखी गई है, जिसे आप यहां क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

अनुवाद- दया सागर

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