कश्मीर, जम्मू और लद‍्दाख तीन अलग प्रांत बनें

Dr SB MisraDr SB Misra   28 April 2017 5:14 PM GMT

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कश्मीर, जम्मू और लद‍्दाख तीन अलग प्रांत बनेंपत्थरबाज पाकिस्तानी आतंकवादियों को कवर देते हैं।

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भेंट करने दिल्ली आई थीं और यह कह कर चली गईं कि हुरियत से भी बात होनी चाहिए। बातचीत आजादी के बाद से लगातार चल रही है उससे कुछ नहीं होगा। अब पत्थरबाजों में भेद करना वैसा ही है जैसे अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी। पूर्वोत्तर भी अशान्त था लेकिन छोटे-छोटे राज्य बनाकर कुछ हद तक काबू पाया गया है। कश्मीरी आतंकवादियों के हौसले तब बढ़े जब महबूबा मुफ्ती की बहन रुबेया मुफ्ती को छुड़ाने के लिए 1989 में पांच खुंखार अतंकवादी छोड़े गए।

कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने जीवन की आहुति दी थी। फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने उन्हें जेल में डाला था और अब फारूख अब्दुल्ला कहते हैं पत्थर फेंकने वाले वतन के लिए ऐसा करते हैं। जवाहर लाल नेहरू ने धारा 370 लागू कराया और कश्मीर मामलों को प्रधानमंत्री के सीधे नियंत्रण में रखा और राष्ट्रसंघ में कश्मीर में प्लेबिसाइट यानी जनमत संग्रह का वादा कर आए। इतने साल बाद हमें अपेक्षा है डॉक्टर मुखर्जी का बलिदान याद करके धारा 370 को दफना दिया जाएगा। जम्मू कश्मीर के हालात अस्सी के दशक में आज से भी खराब थे जब कांग्रेस ने जगमोहन को वहां का गवर्नर बनाया था। सही फैसला था और जगमोहन ने हालात पर काबू पा लिया था। लेकिन तब तक वीपी सिंह की जनता दल की सरकार बनी और पहली बार मुस्लिम गृहमंत्री हुए महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद।

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वहां की आबादी का सन्तुलन ठीक करना होगा जिसके लिए जितनी जल्दी सम्भव हो धारा 370 को समाप्त करके वहां पर दिल्ली का सीधा नियंत्रण होना चाहिए। मोदी सरकार में भारत के इस भू भाग को बचाने की इच्छाशक्ति तो है क्योंकि जम्मू कश्मीर को प्रधानमंत्री कार्यालय से गृह मंत्रालय में लाकर एक कदम उठाया है।

उनकी बेटी रुबेया सईद का जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रन्ट के आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया और मांग रखी पांच आतंकवादी छोड़ने की, वे थे शेख अब्दुल हमीद, गुलाम नबी बट, नूर मुहम्मद, मुहम्मद अल्ताफ और मुश्ताक अहमद जर्गर। तमाम सौदेबाजी के बाद वीपी सिंह सरकार ने इन सभी को छोड़ दिया। मुश्ताक अहमद जर्गर ने विमान अपहरण में अहम भूमिका निभाई थी और उसकी क्रूरता को मैंने नीलेश की लिखी पुस्तक में पढ़ा था। बाद में अटलजी की सरकार ने उसे छोड़ा था। आतंकवादियों का छोड़ा जाना निश्चित रूप से वीपी सिंह और अटल जी की सरकारों पर लगा हुआ धब्बा है। उनकी जो भी मजबूरियां रही हों आज भी उन घटनाओं को याद करके पीड़ा होती है। कश्मीर के लोगों ने अटल जी को पसंद किया था जब उन्होंने कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का नारा दिया था। हुरियत काॅन्फ्रेंस ने इनमें से किस बात को मान लिया है जो महबूबा मुफ्ती उनसे बातचीत की वकालत कर रही हैं।

महबूबा मुफ्ती जिन पत्थरबाजों के साथ नरमी और बातचीत की हिमायत कर रहीं हैं वे पाकिस्तानी आतंकवादियों को कवर देते हैं और भारतीय सिपाहियों की जिन्दगी जोखिम में डालते हैं। अटल जी ने जहां छोड़ा था वहां से शुरू नहीं कर सकते क्योंकि तब पत्थरबाजी नहीं हो रही थी। सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं मुफ्ती सरकार को बर्खास्त करके राज्यपाल शासन लगाया जाए, पूर्व गृहमंत्री चिदम्बरम ने कहा कश्मीर के हालात हमारे हाथ से निकल चुके हैं और अब

जम्मू कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने ईमानदारी से स्वीकार किया है कि हमारी सरकार जम्मू कश्मीर के हालात सुधारने में नाकाम रही है। कश्मीर के तमाम निवासी पाकिस्तान के बहकावे में आकर अपने को भारतीय ही नहीं मानते। वे अपने को जो भी मानें धरती तो भारत की है इसलिए अलग प्रान्त बनाकर पूरे समय उसका प्रशासन श्रीनगर से चलाना आसान रहेगा। दूसरी तरफ जम्मू क्षेत्र के निवासी पत्थरबाज नहीं हैं इसलिए वहां का विकास न रुके इसलिए अलग प्रान्त सहायक होगा। कश्मीरी पंडित देश के अलग-अलग भागों में कठिनाइयों में रह रहे हैं उन्हें जम्मू कश्मीर का मूलनिवासी होने के नाते वापस बुलाना चाहिए लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। बकरवार जो एक जमाने से वहां रह रहे हैं उन्हें वहां का निवासी मानना चाहिए। ये भेड़ चराने वाले बकरवार ही थे जिन्होंने करगिल की घुसपैठ को सबसे पहले देखा और बताया था।

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वहां की आबादी का सन्तुलन ठीक करना होगा जिसके लिए जितनी जल्दी सम्भव हो धारा 370 को समाप्त करके वहां पर दिल्ली का सीधा नियंत्रण होना चाहिए। मोदी सरकार में भारत के इस भू भाग को बचाने की इच्छाशक्ति तो है क्योंकि जम्मू कश्मीर को प्रधानमंत्री कार्यालय से गृह मंत्रालय में लाकर एक कदम उठाया है लेकिन यदि हम वहां सभी भारतीयों को स्वतंत्र रूप से बसने की इजाज़त नहीं दे सकते और भारत की धरती पर पाकिस्तानी मानसिकता को बर्दाश्त करते रहना चाहते हैं तो साल दर साल अपने सैनिकों को शहीद कराने का कोई मतलब नहीं है।

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