नोटबन्दी ने ग्रामीण मजदूरों की समस्या बढ़ाई

Dr SB MisraDr SB Misra   20 Dec 2016 8:36 PM GMT

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नोटबन्दी ने ग्रामीण मजदूरों की समस्या बढ़ाईफोटो: अभिषेक वर्मा

बैंकों से खाताधारकों को पैसा मिलना आरम्भ हो गया है लेकिन गाँवों में खेती का काम जाड़े के दिनों में कम होता है इसलिए मजदूर प्रतिदिन शहर आकर काम तलाशते थे। अब शहर में भी भवन निर्माण जैसे काम धीमे पड़ गए हैं इसलिए काम नहीं मिलता। गाँवों में प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना में गाँव के लोग सम्पर्क मार्ग, तालाब और सड़कें बनाने में मनरेगा के अन्तर्गत जीविका चलाने का कुछ पैसा मिल जाता था। अब वह भी बन्द है और जहां चल भी रही है, जेसीबी से यह काम कराए जाते हैं। जाड़े के दिन मुश्किल से गुजरेंगे।

मनरेगा के अन्तर्गत चलाए जाने वाले ग्रामोदय कार्यक्रमों में अर्थवर्क यानी मिट्टी का काम गाँव के मजदूरों द्वारा होना था लेकिन प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अन्तर्गत दूर दराज़ के गाँवों की सड़कों का रखरखाव ठेकेदारों को दे दिया गया। वे भारी भरकम मशीनों की मदद से सड़कें की मरम्मत करते हैं। मरम्मत के इन कामों में अर्थवर्क में भी गाँव के मजदूरों को मौका नहीं मिलता। इस तरह ग्रामोदय योजना का पैसा गाँव में नहीं आएगा बल्कि शहरों कें बड़े-बड़े ठेकेदारों के पास जाएगा।

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना का संचालन ग्राम प्रधानों के माध्यम से होता है और पैसा गाँव में ही रहता है, चाहे मजदूर के पास या प्रधान के पास। इसके बावजूद गाँव के अनेक मजदूरों को मजदूरी करने रोज शहर जाना पड़ता है क्योंकि मनरेगा कार्यक्रम केवल 100 दिन की गारंटी देता है। नोटबन्दी के बाद फिलहाल शहरों में भी काम की कमी आ गई है।

गाँव के गरीब किसान और मजदूर का जीवन प्रधान पर निर्भर हो गया है। प्रधान ही उसका मकान पक्का बनवाने की पात्रता निर्धारित करता है चाहे महात्मा गांधी आवास हो या फिर अम्बेडकर आवास अथवा अब लोहिया आवास। वर्तमान सरकार ने इस काम के लिए प्रति व्यक्ति डेढ़ लाख रुपया निर्धारित किया है परन्तु उसमें से गरीब को कितना रुपया मिलेगा इसके विषय में स्वर्गीय राजीव गांधी ने ऐतिहासिक बयान दिया था कि एक रुपया में से गरीबों तक केवल 15 पैसा पहुंचता है। अब हालात कुछ बेहतर है।

ग्रामोदय के नाम पर अनेक दूसरी योजनाएं भी चलाई गई थीं जैसे सर्व शिक्षा अभियान, गाँवों का विद्युतीकरण, चिकित्सा व स्वच्छ पेय जल की योजनाएं। सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत नए भवन बनवाने में प्रधानों की काफी रुचि रही है, मिड्डे मील के राशन और कन्वर्जन कास्ट में भी रहती है। पारदर्शिता लाने के लिए ग्रामोदय के सभी कामों में बिचौलिए हटाने होंगे। विकास के लिए ठेकेदार की ही तरह प्रधान भी बिचौलिए का काम करता जिससे काम भी सीमित रहता है और दाम भी पूरे नहीं मिलते। गाँव के गरीबों को 100 दिन के बजाय 365 दिन काम चाहिए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाँव के गरीबों को संसाधन और ऊर्जा चाहिए।

पूरे देश की ही तरह बड़े धीरज से गाँववालों ने भी नोटबन्दी की असुविधा और कष्ट झेला है और झेल रहे हैं। अब गाँवों के मजदूरों के लिए शहरों की तरफ पलायन का विकल्प सोचने का समय है। गाँवों में स्थानीय स्तर पर कुटीर उद्योग लगाकर रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। उससे अनेक समस्याओं का समाधान हो सकेगा।

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