राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर नोक-झोंक

Dr SB MisraDr SB Misra   10 Feb 2017 10:19 PM GMT

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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर नोक-झोंकराष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए पीएम मोदी ने बजट के तमाम विषयों को छुआ और आलोचनाओं का उत्तर दिया।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बजट के तमाम विषयों को छुआ है और आलोचनाओं का उत्तर दिया है। उन बड़ी बातों से किसान का दर्द सामने नहीं आता। नौकरी पेशा लोगों के लिए सातवां वेतन मान तो लागू कर दिया और उनके घरों में नोट लहराने लगे लेकिन किसान की सब्जी जो वह मंडी में 100 रुपया पसेरी बेचता था आज 30 रुपया पसेरी बेचने पर मजबूर है। आवश्यकता थी गाँवों की फसलें जो खराब होने वाली या सड़ने वाली होती हैं उनके लिए फूडप्रोसेसिंग के प्लान्ट लगाने की लेकिन इसका प्रावधान बजट में नहीं दिखता।

किसान की जमीन भी सस्ती हो गई है, जो जमीन 25 लाख रुपया प्रति एकड़ बिकती थी अब 15 लाख रुपया प्रति एकड़ बिक रही है। मुसीबत में यदि जमीन बेचनी पड़े तो भी किसान को उचित दाम नहीं मिलेगा। शहर के लोगों के लिए जमीन खरीद कर फार्म और फार्महाउस बना कर व्यावसायिक खेती करना, सब्सिडी और फसल बीमा आदि का लाभ लेना आसान हो गया है। इसके विपरीत कालाधन वाले जो जमीन खरीदते थे वे और आसानी से खरीद सकेंगे। बैंक ब्याज भी कम होगा। आज किसानी की अपेक्षा मजदूरी करने में अधिक लाभ है।

यह बजट गाँवों की बातें तो काफी करता है लेकिन इसमें महात्मा गांधी के सपनों का ग्राम स्वराज नहीं है और ना ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्वदेशी सोच है। फिर भी जब दुनिया भर में मन्दी का दौर हो और भारत में भी नोटबन्दी के बाद विकास की गति धीमी हो रही हो तब थोड़ा इन्फलेशनरी (महंगाई लाने वाला) बजट एक मजबूरी बन जाती है। सरकार इसे किसानों का बजट भले ही कहे लेकिन यह मध्यम वर्ग और नौकरी पेशा वालों के लिए हितकारी बजट है।

बेहिसाब कमाई वाले डॉक्टर, इंजीनियर, सेठ साहूकार, सोने चांदी के व्यापारी, पुलिस और प्रशासन के अधिकारी, वकील, राजनेता व दूसरे तमाम लोग काले धन को सफेद करने के लिए किसान बनते रहेंगे, इन्हें अब सस्ती जमीन मिल जाएगी चाहे उस पर खेती करें या न करें। अपनी काली कमाई को खेती की कमाई बताकर अब भी सफेद कर सकेंगे क्योंकि खेती की कमाई कितनी भी हो टैक्स नहीं पड़ता। गाँवों के विकास का असली लाभ इन्हीं नकली किसानों को मिलेगा।

बजट में कर प्रणाली को तर्कसंगत बनाने का प्रयास किया गया है जिससे शहरी कम कमाई वालों का गुजारा आसान होगा और बड़ी कमाई करना आकर्षक होगा। जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने स्वतंत्र भारत में टैक्स की जो दरें लगाई थीं उनके अनुसार कुछ उद्यमियों और उद्योगपतियों पर तो 100 रुपया कमाने पर 90 रुपया तक टैक्स लग जाता था। ऐसे में लोगों ने अपनी आमदनी का खुलासा करना ही बन्द कर दिया और यहीं से विदेशों में काला धन जमा होने लगा। इसे वापस लाना मोदी की अगली चुनौती है।

बजट में आय के पक्ष में विदेशी निवेशकों पर निर्भरता अधिक है और गाँवों में श्रम द्वारा स्वदेशी पूंजी सृजन पर जोर नहीं। बचत से स्वदेशी पूंजी मिलती है लेकिन उसे आकर्षक नहीं बनाया गया है। कारें, हवाई यात्रा और होटल का खाना,ब्यूटी पार्लर महंगा हुआ या सस्ता इससे गरीब किसान का कुछ लेना देना नहीं है। बड़ी कम्पनियां किसानों से सीधे कच्चा माल कब खरीदेंगी जिससे उन्हें उचित मूल्य मिल सके, इसकी प्रतीक्षा है। छद्म किसान पूरा लाभ उठा सकेंगे। यदि हमारे देश का शिक्षित नौजवान गाँवों में कुटीर उद्योग लगाकर किसान से सीधे माल खरीद कर सामान तैयार करना चाहे तो उसके लिए कोई अतिरिक्त प्रोत्साहन नहीं है।

आज के अतिवृष्टि और अनावृष्टि के जमाने में बाढ़ और सूखा से निपटने और किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था करने के लिए नदियों को जोड़ने की बात प्राथमिकता के आधार पर होनी चाहिए थी। स्किल विकास की बात तो है लेकिन गाँव वालों को मनरेगा के माध्यम से वही फावड़ा चलाने का काम मिलेगा। बेहतर होता गाँवों में यंत्रों और मशीनों के कल पुर्जे बनाने का स्किल विकसित होता और उन्हें बनाया जाता फिर कस्बों या शहरों में असेम्बल किया जाता। देश की 70 प्रतिशत आबादी के लिए बजट में जो प्रावधान किया गया है उससे अधिक की अपेक्षा थी।

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