खेल बजट 2019: सरकार का 'खेलो इंडिया' पर जोर लेकिन खिलाड़ियों का क्या?

खिलाड़ियों के लिए जमीन पर हालात अभी भी जस के तस बने हुए हैं। खेलों के लिए आधारभूत ढाचों मसलन- स्टेडियम, एकेडमी और अन्य खेल सुविधाओं की अभी भी कमी है। खिलाड़ियों को ग्रास रूट से टॉप लेवल तक आने में काफी संघर्ष करना पड़ता है। कई प्रतिभाएं इसी प्रक्रिया में ही दम तोड़ देती हैं।

Daya SagarDaya Sagar   19 July 2019 6:38 AM GMT

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खेल बजट 2019: सरकार का खेलो इंडिया पर जोर लेकिन खिलाड़ियों का क्या?फोटो क्रेडिट- खेलो इंडिया वेबसाइट

लखनऊ। "खेलो इंडिया ने ना सिर्फ देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा दिया है बल्कि यह भी साबित किया है कि खेल हमारे जीवन जीने के तरीके का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सरकार खेलो इंडिया को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और देश में खेलों की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए हरसंभव आर्थिक सहायता देने को तैयार है।"

चार जुलाई को संसद में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये बातें कहीं। इसके साथ ही उन्होंने खेल और युवा मामले के मंत्रालय के बजट को लगभग 200 करोड़ रूपये तक बढ़ाकर 2216.92 करोड़ रूपये कर दिया। इसमें भी वित्त मंत्री का जोर 'खेलो इंडिया' पर ही रहा और उन्होंने इस कार्यक्रम को और बढ़ावा देने की बात कही।

राष्ट्रीय खेल शिक्षा बोर्ड का होगा गठन

निर्मला सीतारमण ने खेलो इंडिया को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय खेल शिक्षा बोर्ड स्थापित करने की घोषणा भी की। हालांकि 'खेलो इंडिया' के तहत बजट को पिछले साल की तुलना में बढ़ाया नहीं गया है। बल्कि पिछले साल के 500.09 करोड़ रूपये के मुकाबले इसे थोड़ा सा घटाकर 500 करोड़ रूपये कर दिया गया है।

लेकिन नहीं पूरा हो पाया है पुराना लक्ष्य

'खेलो इंडिया' कार्यक्रम की शुरूआत 2017 में हुई थी, जिस पर सरकार ने 2019 तक 1756 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा था। 2017-18 में इस योजना की शुरूआत में 350 करोड़ रूपये मिले थे, जिसको अब लगभग 40 फीसदी तक बढ़ा दिया गया है। लेकिन खेलो इंडिया पर इन तीन सालों का बजट जोड़ लिया जाए तो कुल 1500 रूपये ही खर्च हुए हैं। इसलिए कई खेल जानकारों का मानना है कि खेलों इंडिया के बजट में और वृद्धि की जानी चाहिए थी।


ग्रासरूट लेवल तक पहुंचे 'खेलो इंडिया' का लाभ

भारतीय खेलों पर करीबी नजर रखने वाले खेल प्रशासक और दिल्ली फुटबॉल के अध्यक्ष शाजी प्रभाकरण कहते हैं कि खेलो इंडिया इस सरकार की अच्छी पहल है लेकिन अब सरकार को इसे एक स्टेप और आगे लाना होगा। उन्होंने कहा, "खेलो इंडिया गेम्स साल भर में एक बार होता है। उसमें बच्चों को स्टारडम मिलता है, वे लाइव टीवी पर आते हैं। लेकिन जमीन पर अभी भी हालत जस के तस बने हुए हैं। अभी भी खिलाड़ियों को ग्रास रूट से टॉप लेवल तक लाने में काफी संघर्ष करना पड़ता है। कई प्रतिभाएं इसी में दम तोड़ देती हैं।"

केंद्र और राज्यों में हो समन्वय

केंद्र में खेल मंत्रालय के अलावा राज्यों में भी खेलों के लिए अलग मंत्रालय होता है। इसके अलावा विभिन्न खेलों के अलग-अलग राज्यों के भी संगठन होते हैं।

प्रभाकरण कहते हैं कि अगर ग्रासरूट लेवल पर खेलों को बढ़ावा देना है तो सिर्फ केंद्र नहीं राज्य सरकारों को भी इसको गंभीरता से लेना होगा। उन्हें केंद्र के साथ समन्वय बनाना होगा और बजट को एक सही दिशा में खर्च करना होगा। ताकि उभरते हुए खिलाड़ियों को पर्याप्त मदद मिल सके। इसके अलावा 'खेलो इंडिया' अभियान को राज्यों से जोड़ना होगा।


'ग्रासरूट पर भी हो प्राइवेट, कार्पोरेट फंडिंग'

