विश्व फोटोग्राफी दिवसः रेलवे स्टेशन के कूड़ाघर से फोटोग्राफी के शिखर तक पहुंचने की कहानी

Swati SubhedarSwati Subhedar   19 Aug 2019 1:41 PM GMT

विश्व फोटोग्राफी दिवसः रेलवे स्टेशन के कूड़ाघर से फोटोग्राफी के शिखर तक पहुंचने की कहानी

पश्चिम बंगाल के पुरूलिया के एक गरीब परिवार में जन्मे विकी रॉय 11 साल की उम्र में ही घर से भाग गए और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बिनने का काम किया था। उनके जीवन में कई टर्न और ट्विस्ट आए। आज विकी रॉय फोटोग्राफी जगत के जाने-माने नाम हैं और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिल चुकी है।

बत्तीस साल के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुके फोटोग्राफर विकी रॉय की जिंदगी सत्तर के दशक के किसी हिंदी ब्लॉकबस्टर सिनेमा से कम नहीं है। 1987 में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में जन्मे विकी रॉय 11 साल की उम्र में अपने घर से भाग गए और नई दिल्ली पहुंचे। यहां नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने कूड़ा बिनने का काम किया। उनके जीवन में कई मोड़ आए। लेकिन आज वह एक स्थापित और खुद को साबित कर चुके फोटोग्राफर हैं।

वह फोर्ब्स इंडिया के टॉप 30 भारतीय हस्तियों और वॉग इंडिया के शीर्ष 40 भारतीय हस्तियों में शुमार हो चुके हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी दुनिया भर में लगाई जाती है। उन्हें बकिंघम पैलेस में ब्रिटिश राजघराने से डिनर करने का निमंत्रण भी मिल चुका है। एमआईटी फेलोशिप पाने वाले इस फोटोग्राफर को फोटोग्राफी की दुनिया के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड और सम्मान मिल चुके हैं। विकी ने एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम 'होम स्ट्रीट होम' है। इसके अलावा विकी ने दिल्ली में एक फोटो लाइब्रेरी भी खोली है।

अपने सात भाई-बहनों में से एक विकी बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता एक दर्जी थे, जिनकी आमदनी मुश्किल से 25 रुपये प्रतिदिन थी। उनका एकमात्र सपना था कि उनके सात बच्चों में से कम से कम बच्चा 10वीं तक पढ़ाई पूरी करे। विकी के परिवार के दिन तब बहुरे जब विकी ने फोटोग्राफी में मानक गढ़ने शुरू किए और 2016 में मदर्स डे के दिन अपनी मां को एक घर गिफ्ट किया।


अमेरिका में एक फोटो प्रदर्शनी में हिस्सा ले रहे विकी रॉय ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था। इसी चीज ने मुझे हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया।"

अपने सभी बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ विकी के माता-पिता ने विकी को उनके दादा-दादी के घर पढ़ने के लिए भेजा, जहां विकी को हर छोटी गलती के लिए फटकार सुनने को मिलती थी। विकी इससे तंग आकर घर से भाग गए और देश की राजधानी दिल्ली पहुंचे।

नई दिल्ली स्टेशन पर ही उन्होंने कुछ कूड़ा बिनने वाले लड़कों से दोस्ती की और उन्हीं के साथ कूड़ा बिनने का काम शुरू किया। कुछ महीनों तक उन्होंने पहाड़गंज के एक होटल में वेटर की भी नौकरी की। इसी समय विकी की जिंदगी में उनका पहला रॉबिनहुड आया।

"पांच-छह महीने तक कूड़े का काम करने के बाद, मैंने दिल्ली के पहाड़गंज में एक छोटे से होटल में काम करना शुरू किया। एक दिन होटल में संजय श्रीवास्तव नाम के एक सज्जन आए, उन्होंने मुझे 'सलाम बालक ट्रस्ट' नामक एक एनजीओ में आश्रय लेने की सलाह दी। श्रीवास्तव ने भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बिनने का काम किया था, जिन्हें बाद में 'सलाम बालक ट्रस्ट' से सहायता मिली थी।, "रॉय ने बताया।

