आप गुड़ खाते हैं ? ये ख़बर पढ़ लीजिए

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आप गुड़ खाते हैं ? ये ख़बर पढ़ लीजिएगुड़।

- डॉ. जितेंद्र सिंह

उपभोक्ता जागरूकता - भाग 1

चीनी तो गुणहीन है, गुड़ भी गुण से हीन।

रंगरूप की चाह ने, लिए सबै गुण छीन।।

अगर आप बाजार में मिलने वाले सफ़ेद चमकदार गुड़ को यह सोचकर खाते हैं कि यह स्वास्थ्यवर्धक है तो आपको सचेत हो जाना चाहिए। यद्यपि गुड़ चीनी का एक बेहतर विकल्प है परन्तु बाजार में मिलने वाले इस चमकदार गुड़ को खाकर आप को कोई स्वास्थ लाभ नही होने वाला, उल्टे कहीं आप कोई बीमारी न पाल बैठें।

दुनिया के कुल उत्पादन का 70% से अधिक गुड़ उत्पादन भारत में किया जाता है। परंपरागत रूप से तैयार होने वाले गुड़ में औषधीय गुण पाए जाते हैं इसलिए गुड़ को "औषधीय चीनी" यानी medicinal sugar के रूप में जाना जाता है। पौष्टिकता में गुड़ शहद की तरह ही गुणवान होता है। भारत मे गुड़ का उपयोग 3000 साल पहले से आयुर्वेदिक चिकित्सा में उल्लेखित है।

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गुड़ में सामान्य चीनी की तरह लगभग 70-80 प्रतिशत तक सुक्रोज होता है। गुड़ में 10-15 प्रतिशत मात्रा में ग्लूकोज एवम अन्य खनिज और विटामिन भी होते हैं। ये पोषक तत्व और विटामिन परिष्कृत चीनी में नहीं पाए जाते हैं। गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम और लोहे के साथ-साथ अतिसूक्ष्म मात्रा में और जस्ता और तांबा मिलता है। विटामिन में मुख्यरूप से फोलिक एसिड और बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन मिलते हैं।

मतलब यह ऊर्जा का एक अच्छा स्रोत तो है ही साथ ही पोषक तत्वों की कमी भी पूरी करता है। गुड़ का सेवन गठिया की बीमारी और पित्त के विकारों को रोकता है। गुड़ खाने से थकान से राहत मिलती है तथा यह मांसपेशियों, नसों और रक्त वाहिकाओं को आराम करने में मदद करता है। यह शरीर के रक्तचाप का रखरखाव करता है, हेमोग्लोबिन स्तर बढ़कर एनीमिया से बचाता है।

फिर गुड़ को गुणों से हीन कहने का क्या आशय है?

गुड़ बनाने के लिए गन्ने के रस को बड़े-बड़े कड़ाहों में तब तक उबाला जाता है जब तक इसमे से अधिकांश पानी वाष्पित न हो जाये और यह जमने की अवस्था मे न आ जाये। परंतु गन्ने के रस में कुछ अशुद्धियां और उबलने से हुई रासायनिक उत्परिवर्तन क्रियाओं के फलस्वरूप इसका रंग गहरा लाल या कालापन लिए हुए होता है। इसमे कुछ प्राकृतिक चीजें डालकर अशुध्दियों को निकाल लिया जाता है। औषधीय उपयोग में यही गुड़ काम मे लिया जाता है।

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परंतु अगर आप बाजार में मिलने वाले गुड़ को देखें तो यह आपको बिल्कुल साफ हल्का पीला, सफेद या कुछ लालिमा लिए हुए चमकदार रूप में मिलता है। गुड़ का यह रंग लाने के लिए इसमे बहुत से संश्लेषित रसायन मिलाये जाते हैं। चलिए जानते हैं कि गुड़ बनाते समय इसमे कौन कौन से पदार्थ मिलाये जाते हैं-

हाइड्रोसो यानि सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइट

इसे E222 नाम से खाद्य योजक (food additive) के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। यह खाद्य पदार्थ में बहुत ही कम मात्रा में मिलाये जाने हेतु अनुशंसित है। यह जीवाणु वृद्धि को रोकने के लिए एक संरक्षक के रूप में कार्य करता है। (खाद्य योजक (food additive) ऐसे पदार्थ होते हैं जिनको किसी खाद्य पदार्थ में भोजन की गंध, उसका स्‍वाद एवं अन्‍य गुण बढ़ाने के लिए उसमें मिलाया जाता है।)

