हम पढ़ना चाहते थे, लेकिन...

Shivani Gupta | Sep 25, 2019, 13:11 IST
पूरे भारत में 22 सितम्बर को डॉटर्स डे मनाया गया। इस बीच गाँव कनेक्शन की टीम ने झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की लड़कियों से बात की। उनसे उनके सपने के बारे में पूछा, बड़ी बात यह है कि लड़कियों का शिक्षा हासिल करने का सपना आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है...
#schools
"जब और लड़कियां स्कूल जाकर पढ़ती हैं, तब मैं घर संभालती हूं," सत्रह वर्षीय सुल्ताना शेख यह बताते-बताते भावुक हो जाती हैं। सुल्ताना मध्य प्रदेश में इंदौर से 58 किलोमीटर दूर देवास जिले के हिरली गाँव की रहने वाली हैं।

सुल्ताना की तरह ही 17 वर्षीय नसलीम खान ने भी सिर्फ 8वीं तक पढ़ाई की है। वह भी इसी गाँव की रहने वाली हैं। नसलीम कहती हैं, "मेरे लिए स्कूल पहुंचना एक बहुत बड़ा काम था। नाव के सहारे एक उफनती हुई नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता था। नाव भी सुरक्षित नहीं थी, इस नाव को ग्रामीणों ने प्लास्टिक के बड़े ड्रमों के सहारे बनाया हुआ था। मैं भी और लड़कियों की तरह डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन मेरे सपने यहीं खत्म हो गए।"

पूरे भारत में 22 सितम्बर को डॉटर्स डे मनाया जाता है। इस दौरान हमने झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की लड़कियों से बात की। उनसे उनके सपने के बारे में पूछा, जिनके लिए शिक्षा हासिल करना ही किसी लग्जरी से कम बात नहीं होती है।

Read Also in English: We wanted to study, but …

Watch the video here:


उच्च शिक्षा के लिए यातायात सुविधा नहीं

रिपोर्ट को लेकर जब इन राज्यों की लड़कियों से बात की गई तो इनमें से ज्यादातर का कहना था कि यातायात सुविधा न होने की वजह से उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाती हैं। पढ़ाई छोड़ने के पीछे वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम का न होना, बसों की कमी, जगह-जगह टूटे हुए पुल और उफनती नदियों को जिम्मेदार ठहराती हैं।

मध्य प्रदेश के देवास के हिरली गाँव में क्षिप्रा नदी पार करने के लिए कोई पुल ही नहीं है। यही वजह है कि इस गाँव की 50-60 लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। गाँव की नसलीम बताती हैं, "हमें ड्रम में बैठकर नदी पार करना पड़ता है। कभी-कभी तो यह बहुत डरावना हो जाता है, जब ड्रम नदी में पलट जाता है।"

वर्ष 2011 के सेंसस रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली केवल 48.49 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं। वहीं इनके मुकाबले शहरों में रहने वाली 69.46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं।

हिरली गाँव की सभी लड़कियों को 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। सुल्ताना कहती हैं, "अगर नदी के ऊपर पुल रहता, तो मैं कभी भी अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ती। यहीं नहीं मैं आज की सुल्ताना से बिल्कुल अलग होती।"

वर्ष 2011 के साक्षरता पर आई गणना के अनुसार जहां पुरुषों में साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत हैं, तो वहीं महिलाओं में यह मात्र 65.46 प्रतिशत है।

340527-egd
340527-egd


ज़्यादातर लड़कियों के पास साइकिलें नहीं

जब गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों से भी बात की, तब बातचीत के दौरान 15 वर्षीय मुस्कान कुमारी बताती हैं, "हमारा स्कूल यहां से चार किलोमीटर दूर है। हमें स्कूल जाने के लिए जंगल का रास्ता लेना पड़ता है।" वह आगे कहती हैं, "सुनने में आया है कि बच्चा चोर गिरोह हमारे गाँव में घूम रहा है और वह बच्चों की किडनी भी निकाल कर ले जाता है।" मुस्कान झारखंड के गुमला जिले की बम्हानी गाँव की रहने वाली हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के ज्यादातर प्रधानों का कहना है कि सरकार की योजना के मुताबिक उन्होंने गाँव की स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिलें दे दी हैं, लेकिन इंटरनल जर्नल एंड एडवांस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार केवल 31 प्रतिशत ग्रामीण लड़कियों को ही साइकिल मिली है।

बाराबंकी के खैरा वीरू गाँव की रहने वाली 18 वर्षीय सुधा देवी कहती हैं, "मेरे पास एक साइकिल भी नहीं है। मेरे माता-पिता बस का किराया नहीं दे सकते हैं। अब मैंने कॉलेज में दाखिला ले तो लिया है, लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं उतनी दूर कभी क्लास करने जा भी पाऊंगी की नहीं।"

रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 33 प्रतिशत लड़कियां को अपनी पढ़ाई माता-पिता के नकारात्मक सोच की वजह से छोड़नी पड़ती है, वहीं 36 प्रतिशत लड़कियां को यातायात की सुविधा न होने की अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देती हैं।

340528-map
340528-map


पांच से 29 साल की लड़कियों के बीच किया गया सर्वे

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस ने 2014 में सर्वे कराया था कि लड़कियां अपनी पढ़ाई बीच में क्यों छोड़ देती हैं। यह सर्वे 5 साल से 29 साल के लड़कियों के बीच किया गया था। सर्वे में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की मुख्य वजहें स्कूल का दूर होना, आर्थिक तौर पर घर वालों को सहायता करना या घरेलू कामकाज में हाथ बंटाना निकल कर सामने आया।

