नदी किनारे सब्जी की खेती से करते थे गुजारा, लॉकडाउन ने सब बर्बाद किया
गाँव कनेक्शन | May 11, 2020, 12:01 IST
बांदा (उत्तर प्रदेश)। सरकार की तमाम कवायदों के बाद भी लॉकडाउन में किसानों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। सबसे ज्यादा नुकसान सब्जी किसानों का हो रहा है। सब्जी किसान बहुत दिनों तक अपने पास रख नहीं सकते, ऐसे में उनके पास सब्जी को फेंकने या कम कीमत में बेचने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता।
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भी सब्जी किसानों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। सब्जी खेतों से निकल रही है लेकिन बाजार तक नहीं पहुंच पा रही है। रोज सब्जी बेचकर घर का खर्च चलाने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
बांदा बदौसा के रहने वाले किसान पप्पू राम बागै नदी के किनारे रेत में सब्जियां लगाते है। हर साल इस सीजन में खीरा, ककरी, तरबूज और दूसरी सब्जियों से उनकी अच्छी कमाई हो जाया करती, लेकिन इस बार लॉकडाउन में वे परेशान हैं।
वे कहते हैं, "सब्जी खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा है। कोई खरीद भी रहा है तो कीमत बहुत कम मिल रही है। इन्हीं पैसे से हमारा चार-महीने का गुजारा चलाता था। इस बार तो लागत भी नहीं निकल पा रही है।"
महिला किसान सुशीला की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने इस नदी के किनारे इस बार लौकी, तोरई और करेला लगाया है। वे बताती हैं, "इस बार पैसे का नुकसान तो हो ही रहा है, मेहनत भी बेकार जा रही है। बाजार में एक घंटे दुकान लगाने का समय मिलता है। इतने कम से समय में जो बिका तो बिका नहीं तो नुकसान ही होता है। कम कीमत बेचना पड़ रहा है। सोचते हैं कि कुछ ही पैसे मिल जाये तो भी सही रहे।"
दरअसल लॉकडाउन घोषित होने के कारण स्थानीय बाजार में पुलिस प्रशासन की सख्ती के कारण बमुश्किल एक से दो घंटे के लिए दुकानें लगाने का मौका मिल रहा है। लाकडाउन के तीसरे चरण में जहां कुछ राहत मिली तो सब्ज़ी मंडियों में बाहरी व्यापारियों के न आने के कारण किसान फसल नहीं बेच पा रहे हैं।
रिपोर्ट- शाहनवाज़ खान शानू, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भी सब्जी किसानों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। सब्जी खेतों से निकल रही है लेकिन बाजार तक नहीं पहुंच पा रही है। रोज सब्जी बेचकर घर का खर्च चलाने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
बांदा बदौसा के रहने वाले किसान पप्पू राम बागै नदी के किनारे रेत में सब्जियां लगाते है। हर साल इस सीजन में खीरा, ककरी, तरबूज और दूसरी सब्जियों से उनकी अच्छी कमाई हो जाया करती, लेकिन इस बार लॉकडाउन में वे परेशान हैं।
वे कहते हैं, "सब्जी खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा है। कोई खरीद भी रहा है तो कीमत बहुत कम मिल रही है। इन्हीं पैसे से हमारा चार-महीने का गुजारा चलाता था। इस बार तो लागत भी नहीं निकल पा रही है।"
महिला किसान सुशीला की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने इस नदी के किनारे इस बार लौकी, तोरई और करेला लगाया है। वे बताती हैं, "इस बार पैसे का नुकसान तो हो ही रहा है, मेहनत भी बेकार जा रही है। बाजार में एक घंटे दुकान लगाने का समय मिलता है। इतने कम से समय में जो बिका तो बिका नहीं तो नुकसान ही होता है। कम कीमत बेचना पड़ रहा है। सोचते हैं कि कुछ ही पैसे मिल जाये तो भी सही रहे।"
दरअसल लॉकडाउन घोषित होने के कारण स्थानीय बाजार में पुलिस प्रशासन की सख्ती के कारण बमुश्किल एक से दो घंटे के लिए दुकानें लगाने का मौका मिल रहा है। लाकडाउन के तीसरे चरण में जहां कुछ राहत मिली तो सब्ज़ी मंडियों में बाहरी व्यापारियों के न आने के कारण किसान फसल नहीं बेच पा रहे हैं।
रिपोर्ट- शाहनवाज़ खान शानू, कम्युनिटी जर्नलिस्ट