बजट 2019: कृषि संकट को दूर करना हो सरकार की पहली प्राथमिकता
Devinder Sharma | Jul 04, 2019, 07:06 IST
नई सरकार के लिए जो समस्याएं सबसे पहले हल करनी जरूरी हैं, उसमें लगातार बढ़ती बेरोजगारी प्रमुख है। अर्थव्यवस्था के सभी उद्देशयों को मजबूत करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होगी, लेकिन कृषि में आए संकट को दूर करना प्राथमिकता में पहले स्थान पर होगी।
देविंदर शर्मा
नीति आयोग के अधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी नें 5वीं बैठक में हाई लेवल टास्क फोर्स गठित कर कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव की बात कही है। नई बनी सरकार पर आर्थिक विकास में आ रही गिरावट पर रोक लगाने और जल्द से जल्द बेरोजगारी से निपटने की बेहद गंभीर चुनौती है। मंत्रिमंडल गठित होने के बाद से ही उम्मीद की जा रही थी कि सरकार कुछ इस तरह के फैसले लेगी।
नई सरकार के लिए जो समस्याएं सबसे पहले हल करनी जरूरी हैं, उसमें लगातार बढ़ती बेरोजगारी प्रमुख है। अर्थव्यवस्था के सभी उद्देशयों को मजबूत करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होगी, लेकिन कृषि में आए संकट को दूर करना प्राथमिकता में पहले स्थान पर होगी। भारत की ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर फिर से भरोसा जताया है। यही नहीं, गरीबी से त्रस्त देश की जनता का भी वोट इस बार बीजेपी के पक्ष में गया है। सरकार भी इस क्षेत्र से आने वाली उम्मीदों को लेकर वाकिफ होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने यह जानते हुए कि आर्थिक विकास और गरीबी एक साथ नहीं चल सकते, कहा कि देश में अब दो वर्ग होंगे-एक गरीब और दूसरा वह जो उन गरीबों की सेवा करना चाहते हैं।
किसानों की आय में पिछले दो सालों से इजाफा शून्य पर ही बना हुआ है। नीति आयोग के अनुसार साल 2011-12 से 2015-16 तक किसानों की वास्तविक आय में लगभग आधा प्रतिशत ही इजाफा हुआ था। नई सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगनी करने के अपने पुराने वादे के दोहराया है। इकोनॉमिक्स सर्वे 2016 के अनुसार भारत के 17 राज्य में यानि आधे से ज्यादा भारत में एक किसान की कृषि से औसतन आय मात्र 20 हजार रूपये सालाना है। अगले तीन सालों में किसानों की आय दोगनी हो जाती है तो यह ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
ऐसे समय में जब देश का 43 प्रतिशत हिस्सा गंभीर सूखा झेल रहा है, और मानसून का प्रदर्शन भी उतना अच्छा नहीं है। उस समय एक निजी मौसम विज्ञान एजेंसी स्काईमेट ने कहा है कि इस बार उत्तर पूर्वी और मध्य भारत में बारिश की संभावना कम ही है। ऐसी स्थिति सूखे को और बढ़ावा देगी और निश्चित ही खेती किसानी से होने वाली आय में कमी आएगी। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए मानसून प्रोग्रेस पर गहरी नजर रखनी पड़ेगी। सरकार को वापस एक ऐसे प्लान के साथ वापस आना पड़ेगा जो होने वाले नुकसान को काफी कम कर सके।
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कृषि संकट से निश्चित रूप से आर्थिक विकास पर थोड़ी बहुत रोक लगेगी। नई सरकार के लिए इस समस्या को स्थगित करना बेहद मुश्किल होने वाला है। फरवरी में वित्त मंत्री की ओर से बजट पेश किया गया था, जिसमें हर किसान को 6000 हजार रूपये सालाना देने की बात कही गई थी। सरकार के इस फैसले को मैंने मूल्य नीति से आय नीति की ओर बढ़ने की संज्ञा दी थी। अपने चुनावी कैंपेन के दौरान प्रधानमंत्री ने जनता को भरोसा दिलाया कि प्रधानमंत्री किसान योजना को वह भारत के एक-एक किसान तक पहुंचाएंगे, इसके साथ ही, उन्होंने आने वाले समय में इसमे मिलने वाली राशि भी बढ़ाने की बात कही।
सरकार की तरफ से मिलने वाली सीधी आय को जारी रखते हुए छोटे और दीर्घ दोनों समय के लिए एक सतत पहल की आवश्यकता है, जिससे कृषि को संकट से बाहर निकाला जा सके। ये कुछ कदम हैं जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बजट में फोकस कर सकते हैं।
खेती करने में आसानी