आइये इस रसायन का मुख्य औद्योगिक उपयोग जानते हैं। यह रसायन वस्त्र उद्योग में सल्फर रंजकयुक्त एवं अन्य जल में घुलनशील रंजकों द्वारा वस्त्रों की रंगाई में उपयोग किया जाता है। इसके उपयोग से रंजक की सफाई बहुत आसानी से की जा सकती है। यह वस्त्रों में लगी अतिरिक्त डाई, अवशिष्ट ऑक्साइड, और अनपेक्षित रंग को खत्म करता है, जिससे कपड़े के रंग की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके अलावा इसका कागज़ उद्योग, पोलिमर उद्योग और फार्मासिटिकल उद्योग में उपयोग करने के साथ साथ मशीनों से रंग की सफाई करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।

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इस रसायन को गुड़ बनाते समय गन्ने के रस से मैल निकालने के लिए मिलाया जाता है। इसको मिलाने से गन्ने के रस की गंदगी छनकर उबलते रस के ऊपर आ जाती है जिसे आसानी से निथार लिया जाता है और इस तरह से साफ रंगत लिए हुए गुड़ का निर्माण होता है।

इसको खाने से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं - गुर्दा को नुक्सान, श्वास रोग (सांस लेने में कठिनाई), निम्न रक्तचाप, चक्कर आना, पेट में दर्द, उल्टी, और दस्त, गंभीर एलर्जी एवं दमा रोग आदि (दमा के रोगी के लिए सदमे, कोमा और मौत का कारण भी हो सकता है)। इसकी उपस्थिति विटामिन B-1 और विटामिन E को नष्ट कर देती है साथ ही यह रेगुलेटरी बॉडी द्वारा बच्चों के द्वारा सेवन के लिए अनुशंसित नहीं है।

सफोलाइट या सोडियम फॉर्मेल्डिहाइड सल्फोक्सीलेट

इस रसायन को मध्य भारत के गुड़ निर्माता पपड़ी, दक्षिण में रंगकट या रोंगालाइट के नाम से भी जानते हैं। यह रसायन भी हाइड्रोसो यानि सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइट की तरह एक ब्लीचिंग एजेंट है जिसका मुख्य कार्य रंग को उड़ाना होता है। इसका उपयोग टेक्सटाइल इंडस्ट्री में डिस्चार्ज प्रिंटिंग में किये जाता है। (डिस्चार्ज प्रिंटिंग में पूरे कपड़े के ऊपर रंग लगा कर रंगकट से प्रिंटिंग की जाती है जिससे रंगकट लगे स्थान का रंग उड़ जाता है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री के अलावा इसका उपयोग पोलिमर उद्योग और फार्मासिटिकल उद्योग में भी बहुतायत से उपयोग किया किया जाता है।

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इस रसायन का उपयोग खाद्य के रूप में अनुमत नही है। उत्तर भारत मे इसका उपयोग इंस्टेंट जलेबी बनाते समय मैदा में भी मिलाते हैं। बालों की डाई का रंग उड़ाने में भी इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाता है। गुड़ बनाते समय अगर इस रसायन का उपयोग किया जाये तो गुड का रंग साफ पीला-सफ़ेद जैसा हो जाता है। इसके साथ ही यह गुड़ को जमने के समय क्रिस्टल संरचना भी देता है जिससे गुड़ क्रिस्पी हो जाता है।

इसके सेवन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं – इसके विघटन से फॉर्मलाडिहाइड बनता है जिसको कैंसरकारी माना जाता है। इसके साथ ही हाइड्रोसो की तरह इसके भी दुष्प्रभाव होते हैं।

अन्य रसायन

गुड के निर्माण के लिए यद्यपि खाद्य गुणवत्ता युक्त कुछ रसायनों का प्रयोग एक तय मात्रा में अनुमत है परन्तु गुड़ बनाने वाले कारीगरों द्वारा इसका ज्ञान न होने के कारण इनका अनियंत्रित मात्रा में प्रयोग किया जाता है। जिससे इन रसायनों की गुड़ में अधिक मात्रा कई रोगों का कारण हो सकती है।

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गुड़ निर्माण में प्रयोग किये जाने वाले अन्य रसायनों में चूना, खाने का सोडा, वाशिंग सोडा, फिटकरी आदि का प्रयोग किया जाता है।

कई बार गुड को मनचाहा रंग देने के लिए इसमें रासायनिक रंग भी मिलाये जाते हैं। यह रासायनिक रंग मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होते हैं। इस रासायनिक रंगों से युक्त गुड़ के सेवन से कैंसर आदि रोग होने की सम्भावना से इंकार नही किया जा सकता है।

इसलिए अगली बार जब बाजार से गुड़ खरीद रहें हो तो जरा संभलकर...

अगर आपके पास कोई किसान मित्र है तो आपको चिंतित होने की कोई आवश्यकता नही है। आपके स्वास्थ्य की चिंता अपने मित्रों पर छोड़िए। वो आपको शुद्ध, स्वास्थ्यवर्धक, और पौष्टिक उत्पाद खुद ही उपलब्ध करवाएंगे।

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