रॉय आगे बताते हैं, "मैंने ट्रस्ट में रहना शुरू किया। उन्होंने पहाड़गंज के एक सरकारी स्कूल में मेरा दाखिला कक्षा 6 में कराया। मैं अच्छा छात्र नहीं था, लेकिन मुझे बहुत ही चालाकी से नकल करने आता था। इसलिए हर कक्षा में मैंने 80% से अधिक अंक पाए। लेकिन 10 वीं की परीक्षा में मुझे नकल करने का मौका नहीं मिला, इसलिए मैं सिर्फ 48% अंक ही प्राप्त कर सका। तब मेरे कुछ शिक्षकों ने सुझाव दिया कि मुझे सिलाई या खाना पकाने जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम में दाखिला लेना चाहिए।''


अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर, श्रीलंका, जर्मनी, रूस और बहरीन की यात्रा कर चुके विकी ने बताया कि घूमने के शौक ने उन्हें फोटोग्राफर बना दिया। वह बताते हैं, "साल 2000 में ट्रस्ट में एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया था। इस वर्कशॉप में फोटोग्राफी का शौक रखने वाले दो लड़कों को इंडोनेशिया जाने का मौका मिला। इसके बाद मैंने भी तय कर लिया कि अगर घूमना है तो फोटोग्राफी सीखनी होगी।"

करियर के शुरूआती दिनों को याद करते हुए विकी बताते हैं, "मुझे 499 रुपये का कैमरा और एक महीने में तीन रोल दिए गए। मुझे नहीं पता था कि मैं एक अच्छा फोटोग्राफर हूं, लेकिन मेरे दोस्तों में मेरा सम्मान करना शुरू कर दिया क्योंकि मेरे पास अब एक कैमरा था। तस्वीरों के बदले वे मुझे अच्छा खाना भी खिलाते थे।"

विकी ने त्रिवेणी कला संगम में फोटोग्राफी की पढ़ाई की। जब रॉय 17 साल के थे, तब उन्हें 'सलाम बालक ट्रस्ट' को छोड़ना पड़ा क्योंकि 18 साल की उम्र के बाद कोई भी वहां नहीं रह सकता था। ट्रस्ट के ही सहयोग से विकी को दिल्ली के फोटोग्राफर अनय मान के वहां इंटर्नशिप प्राप्त हुई।

"उन्होंने मुझे 3,000 रुपये का वेतन, बाइक और एक मोबाइल फोन दिया। अनय देश के हाई-प्रोफाइल लोगों के साथ काम करते थे। मुझे भी उनके साथ काम करने और पूरे भारत की यात्रा करने का मौका मिलवा। उन्होंने मुझे रहने के तौर-तरीके सिखाए और फोटोग्राफी के लिए भी तैयार किया। रहने के तौर-तरीके सीखने के लिए अनय अलग से मुझे 500 रुपये देते थे।" विकी बताते हैं।


2007 में विकी ने नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में अपनी पहली फोटोग्राफी प्रदर्शनी लगाई, जिसे उन्होंने "स्ट्रीट ड्रीम" का नाम दिया था। इस प्रदर्शनी को ब्रिटिश उच्चायोग से सहयोग प्राप्त था। रॉय ने कहा, "यह मेरे करियर का निर्णायक मोड़ था। इस प्रदर्शनी में कई बड़े फोटोग्राफर्स ने भाग लिया और उन्होंने मेरे तस्वीरों की सराहना की। यह प्रदर्शनी सड़कों पर रहने वाले लड़कों के जीवन के बारे में थी, लेकिन वास्तव में, मैंने उन चित्रों के माध्यम से अपने जीवन का चित्रण किया था।"

