जानें इन तीन फसलों के बारे में जिनसे कुपोषण दूर हो सकता है

Astha Singh | Jan 11, 2018, 13:11 IST
कुपोषण
आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़े भाग को भरपेट खाना नहीं मिलता है, यह तस्वीर वैश्विक भूख सूचकांक द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। ऐसे में किसान कम भूमि में कुछ ऐसी फसलें उगाकर भूख और कुपोषण से लड़ सकता है, जिन्हें उगाने में बिल्कुल कम लागत लगती है। वैश्विक भूख सूचकांक पर जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 119 विकासशील देशों में भुखमरी के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले बीते साल भारत 97वें स्थान पर था। यानी इस मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी है।

क्या कहते हैं आंकड़े

अगर गाँवों की बात करें तो शायद हालात और बदतर है। ग्रामीण भारत में 23 करोड़ लोग अल्पपोषित है, 50 फीसदी बच्चों की मत्यु का कारण कुपोषण है। यही नहीं दुनिया की 27 प्रतिशत कुपोषित जनसंख्या केवल भारत में रहती है। एक आंकड़े के मुताबिक, आज भारत में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। दुनियाभर में सिर्फ तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान ही ऐसे हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। जाहिर है, स्वास्थ्य और पोषण को लेकर सरकार की सारी योजनाएं इस मामले में असफल साबित हो रही हैं।

साभार: इंटरनेट

भारत में रोजाना 24 हजार लोग कुपोषण के दायरे में

उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल समेत भारत के आठ राज्यों में सबसे अधिक गरीबी है। इन राज्यों में गरीबों की संख्या 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों से भी अधिक है। खाद्य एवं कृषि संगठन के आंकलन के अनुसार, रोजाना 24 हजार लोग भुखमरी और कुपोषण के दायरे में आ रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण कुपोषण और कर्ज़ है।

कुपोषण से किसान परिवार कैसे लड़ें

अगर लोगों में जागरूकता आए तो वो अंतरवर्तीय खेती अपनाकर फलों के साथ मौसमी सब्जियों की खेती करें तो स्वयं कुपोषण से जंग लड़ सकते हैं। पोषाणिक बाग या अंतरवर्तीय खेती में महज डेढ़ कट्ठे के प्लॉट में पपीता, केला, अनार, अमरूद, सहजन, नींबू, आंवला आदि के पौधे लगाये जा सकते हैं। इन पौधों के बीच की दूरी में मौसमी सब्जी जैसे मूली, गाजर, चुकंदर, धनिया, पालक, मेथी, बैगन, टमाटर, गोभी, भिंडी, करेला, कद्दू, नेनूआ, परवल आदि की खेती पोषाणिक बाग में मौसम और आवश्यकता अनुसार की जा सकती है।

भारत में तीन फसल ऐसी हैं, जिससे हम कुपोषण से लड़ सकते हैं-

  • शकरकंद
  • क्विन्वा
  • मोरंगा की पत्ती

शकरकंद: महराजगंज के 210 किसानों ने की थी खेती



अफ्रीकी देश केन्या की सुनहरी शकरकंद के सहारे अब कुपोषण से जंग लड़ी जा सकती है। सुनहरी शकरकंद बच्चों को सेहतमंद और किसानों को दौलतमंद बनाएगी। उत्तर प्रदेश की बात करें तो कुछ समय पहले महराजगंज जिले के 210 किसानों ने किचेन गार्डेन में सुनहरी शकरकंद की खेती की थी। पौष्टिकता व आर्थिक रूप से लाभप्रद साबित होने के बाद अब जिले में 40 एकड़ में खेती की तैयारी शुरू हो गई है। नकदी फसल गन्ने के विकल्प के रूप में आरंभ हुई यह खेती किसानों की उन्नति का द्वार खोलने को तैयार है।

