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Food and Agriculture Organization की घोषणा: 2026 होगा अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष। जानिए भारतीय महिला किसानों के लिए क्यों है यह ज़रूरी?

Preeti Nahar | Dec 19, 2025, 18:36 IST
अगर महिला किसानों को पुरुषों के बराबर संसाधन मिलें, तो खेती की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। इससे दुनिया भर में भुखमरी 15% तक कम हो सकती है। महिला किसान सिर्फ़ परिवारों का पेट ही नहीं भरतीं, बल्कि ग्रामीण समुदायों को मज़बूत बनाती हैं और देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान देती हैं।
International Year of Women Farmers 2026<br>

महिला किसानों को मिले पुरुषों के बराबर संसाधन

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, दुनिया की आधी से ज़्यादा खेती-बाड़ी में महिलाएँ ही काम करती हैं। अगर इन महिला किसानों को पुरुषों के बराबर संसाधन मिलें, तो खेती की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। इससे दुनिया भर में भुखमरी 15% तक कम हो सकती है। महिला किसान सिर्फ़ परिवारों का पेट ही नहीं भरतीं, बल्कि ग्रामीण समुदायों को मज़बूत बनाती हैं और देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान देती हैं। FAO का कहना है कि महिला किसानों को सशक्त बनाना, शून्य भुखमरी, लैंगिक समानता, गरीबी खत्म करना और 'जलवायु परिवर्तन से बचाव' जैसे लक्ष्यों को पाने के लिए बहुत ज़रूरी है।


क्यों जरूरत पड़ी अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष की?

खेतों में काम करती एक महिला केवल मजदूर नहीं होती, वह बीज चुनती है, फसल उगाती है, पशुपालन संभालती है और परिवार की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ होती है। फिर भी दुनिया भर में और खासकर भारत में महिला किसानों को पहचान, संसाधन और अधिकार अपेक्षाकृत कम मिले हैं। इसी असमानता को दूर करने की दिशा में FAO (Food and Agriculture Organization) की घोषणा “अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष” एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य महिला किसानों के योगदान को मान्यता देना और उनकी स्थिति मजबूत करना है।


कृषि क्षेत्र में महिला किसानों की चुनौतियाँ

1 कृषि कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा होने के बावजूद, महिलाओं के पास कृषि भूमि का केवल 14% हिस्सा है, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NHFS-5) के अनुसार मात्र 8.3% है। यह लैंगिक असमानता उन्हें संस्थागत ऋण, सब्सिडी, प्रौद्योगिकी और विस्तार सेवाओं तक पहुँचने से रोकती है। इससे उनकी उत्पादकता और निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है।

2 महिला किसानों को अक्सर ऋण, वित्तीय सेवाओं और आधुनिक तकनीक तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है। इससे वे बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश नहीं कर पातीं। इसके अलावा, औपचारिक शिक्षा, वित्तीय साक्षरता और तकनीकी कौशल की कमी उन्हें नए विचारों को अपनाने या अपने कृषि उद्यमों को बड़े पैमाने पर विकसित करने से रोकती है।

3 महिलाएं खेती-बाड़ी की जिम्मेदारियों के साथ-साथ घर का काम और बच्चों की देखभाल भी करती हैं। इससे वे शारीरिक रूप से थक जाती हैं और उनके पास समय की कमी हो जाती है। पशुओं की देखभाल, बीज संरक्षण और खाद्य प्रसंस्करण जैसे कामों में उनके योगदान को अक्सर पहचाना या भुगतान नहीं किया जाता।

4 बाजारों में सीमित पहुँच, परिवहन की कमी और लिंग आधारित भेदभाव के कारण महिला किसान उचित बाजारों और अच्छी कीमतों से वंचित रह जाती हैं। सूचना की कमी उन्हें मूल्य श्रृंखलाओं से और भी दूर कर देती है।

5 जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। इससे महिला किसानों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। उनकी घरेलू जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं, जिससे खेती के लिए उनके पास और भी कम समय और संसाधन बचते हैं।


क्या बदलाव होने की उम्मीदें

FAO ने कहा कि- साल 2026 को 'अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष' के रूप में मनाया जाएगा। यह साल दुनिया भर की महिला किसानों की हिम्मत, नेतृत्व और नए विचारों को सामने लाएगा। यह महिलाओं को खेती में आगे बढ़ने से रोकने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रुकावटों को दूर करने पर भी चर्चा को बढ़ावा देगा।

अगर महिला किसानों को समान अधिकार, संसाधन और सम्मान मिले, तो भारत की कृषि उत्पादकता, पोषण सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तीनों मजबूत होंगी। यह पहल सरकारों को प्रेरित करे है कि महिला किसानों को आधिकारिक तौर पर किसान का दर्जा मिले, ताकि वे योजनाओं और सब्सिडी की हक़दार बन सकें। जलवायु-स्मार्ट खेती, जैविक खेती, बीज बैंक, डेयरी प्रबंधन और डिजिटल बाज़ार की ट्रेनिंग महिला किसानों तक पहुँचेगी।
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