इस प्रदर्शनी के बाद रॉय के लिए कई दरवाजे खुल गए। 2008 में विकी को मेबैक फाउंडेशन द्वारा एक फेलोशिप दिया गया, जिसमें उन्हें न्यूयॉर्क में फिर से बन रहे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की फोटो डायरी तैयार करनी थी। इसी फेलोशिप के तहत उन्होंने इंटरनेशनल सेंटर फॉर फोटोग्राफी, न्यूयॉर्क से डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफी का भी कोर्स किया।

"मेरी सबसे प्यारी यात्रा स्मृति वह थी जब मुझे बकिंघम पैलेस में प्रिंस एडवर्ड के साथ डिनर करने के लिए आमंत्रित किया गया था। बकिंघम पैलेस के बाहर बहुत सारे पर्यटक थे जो पैलेस की तस्वीरें खींच रहे थे जबकि मैं पैलेस के अंदर था!" विकी ने बताया।

भारत और विदेशों में कई सफल चित्र प्रदर्शनियों का आयोजन कर चुके विकी ने 2013 में 'होम स्ट्रीट होम' नाम की एक पुस्तक भी लिखी। 2014 में विकी को मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से फोटोग्राफी फेलोशिप मिली।

'एक तस्वीर किसी की जिंदगी को भी बदल सकती है'


विकी का मानना है कि एक तस्वीर किसी की जिंदगी को बदलने की क्षमता रखती है। "मुझे याद है कि मैंने जामा मस्जिद के पास एक रिक्शे में रहने वाले एक परिवार की तस्वीर खींची थी। मैंने उस तस्वीर को अपनी फेसबुक पर शेयर किया। सिलिकॉन वैली में रहने वाले मेरे एक मित्र राजेश्वरी कन्नन ने फोटो देखकर महसूस किया कि यह परिवार गरीब होने के बावजूद शांत और संतुष्ट है। राजेश्वरी तब अधिक कमाई नहीं कर रही थी, लेकिन फिर भी उन्होंने मदद की पेशकश की और 40,000 रुपये दिए। हमने रिक्शा वाले से ई-रिक्शा खरीदने की पेशकश की। उन्होंने ई-रिक्शॉ लेने से मना कर दिया। इसके बजाय उन्होंने हमसे राजस्थान के अपने गांव में एक छोटा सा दुकान खुलवाने का अनुरोध किया। मैंने भी इसमें 10,000 रुपये का एक छोटा सा योगदान दिया। आज वह परिवार अपने गांव में खुशी से रहता है।"

"धीरज रखें, कड़ी मेहनत करते रहें"

विकी कहते हैं, "मेरा कोई एक मेंटोर नहीं था और ना ही मेरी जिंदगी में कोई ऐसा पल आया जिसने मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी। मैंने कई कठिनाइयों को सहते हुए लगातार मेहनत की और अभी भी कर रहा हूं, तब मैं इस मुकाम पर हूं। चूंकि मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था इसलिए मैंने बस अपने काम पर ध्यान रखा।"

विश्व फोटोग्राफी दिवस के मौके पर उभरते हुए फोटोग्राफरों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा "आजकल हर कोई जल्दबाजी में है। लेकिन अगर आपको एक अच्छा फोटोग्राफर बनना है, तो आपको धैर्य रखना होगा और निराश होने से बचना होगा। आपको इसके लिए कुछ समय देना होगा।"

जब उनसे पूछा गया कि उनकी भविष्य की क्या योजनाएं और आकांक्षाएं हैं, तो रॉय ने दो टूक कहा, "मैंने कोई भी योजना नहीं बनाई है। जहां भी मुझे जिंदगी ले जाती है, मैं उधर बहता चला जाता हूं।"

इस स्टोरी को अंग्रेजी में पढ़ें- From rags to riches: His life is a perfect Hindi cinema पोट्बोइलेर



यह भी पढ़ें- World Photography Day: ये तस्वीरें घुमाएंगी छत्तीसगढ़

(सभी फोटो- विकी रॉय, अनुवाद- दया सागर)

#World Photography Day #WorldPhotographyDay #Special on World Photography Day #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.