किसानों की मदद करेगा ये उपकरण, फसल को नुकसान पहुंचाए बिना करेगा खरपतवार का खात्मा 

Divendra SinghDivendra Singh   5 May 2018 1:13 PM GMT

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किसानों की मदद करेगा ये उपकरण, फसल को नुकसान पहुंचाए बिना करेगा खरपतवार का खात्मा बड़े काम का है ये यंत्र

भारत में हर वर्ष कृषि क्षेत्र में करोड़ों का नुकसान सिर्फ खरपतवारों की वजह से हो जाता है। जबकि खरपतवार को हटाने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायनों से फसलों के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होता है। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक ऐसा उपकरण बनाया है, जिसके प्रयोग से फसल को नुकसान पहुंचाए बिना खरपतवार को हटाया जा सकता है।

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इस मशीन में एक कैमरा लगा होता है, जो खरपतवार के हिसाब से रसायन की मात्रा का छिड़काव करता है, जिससे रसायन का कम प्रयोग होता है। ट्रैक्टर से जुड़ी मशीन खरपतवार के हिसाब से खरपतवारनाशी का छिड़काव करती है। खरपतवारीनाशी की मात्रा खरपतवार के हिसाब से ही छिड़काव करती है। इस मशीन को 350-450 मिमी. की पंक्ति से पंक्ति की दूरी वाली फसलों के हिसाब से विकसित किया गया है।

शोध टीम के सदस्य वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अखिलेश कुमार चंदेल बताते हैं, "हमने स्पंज रोलर्स का प्रयोग किया, जो परंपरागत उपकरणों द्वारा किए स्प्रे के बजाय खरपतवार में सीधे तौर पर खरपतवार को नष्ट करता है। इस तकनीक में रसायन का कम प्रयोग होता है, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण भी कम होता है।"

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मूंगफली और मक्का फसलों के साथ शुष्क भूमि पर क्षेत्र के प्रयोगों से पता चला है कि डिवाइस के उपयोग ने उत्पादन में वृद्धि, फसल क्षति को कम किया और हर्बिसाइड के पारंपरिक तंत्र की तुलना में हर्बीसाइड के लगभग 80 प्रतिशत बचाया। वैज्ञानिकों ने इस मशीन का प्रयोग मूंगफली और मक्का की फसल में किया, इस मशीन के प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि, फसल क्षति कम हुई, साथ ही खरपतवारनाशी का 80 प्रतिशत तक कम प्रयोग हुआ।

मूंगफली के खेत में किया सफल प्रयोग

हमने स्पंज रोलर्स का प्रयोग किया, जो परंपरागत उपकरणों द्वारा किए स्प्रे के बजाय खरपतवार में सीधे तौर पर खरपतवार को नष्ट करता है। इस तकनीक में रसायन का कम प्रयोग होता है, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण भी कम होता है।
अखिलेश कुमार चंदेल, वैज्ञानिक, वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी

जबकि पहले से विकसित उपकरणों में ऐसी सुविधा नहीं थी, इसमें खरपतवार के घनत्व के हिसाब से खरपतवारनाशी का छिड़काव होता है। इस उपकरण में एक स्टोरेज टैंक, पाइपलाइन, कैमरा, डिफलेक्टर, ग्राउंड व्हील व स्पंज रोलर्स शामिल हैं, ये सभी यंत्र 2.1 किमी. प्रति घंटे स्पीड से चलने वाले ट्रैक्टर से जुड़े होते हैं, प्रसंस्करण इकाई में डिजिटल इमेज एनालिसिस के लिए लैपटॉप भी लगा होता है।

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यह मशीन एक साथ छह सीधी लाइनों पर कैमरे व स्पंज रोलर के जरिए खरपतवारनाशी का छिड़काव करता है। मुख्य फसल और खरपतवार को कैमरे के माध्यम से ये उपकरण पहचान लेता है, जिससे ये सिर्फ खरपतवार पर ही खरपतवारनाशी का छिड़काव करता है, जिससे रसायन का कम प्रयोग होता है।

खेत में इस मशीन का प्रयोग करने पर पता चला कि मूंगफली और मक्के की फसल में इसके प्रयोग से फसल में रसायन की मात्रा बिल्कुल कम है।

ये उपकरण अभी बाजार में उपलब्ध नहीं है, क्योंकि शोधकर्ता अभी इसमें और भी सुधार कर रहे हैं। अखिलेश कुमार तिवारी आगे बताते हैं, "हम लैपटॉप को एक विश्लेषणात्मक डिवाइस से बदलना चाहते हैं जो लागत को भी कम करेगा। अभी हम इस उपकरण का दूसरी फसलों पर भी प्रयोग करने वाले हैं, जिससे बेहतर परिणामों के बारे में पता चल पाए। शोध दल एक छोटी मशीन को विकसित करना चाहता है, जिससे किसान उसे हाथ से भी प्रयोग कर पाए, क्योंकि हर किसान के पास ट्रैक्टर नहीं होता है।"

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अखिलेश कुमार तिवारी के साथ ही इस शोध दल में वीके तिवारी और आदित्य अग्रवाल (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर), सत्य प्रकाश कुमार (केंद्रीय कृषि संस्थान, भोपाल), और ब्रजेश नरे (सेंट्रल आलू रिसर्च इंस्टीट्यूट, शिमला) शामिल रहे। साभार- (इंडिया साइंस वायर)

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