आईपीएल के आने के बाद खेलों में प्राइवेट और कार्पोरेट फंडिंग को बढ़ावा मिला है। कार्पोरेट अब क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों पर भी पैसा खर्च कर रहा है। इसलिए देश भर में खेलों के अनेक लीग शुरू हुए हैं और कबड्डी, कुश्ती जैसे खेलों को भी स्टारडम मिलना शुरू हुआ है।

प्रभाकरण कहते हैं कि यह अच्छा कदम है लेकिन अभी भी यह काफी कम है। खेलों में प्राइवेट फंडिंग 2000 प्रतिशत तक बढ़ा है लेकिन यह सिर्फ ऊपर के स्तर पर है। "खेलों में अभी जो प्राइवेट फंडिंग हो रहा है, वह हाई लेवल पर हो रहा है जिससे उन खिलाड़ियों को फायदा मिल रहा है जो पहले से ही स्थापित हैं। ग्रासरूट पर प्राइवेट फंडिंग अभी भी सिर्फ एक प्रतिशत है।"

"लेकिन ग्रासरूट पर अभी भी प्राइवेट फंडिंग की कमी है। ग्रासरूट पर अभी भी सिर्फ एक प्रतिशत प्राइवेट निवेश हो रहा है, जबकि 99 प्रतिशत की कमी अभी भी है। सरकारों को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा।" प्रभाकरण आगे कहते हैं।

'साई और खेल संघों को होना होगा प्रोफेशनल'

कमेंटेटर, लेखक और वरिष्ठ खेल पत्रकार नोवी कपाड़िया खेल बजट पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, "भारत जैसे विकासशील देश में जहां पर बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसी सुविधाओं की कमी है, वहां पर खेल बजट का भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ना भी उत्साहजनक है। सरकार से इससे अधिक की उम्मीद की भी नहीं जा सकती। अब बस जरूरत है कि जो बजट पास हुआ है उसका सदुपयोग ग्रास रूट लेवल से टॉप लेवल पर हो। इसके लिए भारतीय खेल प्राधिकरण (साई), खेल संघों और राज्य खेल संघों को प्रोफेशनल बनना पड़ेगा। इन्हें सरकारी अधिकारियों और नेताओं से मुक्त कर प्रोफेशनल लोगों को शामिल करना होगा, जो खेल के प्रति जुनुनी हों।"

कपाड़िया भी खेलों में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए पीपीपी मॉडल और नेशनल स्पोर्ट्स कोड लाने की बात करते हैं। वह कहते हैं कि पीपीपी मॉडल लाने से खेलों में प्रोफेशनलिज्म का विकास होगा और स्पोर्ट्स कोड लाने से ऐसे लोग खेलों से दूर होंगे जो खेल संघों पर दशकों से कब्जा किए हुए बैठे हैं।

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बजट में खेलों के लिए और क्या है?

विभिन्न खेलों के लिए राष्ट्रीय कैंप और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले साई के बजट को 55 करोड़ से बढ़ाकर 450 करोड़ कर दिया गया है। इसके अलावा नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फंड (NSDF) में फंड को 2 करोड़ से बढ़ाकर 70 करोड़ किया गया है।

खिलाड़ियों के प्रोत्साहन और सम्मान राशि में वृद्धि

इसके अलावा खिलाड़ियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को 63 करोड़ से बढ़ाकर 89 करोड़ किया गया है। इस सरकार ने खिलाड़ियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को लगातार बढ़ाया है। 2017-18 में यह महज 14 करोड़ रूपये था।

प्रोत्साहन के साथ-साथ खिलाड़ियों को मिलने वाली सम्मान राशि को भी बढ़ाया गया है। 2018-19 की बजट में इसके मद में 316.93 करोड़ रूपये थे जिसे 94.07 करोड़ रूपये बढ़ाकर अब 411 करोड़ रूपये किया गया है।


खेल संघों को मिलने वाले मदद में कमी

हालांकि विभिन्न राष्ट्रीय खेल संघों (नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन) को मिलने वाली राशि को सरकार ने घटा दिया है। इस सरकार में खेल संघों को मिलने वाली राशि में लगातार कमी की गई है। 2018-19 के बजट में खेल संघों को 347.00 करोड़ रूपये देने की बात कही गई थी जिसे बाद में घटाकर 245.13 करोड़ रूपये कर दिया गया। इस बार की बजट में इसे और कम कर 245 करोड़ रूपये कर दिया गया है। जबकि दो साल पहले 2017-18 में यह बजट 283.06 करोड़ रूपये था।

इस बारे में प्रभाकरण ने कहा, खेल बजट पहले से बढ़ा है, यह अच्छा कदम है। हालांकि देश में अभी भी मूलभूत सुविधाओं की कमी हैं कि सरकार खेलों को अभी भी प्राथमिकता नहीं दे पा रहा है। इस वजह से देश का खेल बजट अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे अन्य देशों से काफी कम है। इन देशों से तुलना करना भी बेमानी है। जरूरत है कि जो भी बजट है उसे सही दिशा में और जमीनी स्तर पर खर्च किया जाए ताकि खेल प्रतिभाएं असमय ही दम ना तोड़ें।

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