कृषि सेक्टर इस समय कई समस्याओं से घिरा हुआ है, किसानों को अलग-अलग स्तर पर रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए कृषि का कार्य सुस्त है। यह ज्यादातर शासन स्तर पर प्रशासनिक कमी की वजहों से होती है। अगर उद्योगों को 7000 गुना व्यापार करने की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, तो मुझे कोई कारण नहीं समझ आता कि खेती-किसानी को इसी तरह प्रमोट क्यों नहीं किया जाता। राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स गठित की जाए जो इसकी हर स्तर पर देख-रेख कर सके। उन चरणों की पहचान होनी चाहिए जो खेती को किसान हितैषी बना सकें।
यह कमीशन किसानों के कृषि उपज की कीमत, एक निश्चित कृषि आय पैकेज और किसानों के बेहतरी के लिए अन्य जनकल्याणकारी कार्यों की सुविधा दिलाने का कार्य करे। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) को इस मौजूदा आयोग में शामिल कर देना चाहिए। साथ ही ये आयोग सुनिश्चित करे कि हर किसान परिवार को 18000 रुपए का मासिक पैकेज मिले। यह आय पैकेज टॉप-अप के रूप में आना चाहिए, किसी जिले में किसान की औसत आमदनी के अलावा। अगर सारे डाटा मौजूद हैं तो प्रति जिले के हिसाब से औसत आय देने में कोई बड़ी मुश्किल नहीं होगी।
सभी किसानों का एक बार पूरा का पूरा कर्ज माफ होना चाहिए। कुछ राज्य किसानों के 1.9 लाख करोड़ रुपए का कर्ज पहले ही माफ कर चुके हैं। उम्मीद है कि कुल कृषि लोन में 3.5 लाख करोड़ लोन इस श्रेणी में आते हैं, जिन्हें माफ करने की आवश्यकता भी है। हम जब तक किसानों को पुराने कर्जे से मुक्त नहीं कर देते, किसानों से ज्यादा आर्थिक विकास की उम्मीद नहीं की जा सकती। किसानों की इस मुश्किल घड़ी में देश को चाहिए कि वो किसान के साथ खड़ा हो। कृषि कर्जमाफी से राज्य सरकारों पर वित्तीय भार नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन इसके बजाय वह तरीका अपनाया जाए, जो कॉरपोरेट लोन खत्म करने के मामले में बैंक करते हैं। केंद्र को कृषि ऋण माफी के लिए बैंकों का पुनर्पूंजीकरण करना चाहिए, जैसा कॉरपोरेट एनपीए को लेकर केंद्र करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2011-12 और 2016-17 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश कुल जीडीपी का 0.3 से 0.4प्रतिशत था। आकड़ों के अनुसार कृषि में निजी क्षेत्र का निवेश भी काफी कम रहा है। यह देखते हुए कि लगभग 50 फीसदी आबादी सीधे या परोक्ष रूप से खेती में लगी हुई है, इस पर ध्यान देने का समय है। सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देकर कृषि को मजबूत करना सरकार का उद्देश्य होना चाहिए। जब तक कृषि को पूरा निवेश प्राप्त नहीं होता है, तब तक खेती को मुनाफा कमाने वाला क्षेत्र बनाने की उम्मीद करना व्यर्थ है।
मूल्य और मार्केटिंग में सुधार
बाजार में सुधार की तत्काल आवश्यकता है, जो एपीएमसी विनियमित बाजारों का नेटवर्क फैलाए बिना संभव नहीं है। भारत में जरुरत के मुताबिक हर 5 किलोमीटर पर एक मंडी होनी चाहिए, इस हिसाब से 42000 मंडियों की जरुरत है लेकिन देश में सिर्फ 7600 मंडिया हैं। इसे सुधारों के साथ लागू और स्थापित करना चाहिए। कृषि उपज मंडी समिति (APMC) काम करने वाले कार्टेल को तोड़ने में मदद करता है। इसके साथ ही एपीएमसी में सुधारों को पूरा करना चाहिए जो किसानों की खरीद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का समर्थन करती है।
(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं। उनका ट्विटर हैंडल है @Devinder_Sharma उनके सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
नीति आयोग के अधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी नें 5वीं बैठक में हाई लेवल टास्क फोर्स गठित कर कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव की बात कही है। नई बनी सरकार पर आर्थिक विकास में आ रही गिरावट पर रोक लगाने और जल्द से जल्द बेरोजगारी से निपटने की बेहद गंभीर चुनौती है। मंत्रिमंडल गठित होने के बाद से ही उम्मीद की जा रही थी कि सरकार कुछ इस तरह के फैसले लेगी।
