सफ़लता के साथ, मैं और संवेदनशील हो गई हूं, एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश कर रही हूं: भूमि पेडनेकर

फिल्म "दम लगा के हईशा" में भूमि पेडनेकर ने ज्यादा वजन की लड़की का किरदार निभाने के लिए अपना वजन कई किलो बढ़ाया था, लेकिन इस फिल्म के बाद उन्होंने अपना वजन तकरीबन 30 किलो घटाया। फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने अनुभवों को भूमि ने स्लो कैफ़े में नीलेश मिसरा के साथ साझा किया।

Subha RaoSubha Rao   9 Feb 2021 12:36 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

हिंदी सिनेमा में आज के दौर की अभिनेत्रियों में बहुत कम ही होती हैं जो कुछ अलग करने का जोखिम उठाती हैं। भूमि उन चंद अभिनेत्रियों में से हैं जो अपने काम पर गर्व कर सकती हैं। अपनी पहली फिल्म, 'दम लगा के हईशा' में उन्होंने एक ऐसी टीचर के किरदार निभाया जो ज़्यादा वज़न की होने के बावजूद अपनी शादी में प्यार ढूंढ लेती हैं। मुंबई में पैदा हुई और पली-बढ़ी भूमि ने फ़िल्मों की शूटिंग के लिए ग्रामीण इलाकों में काफ़ी वक्त बितााया।

भाई-भतीजावाद के इस दौर में वर्तमान समय में हिंदी सिनेमा जगत में ऐसी अभिनेत्रियां बहुत कम हैं जो गैर फिल्मी पृष्ठभूमि से आती हों। भूमि पेडनेकर उन्ही चुनिंदा अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने नेपोटिज्म को पीछे छोड़ बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है। फिल्म "दम लगा के हईशा" में भूमि ने ज्यादा वजन की लड़की का किरदार निभाने के लिए अपना वजन कई किलो बढ़ाया था, लेकिन इस फिल्म के बाद उन्होंने अपना वजन तकरीबन 30 किलो घटाया। मुंबई में जन्मी और पली-बढ़ी भूमि ने ग्रामीण भारत में शूटिंग में अपना काफी समय बिताया है।

नीलेश मिसरा के साथ 'द स्लो कैफ़े' में बात करते हुए भूमि ने गांवों में ग्रामीणों के साथ हुई उनकी बातचीत के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि शहर और गांव के बीच का भेदभाव उन्हें परेशान करता है। इसके अलावा इंटरव्यू में उन्होंने बच्चों के साथ अपने काम के अनुभव और कई अन्य बातें भी साझा की।

भूमि पेडनेकर और नीलेश मिसरा ने आरएस प्रसन्ना की फ़िल्म, 'शुभ मंगल सावधान' में एक साथ काम किया था। इस फ़िल्म में नीलेश ने स्टोरी नेरेटर का काम किया है। हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देने वाली इस फ़िल्म में नीलेश ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में फ़िल्म के घटनाक्रम को दर्शकों तक पहुंचाया। भूमि कहती हैं, "आप स्क्रीन पर आयुष्मान खुराना और मेरी प्रेम कहानी के लिए बैकग्राउंड म्यूज़िक की तरह थे," पेडनेकर कहती हैं, "यह इतना अच्छा था कि अब भी इसे पसंद किया जाता है।"

भूमि ने उन फिल्मों में काम किया है जो व्यावसायिक तो हैं, लेकिन इसके साथ ही वो एक संदेश भी देती हैं। ये फिल्में हैं - टॉयलेट: एक प्रेम कथा, सोनचिरैया, सांड की आंख (तापसी पन्नू के साथ सह-अभिनेत्री के तौर पर, जो शूटिंग में बेहतरीन मकाम हासिल करने वाली तोमर दादी पर आधारित है), डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे। इस संदर्भ में नीलेश, भूमि से पूछते हैं कि क्या उन्हें लगता है कि हर फिल्म में एक संदेश होना चाहिए या मनोरंजन पर्याप्त है?

चंद्रो तोमर के किरदार में भूमि पेडनेकर (फोटो- इंस्टाग्राम)

भूमि कहती हैं, "दोनों ठीक हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हर कलाकार एक नज़रिये के साथ फिल्म इंडस्ट्री में आता है। वे यह सोचकर आते हैं कि उन्हें किस रास्ते पर चलना है। मेरी फिल्में मनोरंजक तो हैं, लेकिन इसके साथ ही मुझे वो फ़िल्में ज़्यादा आकर्षित करती हैं जिनसे लोगों की मानसिकता में कुछ बदलाव आ सके। यहां तक कि "पति पत्नी और वो" ने भी महिला पात्रों को काफी सशक्त बनाया है, यही वजह है कि मैंने उस फिल्म में काम करने का फैसला किया।"

फ़िल्म अभिनेताओं और उनकी सामाजिक ज़िम्मेदारी के बारे में बोलते हुए भूमि ने कहा, "कलाकारों के रूप में हमारे पास लोगों को प्रभावित करने की शक्ति है, और मुझे लगता है कि लोगों को हंसाने के अलावा हमारे कुछ और नैतिक कर्तव्य भी हैं। अगर हम कहते हैं कि सिनेमा समाज को दर्शाता है। यदि हम दर्पण हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि आज हम जिस मुकाम पर रहे हैं, उसका उपयोग करते हुए समाज के लिए कुछ अच्छा करें। कई बार, लोग अपनी ताकत को नहीं पहचानते हैं, और इसलिए इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।"

