पानी से घिरे देश में पीने के पानी लेने दिन में दो बार कई किलोमीटर पैदल जाती हैं महिलाएं

Rafiqul Islam Montu | Mar 22, 2021, 13:52 IST
तटीय बांग्लादेश में चक्रवात समेत कई प्राकृतिक आपदाओं ने जल स्रोतों को दूषित कर दिया है। इसके चलते ग्रामीण महिलाएं पानी के लिए हर दिन कई किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं।
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दाकोप उपजिला (बांग्लादेश) अलेया बेगम आशा भरी नज़रों से हर सुबह आसमान की ओर देखती हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून को आने में अभी तीन महीने बाकी हैं। बांग्लादेश में खुलना जिले के दकोप उपजिला में सुतारखाली गांव की रहने वाली 39 वर्षीय अलेया को अपने परिवार की दैनिक जरूरतों के लिए पानी का प्रबंध करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वह हर दिन कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाती हैं। अलेया बेगम जिस देश में रहती हैं वह चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें केवल बारिश के मौसम में ही पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध हो पाता है।

बारिश के मौसम को छोड़ दें तो साल के लगभग आठ से नौ महीने में अलेया को पानी के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ता है। अलेया बताती हैं कि एक घड़ा पानी लाने में उन्हें लगभग डेढ़ घंटे का वक्त लग जाता है। यह एक घड़ा पानी भोजन बनाने में खर्च हो जाता है, इसके बाद उन्हें एक बार फिर दोपहर में पानी के लिए घड़ा लेकर जाना पड़ता है। सुतारखाली गांव में साल 2009 में आइला नाम का एक चक्रवात आया था। इससे यह इलाका और यहां रहने वाले लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे। यह क्षेत्र लगभग पांच वर्षों तक जलमग्न था। इस चक्रवात की वजह से यहां पेयजल के तमाम स्रोत दूषित हो गए थे।

सुतारखाली गांव राष्ट्रीय राजधानी ढाका से लगभग 402 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां की सैकड़ों महिलाओं को चक्रवात आइला का खामियाजा भुगतना पड़ा था। राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 50 लाख महिलाएं इस चक्रवात से प्रभावित हुई थी। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) के अनुसार, बांग्लादेश उन 10 देशों में से एक है, जिसके पास पीने का स्वच्छ पानी भी नहीं है। वर्तमान में बांग्लादेश में लगभग 300 लाख की आबादी तटीय और पहाड़ी इलाकों में रहती हैं, इन्हें पीने के लिए साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा है।

चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के जलस्तर में हो रही लगातार वृद्धि ने पानी को और अधिक खारा बना दिया है। अब पीने योग्य पानी के स्त्रोतों से बस्तियां दूर हो रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जल संकट का कारण जलवायु परिवर्तन है। इसका प्रभाव तटीय क्षेत्रों की रहने वाली महिलाओं पर पड़ता है, जिन्हें पानी लाने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

खुलना जिले के दकोप और कोयरा जैसे सुदूर गांवों में भी खारा पानी है। ये गांव बांग्लादेश के पश्चिमी तट पर सत्यनगर जिले के श्यामनगर और अशुनी उपजिलों में स्थित हैं। महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को पीने का पानी लाने के लिए घड़ा, बाल्टी या ड्रम लेकर खारे पानी वाले इलाकों से होकर गुजरना पड़ता है। जो लोग पानी खरीद सकते हैं, वे खरीद लेते हैं। यहां के घरों में जब मेहमान आते हैं तो परिवारों को उनके खाने की चिंता नहीं होती, बल्कि यह चिंता होती है कि उनके लिए पानी का प्रबंध कैसे होगा।

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बांग्लादेश के खुलना जिले के दकोप उपजिला इलाके में अपने बच्चे के साथ पानी लेने जाती महिला। ये यहां की महिलाओं और बच्चों की दिनचर्या है। फोटो- रफिकुल मोंटू

जलाशयों का विनाश

दकोप उपजिला के कलाबगी गांव की हलीमा बेगम को पानी लेने के लिए पांच किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। हलीमा बेगम ने गांव कनेक्शन को बताया, "एक समय था जब मैं अपने घर के पास के तालाब से पानी ले लेती थी। आइला चक्रवात के बाद वह तालाब खारा हो गया।"