नई सरकार के लिए जो समस्याएं सबसे पहले हल करनी जरूरी हैं, उसमें लगातार बढ़ती बेरोजगारी प्रमुख है। अर्थव्यवस्था के सभी उद्देशयों को मजबूत करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होगी, लेकिन कृषि में आए संकट को दूर करना प्राथमिकता में पहले स्थान पर होगी। भारत की ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर फिर से भरोसा जताया है। यही नहीं, गरीबी से त्रस्त देश की जनता का भी वोट इस बार बीजेपी के पक्ष में गया है। सरकार भी इस क्षेत्र से आने वाली उम्मीदों को लेकर वाकिफ होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने यह जानते हुए कि आर्थिक विकास और गरीबी एक साथ नहीं चल सकते, कहा कि देश में अब दो वर्ग होंगे-एक गरीब और दूसरा वह जो उन गरीबों की सेवा करना चाहते हैं।
किसानों की आय में पिछले दो सालों से इजाफा शून्य पर ही बना हुआ है। नीति आयोग के अनुसार साल 2011-12 से 2015-16 तक किसानों की वास्तविक आय में लगभग आधा प्रतिशत ही इजाफा हुआ था। नई सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगनी करने के अपने पुराने वादे के दोहराया है। इकोनॉमिक्स सर्वे 2016 के अनुसार भारत के 17 राज्य में यानि आधे से ज्यादा भारत में एक किसान की कृषि से औसतन आय मात्र 20 हजार रूपये सालाना है। अगले तीन सालों में किसानों की आय दोगनी हो जाती है तो यह ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
ऐसे समय में जब देश का 43 प्रतिशत हिस्सा गंभीर सूखा झेल रहा है, और मानसून का प्रदर्शन भी उतना अच्छा नहीं है। उस समय एक निजी मौसम विज्ञान एजेंसी स्काईमेट ने कहा है कि इस बार उत्तर पूर्वी और मध्य भारत में बारिश की संभावना कम ही है। ऐसी स्थिति सूखे को और बढ़ावा देगी और निश्चित ही खेती किसानी से होने वाली आय में कमी आएगी। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए मानसून प्रोग्रेस पर गहरी नजर रखनी पड़ेगी। सरकार को वापस एक ऐसे प्लान के साथ वापस आना पड़ेगा जो होने वाले नुकसान को काफी कम कर सके।
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सरकार की तरफ से मिलने वाली सीधी आय को जारी रखते हुए छोटे और दीर्घ दोनों समय के लिए एक सतत पहल की आवश्यकता है, जिससे कृषि को संकट से बाहर निकाला जा सके। ये कुछ कदम हैं जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बजट में फोकस कर सकते हैं।
खेती करने में आसानी
कृषि सेक्टर इस समय कई समस्याओं से घिरा हुआ है, किसानों को अलग-अलग स्तर पर रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए कृषि का कार्य सुस्त है। यह ज्यादातर शासन स्तर पर प्रशासनिक कमी की वजहों से होती है। अगर उद्योगों को 7000 गुना व्यापार करने की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, तो मुझे कोई कारण नहीं समझ आता कि खेती-किसानी को इसी तरह प्रमोट क्यों नहीं किया जाता। राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स गठित की जाए जो इसकी हर स्तर पर देख-रेख कर सके। उन चरणों की पहचान होनी चाहिए जो खेती को किसान हितैषी बना सकें।
किसानों की आय और कल्याण के लिए एक कमीशन का गठन हो
किसानों का कर्ज माफ हो
सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश
मूल्य और मार्केटिंग में सुधार
बाजार में सुधार की तत्काल आवश्यकता है, जो एपीएमसी विनियमित बाजारों का नेटवर्क फैलाए बिना संभव नहीं है। भारत में जरुरत के मुताबिक हर 5 किलोमीटर पर एक मंडी होनी चाहिए, इस हिसाब से 42000 मंडियों की जरुरत है लेकिन देश में सिर्फ 7600 मंडिया हैं। इसे सुधारों के साथ लागू और स्थापित करना चाहिए। कृषि उपज मंडी समिति (APMC) काम करने वाले कार्टेल को तोड़ने में मदद करता है। इसके साथ ही एपीएमसी में सुधारों को पूरा करना चाहिए जो किसानों की खरीद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का समर्थन करती है।
(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं। उनका ट्विटर हैंडल है @Devinder_Sharma उनके सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)