किसानों की तकदीर बदलेगी नई नीली क्रांति

Ashwani Nigam | Aug 10, 2017, 20:46 IST
मछली पालन
लखनऊ। देश में मछली पालकों को किसान का दर्जा मिलने के बाद अब किसान भी मछली पालन करके अपनी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव कर सकते हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय व राष्‍ट्रीय मत्‍स्‍य विकास बोर्ड के साथ मिलकर देश में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए नई नीली क्रांति योजना की शुरुआत करने जा रहे हैं। इस योजना में मछली पालकों को सभी प्रकार की सुविधाएं देकर मछली उत्पादन को बढ़ाया जाएगा।

पिछले दिनों केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने इसकी घोषणा की थी जिसके बाद इस योजना को हर प्रदेश में लागू करने को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। उत्तर प्रदेश के पशुधन व मत्स्य विभाग मंत्री एसपी सिंह बघेल ने बताया, ‘उत्तर प्रदेश के मछली पालक भारत सरकार और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं को अधिक से अधिक लाभ उठा सकें इसके लिए विभाग काम कर रहा है।’

उन्होंने बताया कि नीली क्रांति से प्रदेश में भी मछली पालन को बढ़ावा दिया जाएगा। मत्स्य मंत्री ने बताया कि प्रदेश के मछली पालकों को किसान का दर्जा भी दे दिया गया है।

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मछली उत्‍पादन के क्षेत्र में विश्‍व में भारत का दूसरा स्‍थान है। भारत विश्‍व में दूसरा सबसे बड़ा एक्‍वाकल्‍चर यानी जल से लाभान्वित होने वाला देश है। भारत में मछुआरों की संख्‍या 145 लाख है और यहां तटीय लंबाई 8,118 किलोमीटर है। इसे देखते हुए भारत विश्‍व में मछली पालन के क्षेत्र में प्रमुख पक्ष बन सकता है। भारत में मछली पकड़ने की दो लाख नौकाएं हैं।

पिछले साल देश से पांच अरब अमेरिकी डॉलर मूल्‍य का मछली का निर्यात किया गया लेकिन इसके बाद भी देश के भीतर अब तक इस्‍तेमाल न किए गए जल संसाधनों का बहुत बड़ा इलाका है और देश में गुणवत्‍ता पूर्ण मछली बीज की कमी है। इसके अलावा मछलियों के तैयार भोजन की भी कमी है जिसके कारण देश में जितनी मछली की जरूरत है उसको पूरा नहीं किया जा पा रहा है।

भारत सरकार ने सरकार ने पिछले बजट सत्र में नीली क्रांति के तहत मछली पालन की नई स्‍कीम की घोषणा की थी। विश्‍व में हालांकि प्रति मछली वार्षिक आदमनी खपत 18 किलोग्राम है, जबकि भारत में यह महज आठ किलोग्राम है। वर्तमान में भारत 95,80,000 मिट्रिक टन मछली उत्‍पादन करता है जिसमें से 64 प्रतिशत देश के भीतर और 36 प्रतिशत समुद्री स्रोतों से किया जाता है। हालांकि मछली पालन की जो पुरानी योजनाएं चल रही हैं, उससे का भी असर देखने को मिला है और पिछले साल देश के भीतर मछली उत्‍पादन की वृद्धि दर 7.9 रही थी।

ये भी पढ़ें- ... तो इसलिए हो रहा है बासमती धान से किसानों का मोहभंग

देश में मत्‍स्‍य क्षेत्र का स्‍वरूप लघु स्‍तर का है। इस लघु क्षेत्र के स्‍वरूप में उत्‍पादन से उपभोग तक काफी पक्ष शामिल हैं। भारत में मछली पालन को आय और रोजगार के सृजन का अधिक शक्तिशाली माध्‍यम माना जाता है क्‍योंकि इससे कई सहायक क्षेत्रों की वृद्ध‍ि होती है। देश के भीतर और समुद्री जल से मछली उत्‍पादन से रोजगार और रोजगार का महत्‍वपूर्ण स्रोत बनता है और यह बढ़ती जनसंख्‍या के लिए पोषक प्रोटीन प्रदान करता है।

देश में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण खाद्यान्‍न मांग बढ़ रही है, खेती योग्‍य जमीन सीमित हो रही है और कृषि उत्‍पाद गिर रहा है, ऐसे में खाद्यान्‍न की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए मछली पालन क्षेत्र की भूमिका महत्‍वपूर्ण बनती जा रही है। खाद्यान्‍न का पोषण सुरक्षा में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। कई वर्ष पहले मछली पालन को केवल पारंपरिक गतिविधि माना जाता था और अब ये हाल ही के कुछ वर्षों में प्रभावशाली वृद्धि के साथ व्‍यावसायिक उद्योग भी बन गई है।

खाद्य कृषि संगठन की 2014 की जारी सांख्यिकी रिपोर्ट '' द स्‍टेट ऑफ वर्ल्‍ड फिशरीज एंड एक्‍वाकल्‍चर 2014'' के अनुसार पूरे विश्व में मछली उत्‍पादन 15 करोड़ 80 लाख टन हो गया है और खान-पान के लिए मछली की आपूर्ति में औसत वार्षिक वृद्धि दर 3.2 हो गई है जोकि जनसंख्‍या की वार्षिक वृद्धि दर 1.6 से ज्‍यादा है।

Tags:
  • मछली पालन
  • राधा मोहन सिंह
  • केंद्रीय कृषि मंत्री
  • मछली पालक
  • केन्द्रीय कृषि मंत्रालय व राष्‍ट्रीय मत्‍स्‍य विकास बोर्ड
  • नीली क्रान्ति

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.