रीपर ने छोटे किसानों के लिए फसल कटाई को बनाया आसान
Arvind Shukla | May 01, 2019, 13:46 IST
लखनऊ। कई मशीनों ने किसानों के काम को आसान कर दिया है। जो काम करने में पहले कई कई दिन या हफ्ते लग जाते थे, वो काम अब मशीनों से कुछ घंटों में हो जाता है। गेहूं कटाई के लिए प्रचलित मशीनों ने किसानों की कई मुश्किलें हल कर दी हैं।
मार्च से लेकर मई तक का महीना भारत में गेहूं कटाई का होता है। पहले गेहूं काटने में कई कई महीने लग जाते थे, लेकिन बाद में आई कंबाइन जैसी मशीनों ने काफी मदद की। लेकिन कंबाइन बड़े खेतों के लिए उपयुक्त है। बाद में रीपर आए, ये ट्रैक्टर में फिट हो जाते थे, इनकी कीमत भी काफी कम थी। लेकिन आजकल पोर्टेबल पावर टिलर काफी प्रचिलत हैं। इन्हें सेल्फ प्रोपेल्ड रीपर भी कहा जाता है। ये छोटे खेतों में जुताई, निराई के साथ रीपर फिट करने पर धान-गेहूं की कटाई भी कर सकते हैं। इसलिए छोटे किसान इन्हें खरीद रहे हैं।
लखीमपुर जिले में थारूगांव चंदनपुर के रहने वाले मेलाराम बताते हैं, हम जैसे छोटे किसानों के लिए रीपर (पावर टिलर वाला) अच्छा है। इससे एक घंटे में करीब एक एकड़ फसल कट जाती है। जबकि पेट्रोल सिर्फ एक लीटर लगता है। यही काम अगर मजदूर करते तो कई दिन लग जाते है।"
पावर टिलर के साथ ही हजारों किसान ट्रैक्टर चलित रीपर भी इस्तेमाल करते हैं। लखीमपुर जिले में ही खवैया गांव में किराए के रीपर से अपनी फसल कटवा रहे फतेह सिंह (65 वर्ष) कहते हैं, "इससे काम बड़ा आसान हो गया है। ट्रैक्टर वाला एक एकड़ के 1000 रुपए (200 रुपए बीघा) लेगा। लेकिन एक घंटे में ही एक एकड़ फसल कट जाएगी। इससे समय और पैसा दोनों बचते हैं। कंबाइन से भूसा नहीं निकलता है, इसमें दोनों काम हो जाते हैं।"
सीतापुर में गेहूं काटने के रीपर बाइंडर का प्रदर्शन करते कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आनंद सिंह, डॉ. सौरभ व डॉ. आनंद सिंह।
ट्रैक्टर चलित रीपर 40 से 60 हजार रुपए के आते हैं। जो ट्रैक्टर के आधे या पीछे फिट हो जाते हैं। इनमें भी कंपाइन की तरह आगे ब्लैड लगी होती है, जो फसल काटने के बाद एक तरफ नीचे लाइन से बिछाते जाते हैं।
कंबाइन मशीन तेजी से काम करती है लेकिन इससें भूसा नहीं बनता। ये फसल को काफी ऊपर से काटती है। भूसे के लिए अलग से किसान को दूसरी मशीन लगानी होती है। यूपी के बाराबंकी सीतापुर समेत कई जिलों में कंबाइन का प्रति एकड़ किराया करीब 1500 रुपए है।
मार्च से लेकर मई तक का महीना भारत में गेहूं कटाई का होता है। पहले गेहूं काटने में कई कई महीने लग जाते थे, लेकिन बाद में आई कंबाइन जैसी मशीनों ने काफी मदद की। लेकिन कंबाइन बड़े खेतों के लिए उपयुक्त है। बाद में रीपर आए, ये ट्रैक्टर में फिट हो जाते थे, इनकी कीमत भी काफी कम थी। लेकिन आजकल पोर्टेबल पावर टिलर काफी प्रचिलत हैं। इन्हें सेल्फ प्रोपेल्ड रीपर भी कहा जाता है। ये छोटे खेतों में जुताई, निराई के साथ रीपर फिट करने पर धान-गेहूं की कटाई भी कर सकते हैं। इसलिए छोटे किसान इन्हें खरीद रहे हैं।
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लखीमपुर जिले में थारूगांव चंदनपुर के रहने वाले मेलाराम बताते हैं, हम जैसे छोटे किसानों के लिए रीपर (पावर टिलर वाला) अच्छा है। इससे एक घंटे में करीब एक एकड़ फसल कट जाती है। जबकि पेट्रोल सिर्फ एक लीटर लगता है। यही काम अगर मजदूर करते तो कई दिन लग जाते है।"
पावर टिलर के साथ ही हजारों किसान ट्रैक्टर चलित रीपर भी इस्तेमाल करते हैं। लखीमपुर जिले में ही खवैया गांव में किराए के रीपर से अपनी फसल कटवा रहे फतेह सिंह (65 वर्ष) कहते हैं, "इससे काम बड़ा आसान हो गया है। ट्रैक्टर वाला एक एकड़ के 1000 रुपए (200 रुपए बीघा) लेगा। लेकिन एक घंटे में ही एक एकड़ फसल कट जाएगी। इससे समय और पैसा दोनों बचते हैं। कंबाइन से भूसा नहीं निकलता है, इसमें दोनों काम हो जाते हैं।"
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सीतापुर में गेहूं काटने के रीपर बाइंडर का प्रदर्शन करते कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आनंद सिंह, डॉ. सौरभ व डॉ. आनंद सिंह।
ट्रैक्टर चलित रीपर 40 से 60 हजार रुपए के आते हैं। जो ट्रैक्टर के आधे या पीछे फिट हो जाते हैं। इनमें भी कंपाइन की तरह आगे ब्लैड लगी होती है, जो फसल काटने के बाद एक तरफ नीचे लाइन से बिछाते जाते हैं।
कंबाइन मशीन तेजी से काम करती है लेकिन इससें भूसा नहीं बनता। ये फसल को काफी ऊपर से काटती है। भूसे के लिए अलग से किसान को दूसरी मशीन लगानी होती है। यूपी के बाराबंकी सीतापुर समेत कई जिलों में कंबाइन का प्रति एकड़ किराया करीब 1500 रुपए है।