कुछ अलग करने की जिद ने किसान के बेटे को पहुंचाया भारतीय फुटबॉल टीम के करीब

Daya Sagar | Dec 13, 2019, 13:06 IST
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले बलरामपुर के शेखुईपुरा गांव के रहने वाले आकाश मिश्रा वर्तमान में भारत की जूनियर टीम 'इंडियन एरोज' का हिस्सा हैं। 13 साल की उम्र में आकाश का चयन जर्मनी के एक फुटबॉल ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए हुआ था।
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"मैं एक ही शहर में अपनी पूरी जिंदगी नहीं काटना चाहता था। मेरे घर के पास ही ग्राउंड था। मैं देखता था कि जो खिलाड़ी वहां पर खेलते थे, उन्हें देश के अलग-अलग जगहों पर जाने का मौका मिलता था। यह सब देखकर मेरे अंदर भी खिलाड़ी बनने के ख्वाब पलने लगे।", उत्साह से लबरेज भारतीय युवा टीम के फुटबॉलर आकाश मिश्रा (18 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं।

आकाश मिश्रा वर्तमान में भारत की जूनियर टीम 'इंडियन एरोज' का हिस्सा हैं, जो कि भारतीय फुटबॉल के घरेलू टूर्नामेंट 'आई-लीग' में खेल रही है। वह भारत की उस अंडर-18 टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने सितंबर, 2019 में हुई अंडर-18 दक्षिण एशियाई फुटबॉल चैंपियनशिप (सैफ कप) में भारत को खिताबी जीत दिलाई थी। वह रूस में हुई ग्रेनटकिन मेमोरियल फुटबॉल कप में भी भारतीय अंडर-18 टीम का हिस्सा थे। इस टूर्नामेंट में आकाश ने शानदार डिफेंडिग के साथ-साथ दो गोल भी किए थे।

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रुस में हुए टूर्नामेंट में गोल करते आकाश

लेफ्ट फुलबैक पोजिशन पर खेलने वाले आकाश उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले बलरामपुर के शेखुईपुरा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता जी एक किसान हैं, जो कि क्षेत्र के अन्य किसानों की तरह मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं। बचपन में आकाश भी खेत में अपने पिता का हाथ बंटाते थे। लेकिन कुछ अलग करने की जिद और जुनून ने आज उन्हें फुटबॉल के राष्ट्रीय मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है।

खुद आकाश के शब्दों में, "हमारा आधा दिन खेत में ही गुजर जाता था। संयुक्त परिवार में हम सब चचेरे भाई मिलकर खेत में पापा और चाचा का हाथ बंटाते थे। लेकिन इन सबके बीच मैं खेल के लिए भी समय निकाल लेता था। भारत के दूसरे लड़कों की तरह पहले मैं क्रिकेटर बनना चाहता था। लेकिन क्रिकेट में प्रतियोगिता काफी अधिक थी। जब मैं ग्यारह-बारह साल का था, तब मुझे लगा कि जिंदगी में कुछ अलग करना है तो क्रिकेट को छोड़कर किसी और खेल की तरफ रुख करना होगा। इसके बाद मैं फुटबॉल की तरफ मुड़ गया।"

स्पेन के फुटबॉलर सर्जियो रॉमोस को अपना आदर्श मानने वाले आकाश कहते हैं, "शुरुआत में घर वाले मुझे फुटबॉल खेलने से मना करते थे। वे हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने की बात करते थे। हमारे आस-पास का माहौल भी कुछ ऐसा ही था। हर समय पढ़ाई, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई की बातें होती थी। आस-पास के बच्चे सुबह का समय स्कूल और शाम का समय कोचिंग में बीताते थे। खेलने का कोई वक्त ही नहीं मिलता था।"

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अपने माता-पिता के साथ आकाश

"इसकी वजह से कभी भी हमारी पूरी टीम नहीं बन पाई। हम 8 से 10 लोग ही नियमित रुप से फुटबॉल खेलने आते थे। लेकिन हमने कभी भी अपना उत्साह नहीं छोड़ा। मेरे दादा जी और कोच ने हमेशा मेरा साथ दिया। उन्होंने मेरे माता-पिता को भी इस बात का विश्वास दिलाया कि मैं अच्छा फुटबॉलर बन सकता हूं। इस तरह मेरे सफर की शुरुआत हुई।", आकाश बात को जारी रखते हैं।

अपने शुरुआती संघर्ष के दिनों को याद करते हुए आकाश कहते हैं, "मेरे पिता एक साधारण किसान हैं, इसलिए कई बार घर में आर्थिक तंगी रहती थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि उनके पास मुझे जूते दिलाने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन उन्होंने कभी भी मुझे इसका एहसास नहीं होने दिया। मैं जब भी कुछ मांगता था, तो वह आस-पड़ोस के लोगों से पैसे मांगकर मेरे लिए जरुरी संसाधनों का इंतजाम करते थे। उन्हें लगता था कि मुझे यह सब पता नहीं चलता है, लेकिन मेरे बाबा मुझे सब बता देते थे ताकि मुझे भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास रहे।"