कम लागत अधिक मुनाफा

कृषि विज्ञान केंद्र, सीतापुर की गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. सौरभ बताती हैं, "देश में अब तक उत्पादित लाल और सफेद शकरकंद के मुकाबले सुनहरी शकरकंद में विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है। शकरकंद को स्वीट पोटैटो के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ऊर्जा का खजाना होता है। पोषक तत्वों के चलते स्वास्थ्य के लिहाज से इसके कई फायदे हैं। डायरिया से पीड़ित बच्चों के लिए भी यह फायदेमंद है।“ वह आगे कहती हैं, “अच्छी बात यह है कि किसान कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं, और साथ ही साथ खुद भी इसका उपयोग करके अपने आपको स्वस्थ रख सकते हैं क्योंकि इनको उगाने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है।"

शकरकंद ही क्यों

इसका जवाब देते हुए डॉ. सौरभ बताती हैं, "सामान्य तौर पर सुनहरी शकरकंद कुपोषण से जूझ रहे लोगों के लिए लाभकारी है। विटामिन ए की मात्रा अधिक होने के कारण लाल व सफेद शकरकंद के मुकाबले यह अधिक फायदेमंद है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी से ही लोग खासकर बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। सुनहरी शकरकंद कुपोषण के खिलाफ जंग में कारगर सिद्ध होगी। विशेषज्ञों ने ऐसे क्षेत्रों में शकरकंद लगाने की पेशकश इसलिए की क्योंकि नारंगी फ्लेस्ड मीठे आलू में बीटा कैरोटीन होता है।"

क्विनवा: बनाया जाता है आटा और दलिया



क्विनवा को चावल की भांति उबाल कर खाया जा सकता है। दोनों से आटा और दलिया बनाया जाता है। स्वादिष्ट नाश्ता, सूप, पूरी, खीर, लड्डू आदि कई मीठे और नमकीन व्यंजन बनाये जा सकते हैं। गेहूं व मक्का के आटे के साथ क्विनवा का आटा मिलाकर ब्रेड, बिस्किट, पास्ता आदि बनाये जाते हैं। यह इतना पौष्टिक खाद्यान्न है कि अंतरिक्षयात्री आदर्श खाद्य के रूप में इसे इस्तेमाल करते हैं। भारत में गेहूं के आटे की पौष्टिकता बढ़ाने में इसके दानों का उपयोग किया जा सकता है, जिससे कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है।

मोरिंगा (सहजन): भारत में यह एक लोकप्रिय सब्जी



डॉ सौरभ बताती हैं, "भारत में यह एक लोकप्रिय सब्जी है। वैसे तो इसकी उत्पत्ति भारत में ही हुई है, लेकिन औषधि के तौर पर इस्तेमाल होने की वजह से यह दूसरे देशों में भी पहुंच गया है। मोरिंगा अपने विविध गुणों, सर्वव्यापी स्वीकार्यता और आसानी से उग आने के लिए जाना जाता है। इसका पत्ता, फल और फूल सभी पोषक तत्वों से भरपूर हैं जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं।"

पौधे का सारा हिस्सा खाने के योग्य

वह आगे बताती हैं, "इसके पौधे का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है। पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती हैं और करी में भी इस्तेमाल की जाती हैं। इसके बीज से करीब 38-40 फीसदी नहीं सूखने वाला तेल पैदा होता है, जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल घड़ियों में भी किया जाता है। इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है। यह एक बहुत अच्छा विकल्प है कुपोषण दूर करने के लिए।"

कुछ और भी हैं विकल्प

डॉ. सौरभ आगे बताती हैं, "कुपोषण की कुछ हद तक समस्या मोटे अनाज भी कम कर सकते हैं। मोटे अनाजों की खासियत यह है कि वे कम पानी में पैदा होते हैं और खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ पशुचारा भी मुहैया कराते हैं। जहां एक किलो धान पैदा करने में पांच हजार लीटर पानी की खपत होती है, वहीं ज्वार कुछ सौ लीटर पानी में हो जाती है। ये फसलें मौसमी उतार-चढ़ाव भी आसानी से झेल लेती हैं। स्पष्ट है पानी की कमी और बढ़ते तापमान के कारण खाद्यान्न उत्पादन पर मंडराते संकट के दौर में मोटे अनाज उम्मीद की किरण जगाते हैं, क्योंकि इनकी खेती अधिकतर वर्षाधीन इलाकों में बिना उर्वरक-कीटनाशक के होती है।"

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