एक हज़ार लड़कियों के बीच हुए इस सर्वे में यह पता चला कि 42 लड़कियों ने अपनी पढ़ाई इसलिए छोड़ दी क्योंकि स्कूल उनके घर से काफी दूर था, वही शहरों में यह संख्या केवल 18 लड़कियों तक सीमित थी। सर्वे में घरेलू कामों को लेकर कुल 329 लड़कियों ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने की बात सामने आई, लेकिन लड़कों में यह संख्या केवल 59 थी।

आज के समय में भी माता-पिता अपने बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं भेजते हैं। ज्यादातर लड़कियां घर रुकती हैं और सिलाई बुनाई के काम को अपना लेती हैं।

340529-vlcsnap-2019-09-21-19h54m12s127
340529-vlcsnap-2019-09-21-19h54m12s127


'मैं 12वीं के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सकी'

बाराबंकी की रहने वाली पम्मी देवी कहती हैं, "मैं घर पर रहकर सिलाई बुनाई का काम करती हूं। मैं 12वीं के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। मेरे परिवार ने कहा कि स्कूल यहां से काफी दूर है, तो आगे कहीं दाखिला लेने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा स्कूल तक जाने का न तो कोई साधन और न ही सुविधा थी।" पम्मी ने गाँव कनेक्शन को आगे बताया कि उसके घर से जो सबसे नजदीकी कॉलेज है वह भी यहां से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।

भारत के सेंसस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की 50.6 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में यह बढ़कर 76.9 प्रतिशत पर पहुंच जाती है। वर्ष 2011 के सेंसस के अनुसार उत्तर प्रदेश में पुरुषों में साक्षरता दर 77.28 प्रतिशत है तो महिलाओं में यह घट कर 57.18 प्रतिशत पर आ जाती है।

उत्तर प्रदेश की पम्मी की तरह छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की रहने वाली लेखनी वर्मा को भी पढ़ लिखकर बेहतर इंसान बनने का सपना छोड़ना पड़ा। लेखनी बताती हैं, "मेरे घर से सबसे नजदीकी स्कूल 25 किलोमीटर दूर है। मैं आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन कॉलेज बहुत ही दूर है। इसलिए मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जो भी लड़कियां इस गाँव में रहती हैं उन्हें 25 किलोमीटर का रास्ता तय कर खैरागढ़ में जो नजदीकी कॉलेज है वहां जाना पड़ता है।"

340530-vlcsnap-2019-09-21-19h54m37s985
340530-vlcsnap-2019-09-21-19h54m37s985


लड़कियां छेड़छाड़ की होती हैं शिकार

बिहार में लड़कियों को सार्वजनिक क्षेत्र के वाहनों का उपयोग करने पर छेड़छाड़ सहना पड़ता है। मुजफ्फरपुर की मुसहरी की रहने वाली स्वर्णिम चौहान का कहना है, "अभी कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त बस से जा रही थी तो उसके साथ छेड़छाड़ किया गया था, लेकिन वह वहां कुछ भी नहीं कर सकी।"

बिहार की मुसहरी की स्वर्णिम की तरह नसलीम के गाँव के ही रहने वाले आलिफ खान भी छेड़छाड़ की घटनाओं से काफी चिंतित हैं। आलिफ की पांच बेटियां और एक बेटा है। वह बताते हैं कि मैंने अपनी बेटियों को इसलिए आठवीं के बाद नहीं पढ़ने दिया क्योंकि उनके गाँव से स्कूल काफी दूर बैरागढ़ में था। जब तक मेरी बेटियां स्कूल से नहीं आ जाती थी तब तक उनकी चिंता सताती रहती थी।

देवास जिले के कय्यूम खां कहते हैं, "हमारी बेटियों को शादी के बाद अनपढ़ होने का कंज कसा जाता है। इसलिए हमने तत्कालीन मंत्री दीपक जोशी से पुल के निर्माण के लिए आग्रह किया था। वह 15 सालों तक वादा करते रह गए पर कोई पुल नहीं बना। इस बार हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ हमारे समस्याओं को देखेंगे और समाधान करेंगे।"

'मैं सरकार से मांग करता हूं...'

बाराबंकी जिले के खैरा वीरू गाँव के संदीप सिंह कहते हैं, "देश का नागरिक होने के नाते मैं सरकार से मांग करता हूं कि उच्च शिक्षा के लिए हमारे गाँव में एक कॉलेज खोला जाए, जिससे यहां कि लड़कियों को पढ़ने के लिए दूर न जाना पड़े। इसके अलावा अगर कॉलेज यहां आ जाता हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में हमारा गाँव नहीं पिछड़ेगा। जिन लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी है उनको भी आगे की पढ़ाई के लिए मौका मिलेगा और उन्हें घर नहीं बैठना पड़ेगा।"

स्वर्णिम से बात करने के बाद यह बिल्कुल साफ हो गया कि इंटरव्यू के दौरान लड़कियां कैमरा की ओर क्यूं नहीं देख रही थीं। हम लड़कियों को शुरू से ही समझौता करना और झेलना सिखाया जाता है। हमें कभी वापस अपने अधिकारों के लिए लिए लड़ना नहीं सिखाया जाता है।

(रिपोर्टिंग सहयोग : मध्य प्रदेश से पुष्पेंद्र वैद्य, छत्तीसगढ़ से दिनेश साहू, झारखंड से लक्ष्मी देवी, उत्तर प्रदेश से वीरेंद्र सिंह और बिहार से अभय राज)

(अनुवाद: सचिन धर दुबे)

Tags:
  • schools
  • village girls
  • Girleducation
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.