बचपन में आकाश को फुटबॉल देखने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। वह बताते हैं, "घर में कुल पंद्रह लोगों पर सिर्फ एक ही टीवी थी। इसलिए बहुत ही मुश्किल से टीवी का रिमोट हाथ में आता था। फुटबॉल देखने के लिए मैं, अपने चचेरे भाई क्षितिज के साथ देर रात तक जागता था। जब घर में सब सो जाते थे, तब हम जागकर प्रीमियर और चैंपियन लीग के मैच देखा करते थे।"

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बलरामपुर के इसी मैदान में आकाश करते हैं फुटबॉल की प्रैक्टिस

आकाश की किस्मत तब बदली जब उन्हें एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता के जरिये तीन साल के लिए जर्मनी जाने और ट्रेनिंग करने का मौका मिला। आकाश के मुताबिक, इस घटना ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी।

2014 की इस घटना को याद करते हुए आकाश बताते हैं, "मैं एक टूर्नामेंट खेलने लखनऊ गया था। यह टूर्नामेंट मेरे और मेरे टीम के लिए कुछ खास नहीं गया था और हम फाइनल से पहले ही टूर्नामेंट से बाहर थे। लेकिन आयोजकों ने हर खिलाड़ी से उनका नाम, पता और मोबाइल नंबर मांगा था। इस टूर्नामेंट के खत्म होने के करीब तीन महीने बाद हमारे घर पर एक कॉल आई, जिसमें 'यू ड्रीम स्पोर्ट्स' टीम से जुड़े लोग मुझे ट्रेनिंग के लिए जर्मनी जाने का ऑफर दे रहे थे।"

लगभग छः फीट लंबे आकाश मिश्रा कहते हैं कि जर्मनी का बुलावा आने पर उन्हें और उनके परिवार वालों को विश्वास ही नहीं हुआ। उन्हें लगा कि यह एक फ्रॉड कॉल है। लेकिन इस कॉल के कुछ दिन के बाद यू ड्रीम स्पोर्ट्स टीम के लोग खुद गांव आए और मेरे परिवार वालों को विश्वास दिलाया कि मैं जर्मनी के लिए चयनित हुआ हूं।

"मेरे घर वाले अकेले मुझे लखनऊ नहीं जाने देते थे, जर्मनी की तो बात ही छोड़ दिजिए। इसलिए जब जर्मनी के लिए मेरा सेलेक्शन हुआ तो मुझे उम्मीद नहीं थी कि घर वाले मुझे विदेश जाने देंगे। लेकिन मेरे दादा जी और मेरे कोच ने मेरे घर वालों को समझाया। उन्होंने बताया कि अगर मैं जर्मनी के लिए एक बार निकल जाऊंगा, उसके बाद मेरे लिए चीजें आसान हो जाएंगी। इसके बाद ही घर वाले माने।", आकाश उस दिन को याद करते हुए बताते हैं।

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जर्मनी के अनुभव के बारे में आकाश कहते हैं कि गांव की ट्रेनिंग से मुझे फुटबॉल का कच्चा ज्ञान मिला था लेकिन इसे मूर्त रुप जर्मनी में ही जाकर मिला। जर्मनी में ही उन्हें ये पता चला कि कैसे और किस पोजिशन पर खेलना है। प्रोफेशनल फुटबॉल के कई स्किल्स, तकनीक और गेम प्लान आकाश को जर्मनी में ही सीखने को मिले। आकाश बताते हैं कि वहां पर भारतीय खिलाड़ियों के लिए भारतीय कोच भी रखे गए, ताकि खिलाड़ियों को विदेशी कोच से संवाद करने में कोई समस्या ना हो।

जर्मनी से आने के बाद आकाश का चयन इंडिया अंडर-18 टीम में हो गया। यह आकाश के लिए बचपन का सपना पूरा होने के जैसे था। वह कहते हैं, "जब आप इंडिया की जर्सी पहनकर मैदान पर उतरते हैं और मैच शुरु होने से पहले राष्ट्रगान बजता है तो वह बिल्कुल अलग ही एहसास होता है। उसे शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है। उसे बस महसूस किया जा सकता है। मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने इतनी कम उम्र में इस एहसास को महसूस किया।"

अपने अभी तक की यात्रा के बारे में आकाश कहते हैं कि अब तक की उनकी यात्रा अच्छी रही है। जर्मनी के ट्रेनिंग कोर्स के बाद उन्हें तुरंत पहले इंडिया अंडर-18 और फिर जूनियर टीम इंडियन एरोज में मौका मिल गया। हालांकि आई-लीग का पहला सीजन आकाश के लिए अच्छा नहीं गया था। लेकिन इस बार आकाश की कोशिश है कि वह सैफ कप के अपने फॉर्म को आई-लीग में भी बरकरार रखें और भारतीय सीनियर टीम की तरफ एक कदम और आगे बढ़ाएं।

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भारतीय जूनियर टीम के साथ आकाश

ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले खिलाड़ियों के लिए आकाश कहते हैं, "भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में फुटबॉलरों की राह मुश्किल जरुर है,क्योंकि अभी यहां पर फुटबॉल कल्चर विकसित नहीं हो पाया है। लेकिन अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ हैं और लगातार मेहनत कर रहे हैं तो कहीं ना कहीं से रास्ता जरुर खुल जाता है।"

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