800 लोगों पर एक हैंडपंप : “साहब पीने को पानी नहीं, रोज नहाएं कैसे”

Arvind Singh Parmar | Mar 22, 2018, 10:21 IST

ललितपुर गर्मी के शुरू होते ही बुंदेलखंड में पानी का संकट मडराने लगा है। जल स्तर लगातार नीचे गिरने से हैण्डपम्प सूखने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आने वालों में बुंदेलखंड में झाँसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा जिला है।

इस क्षेत्र के लोग सिंचाई के साथ पीने पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। गर्मी का सीजन शुरू होते ही बुंदेलखंड के ग्रामीण-कस्बाई क्षेत्रों में पीने के पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं।

ललितपुर जनपद से 85 किमी मडावरा तहसील के गाँव सकरा में चार हैण्डपम्प लगे हैं। इसी गाँव के तीन हैण्डपम्पों ने गर्मी शुरू होने से पहले साथ छोड़ दिया। आठ सौ की आबादी एक हैण्डपम्प के सहारे है। यह समस्या बस इस गाँव की नहीं है बल्कि बुंदेलखंड के लगभग हर गाँव की है।

सकरा की रहने वाली झारीबाई (58 वर्ष) बताती हैं,“ पीने का पानी मिलता है नहीं, ऐसे में नहाए कैसे। पानी की बड़ी परेशानी है। 15-15 दिन नहाने को पानी नहीं मिल पाता।”

मीलों दूर से लाना पड़ता है पानी। इसी गाँव की सुधा (45 वर्ष) बताती है,” पानी की समस्या को लेकर कई बार प्रधान से कहा, वो सुनते नहीं हैं। तीन हैण्डपम्प खराब हैं एक में पानी निकलता है। दो तीन घंटे इंतजार के बाद दो बर्तन पानी मिल पाता है, वह भी बीच-बीच में पानी छोड़ देता हैं। ”

पूरे क्षेत्र में है पीने के पानी की समस्या। वहीं महरौनी ब्लाँक का गाँव बम्होरी घाट भी पानी की समस्या से अछूता नही हैं। इस गाँव में 15 हैण्डपम्प हैं, लेकिन दो हैण्डपम्प सहीं हैं। इस गाँव के लखनलाल बुनकर (24 वर्ष) बताते हैं,”इन दो हैण्डपम्पों पर रात दिन रखवाली होती हैं। खटर-पटर की आवाज आती रहती है। दो बाल्टी पानी निकलने के बाद झटका लेने लगता हैं।”

पिछले 21 वर्षों से बुन्देलखण्ड सूखे की मार झेल रहा है। यहां सूखे ने अपनी सारी सीमाएं पार कर दी हैं। तालाब गन्दे नाले नालियों के संगंम क्षेत्र बन कर रह गए हैं, बरसात के दिनों में भी नदियां अपना जलस्तर ठीक नहीं कर पाती। तालाब, कुंए तथा हैण्डपम्प साल के दस महीनें सूखे रहते हैं, भूगर्भ जल अत्यन्त नीचे जाकर भी गिरावट से थमने का नाम नहीं ले रहा। नदियां बरसात के दिनों में भी अपने बांधों को छमता के अनुसार भर नहीं पा रही। खेती ऊसर हो गई है।

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