कलाबागी के लटकते गांव (जहां बाढ़ से बचाव के लिए जमीन के ऊपर घर बनाए गए हैं) की रहने वाली सूफिया बेगम ने गांव कनेक्शन को बताया कि कई सालों से उन्हें 24 किलोमीटर दूर से ड्रमों में ट्रॉलर के जरिए पीने का पानी लाना पड़ रहा है।

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घरों में पीने का पानी ड्रम में भरकर पहुंचाया जाता है। फोटो: रफिकुल मोंटू

सतखीरा में श्यामनगर उपजिला के गबुरा द्वीप संघ में सलाना हजारों लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता है। लक्सीखली गांव की जरीना खातुन हर दिन पानी के लिए परिवार के सदस्यों के साथ तीन से पांच किलोमीटर पैदल चलती हैं।

श्यामनगर अपजिला के अतुलिया संघ के तलबरिया गांव के रहने वाले एक स्कूल के शिक्षक तपस कुमार मंडल ने गांव कनेक्शन को बताया, "पेयजल का कोई विकल्प नहीं है। हम साल में बारह महीनों पानी की खोज के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन मार्च, अप्रैल और मई की गर्मियों में पेयजल मिलना मुश्किल हो जाता है।"

अशुनी उपजिला में कुरीकहुनिया गांव के मोहम्मद शाहजहां मोरल ने कहा कि बांग्लादेश के पश्चिमी तट में पानी का संकट पिछले पांच सालों में बढ़ गया है। पेयजल संकट की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक और निजी स्तर पर विभिन्न कदम उठाए गए हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं मिल पा रहा है।

जल संकट पर काम करने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा कमेटी बनाई गई है। साल 2019 में इस कमेटी ने 'फाइंडिंग फ्रेश वाटर इन अ चेंजिंग क्लाइमेट' नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में बताया गया कि बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम तट के कई भूमिगत जल स्रोतों में गाद की उपस्थिति के चलते स्वच्छ पानी मिलना बहुत मुश्किल हो गया है।

इस कमेटी ने बताया कि दक्षिण-पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में गहरे नलकूपों की गहराई 700 से 1,200 फीट के बीच है। परीक्षणों से पता चला है कि इन नलकूपों में पानी अपेक्षाकृत कम खारा और आर्सेनिक मुक्त है। हालांकि, अत्यधिक गाद, चट्टानों की उपस्थिति और अधिक खारापन के चलते सभी तटीय क्षेत्रों में नलकूप स्थापित करना संभव नहीं है। यह समस्या विशेष रूप से खुलना जिले के कोयरा, पिकागाचा, डाकोप और सतखीरा जिले के अशुनी, श्यामनगर, देहात, कालीगंज और बागघाट में है।

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स्थानीय महिलाओं को काफी दूर से पानी लाना पड़ता है. फोटो- रफिकुल मोंटू

जलवायु परिवर्तन, समुद्र का बढ़ता स्तर और खारापन

साल 2018 में बांग्लादेश कृषि विकास निगम की लघु सिंचाई सूचना सेवा इकाई द्वारा 'दक्षिणी क्षेत्र के भूजल में खारे पानी की अधिकता' नाम से रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में बताया गया कि खारा पानी बंगाल की खाड़ी से भूजल स्रोतों में प्रवेश कर रहा था। पिछले साल अप्रैल-मई में नरेला जिले के लोहागढ़ में मधुमती नदी में समुद्र से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर खारा पानी पाया गया था।

बांग्लादेश सरकार के मृदा संसाधन विकास संस्थान द्वारा 2017 के एक अध्ययन में पता चला कि समुद्र के पास की नदियों में खारापन का स्तर बढ़ रहा है। अध्ययन में बताया गया कि मिट्टी की लवणता भी 10 सालों (2005-2015) में 7.6 से बढ़कर 15.9 पीपीटी हो गई। वहीं, स्वीकृत पीपीटी का स्तर 0.4 से 1.8 है।

सूत्रों से पता चला है कि बारिसाल डिवीजन में 1.17 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में से 386,870 हेक्टेयर भूमि अत्यंत खारा है। पटुआखली, भोला, फीरोजपुर और बरिसाल जिलों की नदियों में भी खारापन बढ़ा है।

आइला चक्रवात ने दक्षिण-पश्चिम तट पर 11 जिलों के 64 उपजिलों में लगभग 50 लाख सीमांत लोगों को प्रभावित किया, जिससे जल संकट गहरा गया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, बांग्लादेश के जलवायु वित्त विश्लेषक एम जाकिर हुसैन खान ने गांव कनेक्शन को बताया कि मिट्टी की लवणता ने पेड़-पौधे और जलीय जंतु को भी प्रभावित किया है।

जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ और बांग्लादेश के सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज के कार्यकारी निदेशक अतीक रहमान ने कहा, "बांग्लादेश शायद जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।"

अतीक रहमान ने गांव कनेक्शन को बताया, "तटीय क्षेत्र समतल होता है। अगर पानी एक मीटर बढ़ जाता है तो यह 17 फीसदी जमीन को नुकसान पहुंचाएगा। समुद्र के शीर्ष पर स्थित खारा पानी नीचे बैठता है तो भूमिगत जल के खारापन को बढ़ाता है। गंगा में पानी के गिरते प्रवाह के चलते भी खारापन बढ़ रहा है।"

दकोप उपजिला के स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग के उप सहायक इंजीनियर जयंत मल्लिक ने गांव कनेक्शन को बताया कि डकोप उपजिला में ना तो गहरे नलकूप काम आते हैं और न ही उथले नलकूप। उन्होंने कहा कि गहरे नलकूप स्थापित नहीं किए जा सकते, क्योंकि क्षेत्र में मिट्टी की परत नहीं थी और उथले नलकूपों को स्थापित करने में भी समस्या थी।

पानी के खारेपन से कैसे मिलेगी निजात

दकोप उपजिला के कलाबगी और गुनेरी गांव के लोग मानसून के दौरान टैंकों में बारिश का पानी जमा कर लेते हैं। दो प्राइवेट संस्थाएं पानी का अलवणीकरण करती है, इससे लगभग 2,000 परिवारों को स्वच्छ पानी मिलता है।

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कुछ लोग इस तरह से मिट्टी के बर्तनों में पीने का पानी इकट्ठा करते हैं। फोटो: रफिकुल मोंटू

बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी तट में पानी की समस्या के समाधान के लिए स्थानीय नागरिकों ने एक कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी कई वर्षों से काम कर रही है। कमेटी के चेयरपर्सन शफिकुल इस्लाम ने कहा कि जल संकट को हल करने के लिए एक योजना बनाने की जरूरत है और इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।

इस कमेटी की मांग है कि राष्ट्रीय जल नीति और राष्ट्रीय जल प्रबंधन योजना में स्वच्छ और खारा मुक्त पेयजल उपलब्ध कराया जाए, सरकार को हर प्रभावित गांव में कम से कम एक तालाब का निर्माण करना चाहिए, साथ ही कृषि और घरेलू उद्देश्यों के लिए भी स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।

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कुछ क्षेत्रों में सामुदायिक स्तर पर पेयजल की व्यवस्था की गई है। फोटो: रफिकुल मोंटू

खुलना विश्वविद्यालय में पर्यावरण के प्रोफेसर दिलीप कुमार दत्त ने कहा कि भूजल पुनर्भरण के संबंध में एक संकट था - पंप किए जा रहे भूजल की मात्रा को प्रतिस्थापित नहीं किया जा रहा है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "पेयजल संकट को हल करने के लिए सरकार को तालाबों, नहरों और नदियों की मरम्मत करनी चाहिए। पानी के स्रोतों को लीज़ पर देना बंद करना चाहिए और हमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक एकीकृत जल आपूर्ति प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।"

मल्लिक ने कहा कि सरकार प्रभावित गांवों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए सतही जल के प्रयोग पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "हमने एक तालाब खोदने और इसके साथ ही एक तालाब रेत फिल्टर स्थापित करने की पहल की है। पहले उपजिला में कम से कम 500 ऐसे फिल्टर थे, जहां से लोग पीने का पानी इकट्ठा कर सकते थे, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के चलते ये फिल्टर खराब हो गए। अब पूरे उपजिला में सिर्फ 50 फिल्टर बचे हैं।"

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यह पीएसएफ फिल्टर सरकार द्वारा पेयजल की आपूर्ति के लिए स्थापित किया गया था। उनमें से ज्यादातर प्राकृतिक आपदाओं के चलते खराब हो गए हैं। फोटो: रफिकुल मोंटू

उन्होंने कहा कि सरकार ने पेयजल संकट को दूर करने के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड से इन क्षेत्रों में नई योजना की शुरुआत की है। इस योजना में खुलना जिले के दकोप, कोयरा और पिकागाछ को शामिल किया जाएगा। विशेष रूप से महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाएगा।

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