नाकाम सरकारी नीतियों का नतीजा है बीमार, कुपोषित जनता

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नाकाम सरकारी नीतियों का नतीजा है बीमार, कुपोषित जनताबच्चों को मिड-डे मील के जरिए पोषक खाद्यान्नों के मिक्सचर वाला पैकेट बांटा जा सकता है

प्रकृति ने भारत को विविधतापूर्ण कृषि-जलवायु का वरदान दिया है, जिसकी बदौलत देश में ढेरों स्वदेशी पोषक अनाज पैदा होते हैं। लेकिन इसके बावजूद भारतीय जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बुरी तरह से कुपोषित है। इसे देश की पोषण सुरक्षा नीति की विफलता के तौर पर देखा जाना चाहिए। एक ओर जहां भारत की सेहत लड़खड़ा रही है वहीं इससे बेखबर होकर नवीन भारत निर्माण का सपना देखा जा रहा है। क्या बीमार लोगों के कमजोर कंधों पर सशक्त भारत का निर्माण हो सकता है।

अब समय आ गया है, सरकार को उठना होगा, जागना होगा और जब तक कुपोषण के खिलाफ हमें जीत हासिल नहीं हो जाती तब तक काम करते रहना होगा । गरीबी और कुपोषण से होने वाली मौतों से बड़ी कोई और सामाजिक त्रासदी नहीं हो सकती।

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इसलिए जरूरी है कि राज्य स्तर पर खाद्य सुदृढ़ीकरण इकाइयों का गठन हो। ये इकाइयां छोटा बाजारा, जौ, किनुआ, हाई प्रोटीन वाले मक्का जैसे पोषक अनाजों और मूंगफली, सोयाबीन जैसी फलियों के मिश्रण वाले पाेषक खाद्य पदार्थ बनाने का काम करेंगी। ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के मुताबिक अतिआधुनिक तकनीक की मदद से किया जाए। इस पोषक मिश्रण के 50 से 150 ग्राम के पैकेटों को गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों, भूमिहीन मजदूरों और गरीबों में अलग-अलग आयु वर्ग के अनुसार बांटा जा सकता है। इसे बांटने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। मरीजों को यह हेल्थ सेंटरों और बच्चों को मिड-डे मील के जरिए दिया जाए।

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सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, मैसूर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद जैसे केंद्रीय संस्थानों के परामर्श पर काम करके देश के लाखों कुपोषित लोगों की सेहत बेहतर बनाई जा सकती है- जैसा कि अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं। अच्छे स्वास्थ्य पर समाज के इस भूले-बिसरे वर्ग का भी बराबर का हक है, सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इसी वर्ग के लोग भारत का असली चेहरा कहलाते हैं।

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(डॉ. एम. एस. बसु आईसीएआर गुजरात के निदेशक रह चुके हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

   

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