सपा और कांग्रेस का गठबंधन सार्थक नहीं दिखता

Dr SB MisraDr SB Misra   17 Jan 2017 6:21 PM GMT

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सपा और कांग्रेस का गठबंधन सार्थक नहीं दिखताफोटो क्रिएशन: कार्तिकेय उपाध्याय।

डाॅ. एसबी मिश्रा

मुस्लिम समाज को हमेशा से ही मुलायम सिंह पर भरोसा रहा है। संघ परिवार ने तो उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहा था, शायद गोल टोपी पहनने के कारण। दूसरी तरफ़ नरसिंहराव के जमाने में बाबरी मस्जिद जिसे प्रायः ढांचा भी कहा जाता है उसके गिराए जाने के बाद मुस्लिम समाज कांग्रेस से दूर चला गया था। राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि मुसलमान आकर्षित हो गया हो। समाजवादी पार्टी टूटने के बाद मुस्लिम समाज भ्रम में पड़ सकता है कि भाजपा को कौन परास्त कर पाएगा। यदि स्थिति स्पष्ट न हुई तो प्रत्याशियों के आधार पर निर्णय करेंगे, अखिलेश को कोई लाभ मिलेगा इसमें सन्देह है।

एक समय था जब कांग्रेस पार्टी का वोट बैंक बहुत बड़ा था। एक तरफ़ ब्राह्मण और हरिजन तो साथ में मुस्लिम समुदाय। पिछड़ा वर्ग कांग्रेस के साथ कम ही रहा। धीरे-धीरे हरिजन वोट कांशीराम के साथ चला गया जब उन्होंने नारा दिया ‘वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा।’ यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था लेकिन बाकी के वोट बैंक अभी बचे थे। अस्सी के दशक में जन्मभूमि आन्दोलन के समय मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी मुसलमानों की पसंदीदा पार्टी बनी जब उन्होंने बाबरी मस्जिद के सन्दर्भ में कहा था ‘परिन्दा पर नहीं मार सकता।’

रामजन्म भूमि आन्दोलन में धीरे-धीरे कांग्रेस का ब्राह्मण वोट भारतीय जनता पार्टी में चला गया और कांग्रेस के पास कुछ नहीं बचा। भारतीय जनता पार्टी के पास कुछ पिछड़ी जातियों के लोग भी आए राम के नाम पर और बाद में अटल जी के कारण। अब कांग्रेस के पास कोई वोट बैंक नहीं है जिसे वह अखिलेश की समाजवादी पार्टी को ट्रांस्फर कर सकेगी। सच कहें तो मायावती के अलावा कोई भी नेता नहीं जो अपना वोट दूसरे दल को ट्रांस्फर कर सके।

निष्पक्ष भाव से देखा जाए तो अखिलेश यादव अच्छे वक्ता हैं, राजनीति की बेहतर समझ है, जनता उन्हें आदर और प्यार करती है, उन पर विश्वास करती है। यह बात राहुल गांधी के लिए नहीं कही जा सकती। एक बात सम्भव है कि अखिलेश के पास धन की कमी हो और कांग्रेस उसे पूरा कर सके और समाजवादी पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता बदले में कांग्रेस के काम आ सकें। यदि मुसलमानों के वोट तलाशने सपा कांग्रेस के पास जा रही हो तो निराशा ही हाथ लगेगी। उससे अधिक मुस्लिम वोट आज भी मुलायम सिंह बटोर सकते हैं।

इतना तो है कि उत्तर प्रदेश की जनता अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में दोबारा देखना चाहती है क्योंकि भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है जिससे तुलना करे और मायावती को अनेक बार जनता मुख्यमंत्री बना चुकी है। ऐसी हालत में कांग्रेस के लिए सपा का साथ तो तिनके का सहारा होगा लेकिन सपा के लिए कांग्रेस एक बोझ साबित होगी। समय बताएगा इस गठबंधन की सार्थकता को। निर्णय सार्थक हो भी सकता है यदि अखिलेश का दल भाजपा को हराता हुआ दिखे और भाजपा अपने मुख्यमंत्री का चेहरा छुपाए रखे। चुनाव बाद मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ भी पेश हो सकते हैं। मुस्लिम समाज ऐसा जुआं नहीं खेलेगा।

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