चुनावों में हमेशा से ही चिन्हों का कनेक्शन रहा है, आगे भी रहेगा
Dr SB Misra 30 Dec 2016 9:45 PM GMT
समाजवादी पार्टी टूटने के कगार पर है और उसे एक नाम और एक चुनाव चिन्ह चाहिए होगा। इंदिरा गांधी के समय जब कांग्रेस पार्टी टूटी तो उसके दो नाम बने थे कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (ओ)। आरम्भ में कांग्रेस ने अपना चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी और बाद में गाय और बछड़ा बनाकर अपने को किसानों का मसीहा साबित करने की कोशिश की थी। अब उसका चिन्ह है हाथ जिसे कुछ लोग कटाक्ष में लप्पड़ कहते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपना जनसंघ के दिनों वाला दीप बुझाकर मशाल चुना था और अब कमल का फूल खिलाया है। समाजवादियों ने भी समय-समय पर अपने चुनाव चिन्ह झोपड़ी, बरगद का पेड़, हलधर किसान और अब साइकिल बनाया है। चुनाव आयोग की सूची से 250 पार्टियों के नाम और निशान मिटने वाले हैं और जिन्होंने चुनाव चिन्ह बदला है उनके पुराने चिन्ह सीज़ हो गए हैं।
पार्टियां अपने नामकरण और चुनाव चिन्हों के चयन में काफी माथा-पच्ची करती हैं। पार्टी के नाम से लगना चाहिए कि वह किस क्षेत्र या वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है और चुनाव चिन्ह उसके विचारों का प्रतीक होना चाहिए। यहां की दो तिहाई आबादी गाँवों में रहती है इसलिए हमारे नेताओं ने गाँव से जुड़ी वस्तुओं व प्रतीकों को अपना चुनाव चिन्ह बनाया है। विदेशों में चुनाव चिन्ह को लेकर इतना दिमाग नहीं खपाते जैसे अमेरिका की डिमोक्रेटिक पार्टी का चुनाव चिन्ह है गधा और रिपब्लिकन पार्टी का चील। भारत में अशिक्षा और गरीबी के बावजूद प्रजातंत्र के काम करने में चुनाव चिन्हों का बड़ा योगदान रहा है लेकिन अब चुनाव चिन्हों का कनेक्शन पुराना हो चुका, अब गाँववालों को भी इलेक्ट्रॉनिक कनेक्शन स्थापित करना है।
कभी भारत का अंग रहे पाकिस्तान और बांगलादेश में प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत नहीं है फिर भी बांगलादेश की पार्टियों के चुनाव चिन्ह भारत की ही तरह ग्रामीण सम्बन्धों को दर्शाते हैं। बंगलादेश नेशनल पार्टी का चुनाव चिन्ह है धान की बाली, बांगलादेश आवामी लीग का नाव, इस्लामी जातीय फ्रंट का हल, जमात-ए-इस्लामी का तराजू, जातीय समाजतांत्रिक दल का मशाल, बंगलादेश इस्लामी फ्रंट का मोमबत्ती। पाकिस्तान की पार्टियों के चुनाव चिन्ह भारत और बांग्लादेश से थोड़ा भिन्न हैं। वहां पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को तीर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग को चीता, जमात-ए-इस्लामी को तराजू, आवामी नेशनल पार्टी को लाल्टेन, एम क्यू एम को पतंग, पाकिस्तान तहरीके इंसाफ को क्रिकेट का बल्ला, आवामी मुस्लिम लीग पाकिस्तान को कलम और दवात, बलूचिस्तान नेशनल पार्टी को ऊंट, जम्हूरी वतन पार्टी को पहिया और तहरीके तहफ्फुज पाकिस्तान ने मिसाइल का चुनाव चिन्ह लिया है। इन देशों की पार्टियां अक्सर अपने नाम में पहचान के लिए इस्लामिक अथवा मुस्लिम अवश्य जोड़ती हैं।
चुनाव के प्रारम्भिक दिनों में भारत में बैलट पेपर पर चुनाव चिन्ह नहीं छपते थे बल्कि बैलट बॉक्स पर चुनाव चिन्ह छपे रहते थे। आप जिस चिन्ह वाले बक्से में चाहें अपना मतपत्र डाल सकते थे। गाँव के किसान और मजदूर कई बार अपने वोट अपनी पसन्द के बक्से के ऊपर ही डाल आते थे और किसी होशियार वोटर की बारी आई और वह अन्दर जाकर बक्सों पर पड़े सारे बैलट पेपर अपनी पसन्द के बक्से के अन्दर डाल आता था। सभी मतपत्र एक जैसे होते थे न उन पर पार्टी का नाम और न कैन्डीडेट का। चुनाव चिन्ह वाले बक्से में मौजूद मतपत्र ही एक मात्र आधार होते थे हार जीत का। वोटों की गिनती के समय इधर का उधर करना आसान था जिसका लाभ शासक दल को मिलता था।
देश में चुनाव प्रणाली में बहुत सुधार हुए हैं। मतपत्र पर कैन्डीडेट्स के नाम और उनके चिन्ह छपे रहते हैं और उसी पर मुहर लगानी होती है या फिर उसी के सामने की बटन दबानी होती है लेकिन अभी के लिए मतपेटियों को, मतगणना केन्द्र तक ले जाया जाता है जहां उनकी सुरक्षा करनी पड़ती है जब तक भी मतगणना ना हो जाए। हम आशा कर सकते हैं कि चुनाव चिन्हों का वोट कनेक्शन जो पुराना हो चुका है उसके बदले चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक कनेक्शन स्थापित होगा।
More Stories