रबर मैन के नाम से मशहूर प्रकाश पेठिया सिखाते हैं योग, आज भी भेजते हैं पोस्टकार्ड
Pushpendra Vaidya | Oct 24, 2019, 06:28 IST
नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)। डिजिटल युग में इन्टरनेट की मदद से चंद सेकंड में हम अपनी बात दूर बैठे शख्स तक पहुंचा सकते हैं। ऐसे समय में भी एक शख्स ऐसा है जो पोस्टकार्ड की मदद से खुशियां बांट रहा हैं। यह शख्स रोजाना कम से कम दस लोगों को पोस्टकार्ड से संदेश भेजता है।
प्रकाश सेठिया पिछले 50 सालों से लोगों के सुख-दुख में चिट्ठियां लिखते आ रहे हैं। वो बताते हैं, "अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। किसी अन्य संचार साधनों से भावनाओं को इस तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता है। सारे पोस्टमैन मुझे पहचानते हैं, कोई भी देखता है तो कहता है कि वो देखो पोस्टकार्ड लिखने वाले आ गए, मुझे जहां तक याद है मैं 1966-67 से लगातार पोस्टकार्ड लिख रहा हूं। मैं तो कहता हूं ये जब आपके पास आता है तो इसे आप बहुत दिनों तक रख सकते हैं।"
प्रकाश पेठिया के इस काम में उनकी पत्नी सुषमा पेठिया भी उनका साथ देती है। सुषमा का कहना है कि यह केवल शौक नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की संवेदना है। मेरे ससुर जी थे वो भी हमेशा टेलीग्राम भेजते थे, उनकी मौत के बाद इन्होंने पोस्टकार्ड लिखना शुरू किया। ये बहुत अच्छा है जहां हम नहीं पहुंच पाते वहां पर हमारा संदेश पहुंच जाता है, उन्हें हमारी उपस्थित का एहसास हो जाता है
प्रकाश पेठिया के दोस्त संजय कहते हैं, "एक पोस्टकार्ड की कीमत ज्यादा से ज्यादा 50 पैसे होगी, आप उसमें अपनी भावनाओं को ज्यादा मुखर रूप से व्यक्त कर पाते हैं, टेलीफोन या इलेक्ट्रानिक माध्यम से बात तो हो जाती है, लेकिन उसका कोई भावनात्मक संदेश नहीं जाता है, लोगों को ज्यादा से पत्र लिखने की आदत बरकरार रखनी चाहिए। साइकलिंग पर प्रकाश का बैलेंस करना न केवल अदभुत है बल्कि लोगों को आश्चर्यकित करने वाला है। वह योग का संदेश भी देते हैं और युवाओं को प्रशिक्षण भी।"
ये खबर मूल रुप से गांव कनेक्शन में साल 2019 में प्रकाशित की गई थी
प्रकाश सेठिया पिछले 50 सालों से लोगों के सुख-दुख में चिट्ठियां लिखते आ रहे हैं। वो बताते हैं, "अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। किसी अन्य संचार साधनों से भावनाओं को इस तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता है। सारे पोस्टमैन मुझे पहचानते हैं, कोई भी देखता है तो कहता है कि वो देखो पोस्टकार्ड लिखने वाले आ गए, मुझे जहां तक याद है मैं 1966-67 से लगातार पोस्टकार्ड लिख रहा हूं। मैं तो कहता हूं ये जब आपके पास आता है तो इसे आप बहुत दिनों तक रख सकते हैं।"
प्रकाश पेठिया के इस काम में उनकी पत्नी सुषमा पेठिया भी उनका साथ देती है। सुषमा का कहना है कि यह केवल शौक नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की संवेदना है। मेरे ससुर जी थे वो भी हमेशा टेलीग्राम भेजते थे, उनकी मौत के बाद इन्होंने पोस्टकार्ड लिखना शुरू किया। ये बहुत अच्छा है जहां हम नहीं पहुंच पाते वहां पर हमारा संदेश पहुंच जाता है, उन्हें हमारी उपस्थित का एहसास हो जाता है
प्रकाश पेठिया के दोस्त संजय कहते हैं, "एक पोस्टकार्ड की कीमत ज्यादा से ज्यादा 50 पैसे होगी, आप उसमें अपनी भावनाओं को ज्यादा मुखर रूप से व्यक्त कर पाते हैं, टेलीफोन या इलेक्ट्रानिक माध्यम से बात तो हो जाती है, लेकिन उसका कोई भावनात्मक संदेश नहीं जाता है, लोगों को ज्यादा से पत्र लिखने की आदत बरकरार रखनी चाहिए। साइकलिंग पर प्रकाश का बैलेंस करना न केवल अदभुत है बल्कि लोगों को आश्चर्यकित करने वाला है। वह योग का संदेश भी देते हैं और युवाओं को प्रशिक्षण भी।"
ये खबर मूल रुप से गांव कनेक्शन में साल 2019 में प्रकाशित की गई थी