Supreme Court on Aravalli Ranges: सुप्रीम कोर्ट का अरावली को लेकर आया 100 मीटर वाला फैसला इस वक्त चर्चा का विषय बना हुआ है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि अरावली की 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अपने आप 'जंगल' नहीं माना जाएगा। इसका मतलब है कि सिर्फ अरावली में होने के आधार पर किसी पहाड़ी को वन भूमि घोषित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जमीन का फैसला उसके रिकॉर्ड, अधिसूचना और वास्तविक स्थिति के आधार पर होगा, न कि सिर्फ ऊंचाई के पैमाने पर। इस फैसले से राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को जमीन की व्याख्या करने की अधिक शक्ति मिल गई है, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि कहीं इस ढील का फायदा उठाकर अरावली का धीरे-धीरे क्षरण न हो जाए।
क्यों हो रहा है विवाद
यह फैसला अंधाधुंध कटाई की इजाजत नहीं देता और न ही सभी पहाड़ियों को निर्माण के लिए खोल देता है। अगर कोई जमीन पहले से वन भूमि घोषित है या किसी पर्यावरण कानून के तहत संरक्षित है, तो उस पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा। विवाद की जड़ यह है कि जो इलाके पहले 'जंगल जैसे' माने जाते थे, उन्हें अब 'राजस्व भूमि' या 'गैर-वन क्षेत्र' बताया जा सकता है। यहीं से यह डर पैदा होता है कि कहीं अरावली धीरे-धीरे खोखली न हो जाए।
Climate Change का बढ़ेगा ख़तरा
असल खतरा फैसले में नहीं, बल्कि उसके इस्तेमाल में है। अगर जमीनी रिकॉर्ड में हेरफेर किया गया, पर्यावरण आकलन को नजरअंदाज किया गया और विकास के नाम पर ढील दी गई, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। दिल्ली-NCR की हवा और जहरीली हो जाएगी, भूजल स्तर और नीचे चला जाएगा और गर्मी और भी बेरहम हो जाएगी। दरअसल, अरावली का फैलाव गुजरात, राजस्थान और हरियाणा से होते हुए दिल्ली तक है, जिसकी लंबाई करीब 800 किलोमीटर है। हरियाणा और राजस्थान में अरावली का एक बड़ा हिस्सा राजस्व भूमि के रूप में दर्ज है। पहले इन इलाकों को 'जंगल जैसा क्षेत्र' मानकर संरक्षण दिया जाता था, लेकिन अब राज्य सरकारें तय करेंगी कि ये वन हैं या नहीं। इसी बात से लोगों में चिंता है।
हवा, पानी और तापमान पर होगा असर
- दिल्ली की हवा पर इसका सीधा असर पड़ेगा। अरावली NCR के लिए एक 'डस्ट बैरियर' यानी धूल रोकने वाली दीवार की तरह काम करती है। अगर अरावली क्षेत्र में खनन या कटाई बढ़ी, तो PM10 और PM2.5 जैसे कणों में तेजी से बढ़ोतरी होगी। इससे दिल्ली-NCR में पहले से खराब AQI (वायु गुणवत्ता सूचकांक) और भी बिगड़ जाएगा।
- पानी के मामले में भी अरावली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी चट्टानें बारिश का पानी सोखकर धीरे-धीरे जमीन में पहुंचाती हैं। हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य पहले से ही जल संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में, अगर अरावली कमजोर हुई, तो बोरवेल और ट्यूबवेल और भी जल्दी सूखने लगेंगे।
- तापमान और जलवायु पर भी इसका असर पड़ेगा. अरावली को NCR का 'नेचुरल कूलिंग सिस्टम' यानी प्राकृतिक शीतलन प्रणाली कहा जाता है। अगर कटाई बढ़ी, तो 'अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट' (शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव) तेज होगा। इसका मतलब है कि गर्मियों में तापमान और भी ज्यादा बढ़ेगा, और गर्मी असहनीय हो जाएगी।
तो क्या यह फैसला जंगल कटने की गारंटी है? नहीं, लेकिन यह फैसला एक रास्ता जरूर खोलता है कि राज्य सरकारें रिकॉर्ड कैसे तय करती हैं। अरावली कटेगी या बचेगी, यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज्यादा सरकारों के फैसलों पर निर्भर करेगा।