इतिहास को पीटने की नहीं, उससे सीखने की जरूरत है

Dr SB Misra | Apr 13, 2018, 15:25 IST
इतिहास
इतिहास तो इतिहास है उसे न तो बदला जा सकता और न उस समय के गुनहगारों को दंडित किया जा सकता है । मुहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति अविश्वास के कांटे बो दिए जब सभी मुसलमानों के लिए अलग जमीन मांगी और हासिल कर ली । अब पिछले गुनाहों के लिए गुनहगारों की सन्तानों को दंडित या वंचित नहीं किया जाना चाहिए जैसे आरक्षण के मामले में सवर्णों की सन्तानों के साथ हो रहा है । अब यदि कोई वर्ग इतिहास के गुनहगारों को अपना हीरो मानेगा जैसे जिन्ना मानते थे या दूसरा वर्ग अन्यायी की सन्तानों से बदला लेने की कोशिश करेगा तो जन्म जन्मान्तर तक सामाजिक सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाएगा ।

यदि आज की तारीख में भारत की जमीन पर राणा सांगा और बाबर के बीच युद्ध हो रहा होता तो सभी भारतीय चाहे हिन्दू या मुसलमान राणा सांगा की सेना में होते औ बाबर पर प्रहार करते जैसे आज भारतीय मुस्लिम सैनिक पाकिस्तानी सेना पर प्रहार करते हैं। आज पाकिस्तान सहित दुनिया के मुस्लिम देशों में उथल पुथल है, मुसलमानों को मुसलमान मार रहे है। भारत में ऐसा नही हैं । यह भारत करी सनातन संस्कृति का योगदान है ।

विध्वंसक मानसिकता वाले ओसामा बिन लादेन,बगदादी, अजहर मसूद, मुल्ला उमर के कारण अनेक देशों में मुसलमान का कत्ले आम हो रहा हैं । ऐसी ही मानसिकता तो नादिरशाह, चंगेज खां, मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गौरी, बाबर और औरंगजेब की थी । यदि इन्होंने मूर्तियां और मन्दिर तोड़े, उनकी जगह मस्जिदें और दरगाह बनवाए तो यह इबादत नहीं थी उनका अहंकार था । इसके लिए इतिहास को पीटने से कोई लाभ नहीं होगा । यह इसलिए सम्भव हुआ था कि तत्कालीन भारत में हिन्दूं कमजोर थे और उनके बीच में अम्मी और जयचन्द जैसे लोग मौजूद थे । मुस्लिम समाज आक्रमणकारियों के प्रति जिन्ना का नजरिया त्यागकर वही सोच अपनाए जैसे जर्मनी और इटली के आम लोग हिटलर और मसोलिनी के प्रति रखते हैं । ।

नेहरूवियन इहिासकारों ने कभी पता नहीं चलेने दिया कि भारत के बटवारा के लिए जिम्मेदार कौन था । प्रत्येक भारतीय को यथार्थ इतिहास चाहे जितना कड़वा हो वास्तविक रूप में पाठ्य पुस्तकों में शामिल करके बताना चाहिए और इतिहास की गलतियों से सीख लेनी चाहिए। अब यह नहीं होना चाहिए कि मुस्लिम भारतीयों के हीरो मुहम्मद गौरी हों और हिन्दू भारतीयों के हीरो पृथ्वीराज चैहान या हिन्दुओं के शिवा जी और मुसलमानों के औरंगजेब । यही दलील थी जिन्ना की। शिवा जी और औरंगजेब के बीच जो हुआ था वह अखाड़े की कुश्ती नहीं थी, न वह क्रिकेट मैच था कि हम बेहतर खिलाड़ीं को ''बक अप" कहें।

हमलावरों ने मन्दिर और मूर्तियां तोड़ीं यह उनकी मानसिकता थी। बुतपरस्ती यानी मूर्तिपूजा बर्दाश्त नहीं करनी है। यदि इतिहासकारों के अनुसार जामा मस्जिद, कुतुब मीनार, ताजमहल जैसे वास्तुकला के उदाहरण हिन्दू, जैन और बौद्ध मन्दिरों को तोड़कर बने हैं तो भी इतिहास बदलने और इन्हें तोडकर फिर से मन्दिर बनाने का प्रयास नहीं होना चाहिए । इतिहास को दुरुस्त करने और अयोध्या को दोहराने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए अन्यथा हम आगे बढ़ नहीं पाएंगे ।

यदि हम मस्जिदों को तोड़ मन्दिरों का निर्माण आरम्भ करेंगे तो हममें और विध्वंसक मानसिकता वालों में अन्तर क्या बचेगा । जरूरत है सनातन मूल्यों को भावी पीढ़ी में प्रतिस्थापित किया जाय । यदि ऐसा नहीं हुआ तो जिन्ना पैदा होते रहेंगे और भारत बटता रहेगा । हमें ध्यान रखना होगा कि देश का बटवारा जिन्ना ने मांगा था लेकिन गांधी ने ने कहा था बटवारा मेरी छाती पर होगा । इसी से स्पष्ट है विध्वंसक और रचनात्मक सोच का अन्तर क्या है । संघ विचारों के लोग भी लम्बे समय तक अखंड भारत की बात करते रहे ।

अब मुस्लिम समाज अपने को बदलने का प्रयास कर रहा है । मदरसों की शिक्षा आधुनिक हो रही है, महिलाएं तीन तलाक और हलाला का विरोध कर रही हैं, बहु विवाह अमान्य हो रहा है इसलिए सम्भव है कि मुस्लिम समाज भाररत के सनातन मूल्यों को अंगीकार कर ले । हमें भारतीय मुसलमानों में बदलाव की शुरुआत का स्वागत करना चाहिए और इतिहास को पीटना बन्द करना चाहिए । मुसलमानों से अपेक्षा है कि वे हिन्दुओं को काफ़िर न मानें । हिन्दुओं से अपेक्षा है कि बात बात में मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने की बात न करें, उन्हें सनातन मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करें ।

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