नागरिकता संशोधन विधेयक ने भानुमती का पिटारा खोल दिया

तथाकथित सेकुलरवादियों का तर्क है कि सभी शरणार्थियों के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए, ऐसा करना व्यावहारिक नहीं होगा। हिन्दू शरणार्थियों के लिए भारत के अलावा दुनिया में कहीं जगह नहीं जबकि मुस्लिम शरणार्थियों के लिए करीब 30 देश उपलब्ध हैं

Dr SB MisraDr SB Misra   9 Dec 2019 6:44 AM GMT

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नागरिकता संशोधन विधेयक ने भानुमती का पिटारा खोल दिया

सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद में सोमवार (नौ दिसम्बर) को पेश कर कर दिया और अपने सांसदों को व्हिप भी जारी कर दिया। इसे कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी दे दी थी। बिल के औचित्य पर बहस तो संसद में होगी लेकिन भारी कोहराम अभी से मचा है। देश में रह रहे सभी लोग वैधानिक रूप से नागरिक नहीं हैं, इसमें शरणार्थी और घुसपैठिए भी शामिल हैं। मोदी सरकार भारतीय नागरिकों के लिए एक रजिस्टर बनाने का इरादा रखती है, और उसी की एक कड़ी है नागरिकों, शरणार्थियों और घुसपैठियों को परिभाषित करना और घुसपैठियों को बाहर करने का प्रयास करना। इसमें कुछ नया नहीं है, सिवाय इसके कि प्रस्तावित संशोधन में प्रताड़ित करके भगाए गए हिन्दू शरणार्थियों पर सहानुभूति का रवैया रहेगा।

भारत विभाजन के बाद दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर प्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ था जिसे ''नेहरू लियाकत पैक्ट'' के नाम से जाना जाता है। सरकारों ने इस पैक्ट को पश्चिमी पाकिस्तान में तो मुस्तैदी से लागू किया लेकिन पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बंगलादेश कहते हैं, वहां लचर रहा। यह मुख्य कारण है कि पूर्वी और पूर्वोत्तरी प्रान्तों में रोहिंग्या सहित अन्य घुसपैठियों की समस्या अधिक जटिल है। नेहरू-लियाकत पैक्ट के लागू करने में भेदभाव के कारण ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था।

डॉ. अम्बेडकर ने पाकिस्तान में रह गए अनुसूचित हिन्दुओं का आह्वान किया था कि-जहां हो जैसी हालत में हो भारत आ जाओ। पश्चिमी पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी वहां की 14 प्रतिशत और पूर्वी पाकिस्तान में 30 प्रतिशत थी, अब नगण्य बची है। फिर भी भारत की सरकारों ने पाकिस्तानी हिन्दुओं की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया, और मुस्लिम अल्पसंख्यकों का ध्यान रखा और उनकी आबादी बढ़ती गई। वर्तमान सरकार वहां पर त्रस्त हुए और भारत भाग कर आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता जैसे अधिकार देना चाहती है। कुछ लोग सरकार की मंशा पर संदेह कर रहे हैं।

तथाकथित सेकुलरवादियों का तर्क है कि सभी शरणार्थियों के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए, ऐसा करना व्यावहारिक नहीं होगा। हिन्दू शरणार्थियों के लिए भारत के अलावा दुनिया में कहीं जगह नहीं जबकि मुस्लिम शरणार्थियों के लिए करीब 30 देश उपलब्ध हैं। दुनिया के सभी देश शरणार्थियों को गुण-दोष के आधार पर ही स्वीकार करते हैं। सरकार पर सन्देह इसलिए भी किया जा रहा है कि धारा 370 और राम मन्दिर पर आगे बढ़ने के बाद मोदी सरकार अब समान नागरिक संहिता लागू करेगी। उसके बाद देश को हिन्दू राष्ट्र बना देगी। सोचने की बात है सेक्युलर भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तो क्या इस्लामिक देशों में होगी?

विपक्ष की शंकाएं उतनी ही निराधार हैं जितनी धारा-370 को लेकर थीं। भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश से जो त्रस्त होकर आए हैं, उनकी भी रगों में दस हजार साल पुरानी भारतीय संस्कृति मौजूद है। भारत सेक्युलर इसलिए है कि वह हिन्दू बहुल देश है। यह देश आगे भी सेक्युलर ही रहेगा। नागरिकता संशोधन विधेयक को शंका की नजरों से देखने की आवश्यका नहीं।

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