नीलेश और भूमि ने समाज की दकियानूसी परंपराओं और इन्हें तोड़ने की आवश्यकता के बारे में भी बात की। भूमि ने कहा, "मैं एक शहरी इको-सिस्टम से आती हूं। मैं ऐसे दकियानूसी लोगों से भी मिली हूं कि उन्हें देख कर लगता है कि वे इस जीवन के लायक नहीं हैं। गाँवों में, हम बहुत से प्रगतिशील लोगों से मिलते हैं जिन्हें उन चीजों के लिए लड़ना पड़ता है जो शहरों में रहने वाले लोगों के पास है। उदाहरण के तौर पर तोमर दादी से मिलने के बाद मैं सोचती रही कि भगवान ने विशेषाधिकार और शक्ति का वितरण किस आधार पर किया होगा।"

"कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें पौष्टिक भोजन और शिक्षा आसानी से मिल जाती है और लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इनसे वंचित हैं, और वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हर चीज के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वास्तव में, मैं अपने जीवन में अब तक कई पढ़े-लिखे बेवकूफ़ों से मिली हूं," भूमि ने कहा।

भूमि पेडनेकर (फोटो- इंस्टाग्राम)

अभिषेक चौबे की बहुचर्चित फ़िल्म 'सोनचिरैया' में, भूमि ने इंदुमती तोमर की भूमिका निभाई है, जो एक युवा लड़की को बचाने के लिए किसी को मार देती हैं। यह फिल्म और चंबल घाटी के पास हुई इसकी शूटिंग का ही नतीजा है कि इन दोनों के बीच का संबंध अब और अधिक मजबूत हो चुका है जिसे अब लगभग तीन साल हो गए हैं। फिल्म में 'सोनचिरैया' की भूमिका निभाने वाली छोटी बच्ची ख़ुशी आदिवासी बच्चों के एक आश्रम से आई थी।

भूमि ने कहा कि सोशल मीडिया के ज़रिए भी चंबल में स्कूल के लिए धन जुटाया जा सकता है। "लोगों ने अमेरिका, लंदन और ब्राजील से मदद की। अब, बच्चे लगभग तीन घंटे की कक्षा में रोज़ जाते हैं। उन्होंने काफी अंग्रेजी भी सीख ली है। कभी-कभी, हमें यह महसूस नहीं होता है कि आप बच्चों को ज़रा सी मदद देकर भी उनका काफी भला कर सकते हैं।

मशहूर होने के बाद लोग बदल जाते हैं। अच्छा होना और अच्छा बने रहना अब उतना आसान नहीं है। जब नीलेश ने पूछा कि आपके साथ कैसा है तो भूमि ने कहा, "मैं यह नहीं कहूंगी कि सफ़लता के साथ मैं पहले से ही एक बेहतर इंसान बन गई हूं, लेकिन मैं बेहतर होने की कोशिश कर रही हूं। मैं और संवेदनशील हो गई हूं। हमें घर पर संवेदना सिखाई गई थी, लेकिन फिल्मों में मेरी सफलता ने मुझे इस बारे में अधिक सोचने के लिए प्रेरित किया है, और मैं धीरे-धीरे बेहतर हो रही हूं।"

"मैं एक गैर-फिल्मी पृष्ठभूमि से हूं। मुझे अभिनय करने का मौका क्यों मिला? ताकि मैं लोगों में खुशी और प्यार फैला सकूं। हम अपनी ज़रूरतों को और अपने परिवार की ज़रूरतों के बारे में सोचते हैं, और फिर?" उन्होंने पूछा।

भूम पेडनेकर से हमेशा एक शब्द "ग्राउंडेड" जुड़ता रहा है। वह कहती हैं कि वह अभिनेत्री बनने से पहले अपने महौल और घर-परिवार से काफी जु़ड़ी हुई थीं, जिसकी वजह से आज वह ऐसी हैं। "वही लोग मेरे जीवन में हैं। मेरा व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन बहुत अलग है, और इसलिए मुझे लगता है कि मैं ग्राउंडेड हूं। हाँ, मैंने ग़लतियाँ की हैं, लेकिन मैंने उनसे सीखा भी है," उन्होंने कहा।

भूमि पेडनेकर अपनी मां और बहन के साथ (फोटो- इंस्टाग्राम)

एक ऐसे घर में बड़ी हुई जो कि काफी संपन्न परिवार था, लेकिन फिर भी उन पर सफल होने का दबाव नहीं था। उन्होंने कहा, "हमारे पिता ने हमें ग़लतियाँ करने और उनसे सीखने दिया। इसलिए, मैं अपनी तरक्की से बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हूं। मैं सालों की मेहनत और प्लानिंग के बाद वहां पहुंची हूं। मैंने छोटे-छोटे कदम उठाए, लेकिन मैं यहां पहुंच गई।

तमाम गंभीर बातों के बीच, भूमि ने बताया कि वह एक ऐसे घर में रहीं, जहां सिर्फ़ महिलाएं थीं। उनके पिता का कुछ साल पहले कैंसर से लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद निधन हो गया था। "लॉकडाउन के दौरान हम घर में मैं, मेरी माँ, मेरी बहन, हमारी घरेलू सहायक दीदी और मेरी सहायक थे और इसके साथ ही वहां एक राम भैया भी थे। राम भैया एक ऐसे घर में रह रहे थे जहां अलग-अलग मनोदशा से भरे लोग थे। हर हफ्ते, कोई न कोई बहुत गुस्से में होता था," भूमि ने हंसते हुए बताया।

अनुवाद- शुभम ठाकुर

इस स्टोरी को मूल रूप से अंग्रेजी में पढ़ें- With success, I've become more compassionate, and am trying to become a better person: Bhumi Pednekar

ये भी पढ़ें- सीआरपीएफ जवानों के बहादुरी की प्रेरणादायक कहानियां, जल्द ही The Slow App पर


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.