संवाद- लाखों रुपए कमाने वाले किसान की जगह लड़कियां शादी के लिए खोजती हैं शहरी लड़का

Devinder Sharma | Jul 17, 2018, 07:47 IST
हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दूसरे बहुत से राज्यों में ग्रामीण युवाओं की शादियां नहीं हो रही हैं। लड़कियां गांवों में शादी नहीं करना चाहतीं। यूरोप में भी यही समस्या है लेकिन वहां के टीवी चैनल ऐसे शो चला रहे हैं जिनके जरिए किसानों को उनके मनपसंद साथी खोजने में मदद मिलती है।
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93 साल के डी क्लार्क गिल्बर्ट दुनिया देख चुके हैं। वह यूरोपीय देश बेल्जियम के शहर मोंस से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव लेशोन्नेलेस में रहने वाले किसान हैं। जुलाई के पहले हफ्ते में मैं यूरोप की संक्षिप्त यात्रा पर था, इसी दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई।

गिल्बर्ट तीसरी पीढ़ी के किसान हैं, पर अब उन्होंने अपनी 50 हेक्टेयर जमीन लीज पर दे दी है। पहले वह इस पर गेहूं, आलू, चुकंदर, अलसी और मक्का उगाते थे। वह बताते हैं, "आज से 50 बरस पहले, यूरोप में ऑर्गेनिक खेती होती थी। फिर इसके बाद उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा। वास्तव में 1970 से 1990 के बीच का समय यूरोपियन खेती के लिए सबसे अच्छा समय था। उस समय खेती अधिक स्थायी थी और उससे वातावरण को बहुत कम नुकसान होता था। इसके बाद दौर आया जिसमें निर्यात को बढ़ावा दिया जाने लगा,और फिर इसके बाद सब कुछ गड़बड़ हो गया।"

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गिल्बर्ट बेल्जियम में किसान हैं पर अब खेती छोड़ चुके हैं। कहते हैं जब से उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया गया तब से खेती बर्बाद हो गई।

ऐसे समय में जब यूरोप में खेती संकट के दौर से गुजर रही है, बेल्जियम के लगभग हर हिस्से से खबरें आ रही थीं कि किसान अपने ग्राहकों को मुफ्त में आलू बांट रहे थे। मैंने गिल्बर्ट से पूछा, "क्या किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है।" उन्होंने कहा, "हां, अधिक उत्पादन होने की वजह से उपज के दाम बहुत कम हो गए हैं इसी वजह से किसान लगातार कर्ज में जी रहे हैं।" इस पर मैंने एक ऐसा सवाल पूछा जो कृषि क्षेत्र में चल रहे संकट से जुड़ा है। मैंने उनसे कहा, "क्या किसानों के बच्चों को शादी-ब्याह करने या अपने लिए जीवनसाथी खोजने में दिक्कत आ रही है?" अपने सवाल को समझाने के लिए मैंने गिल्बर्ट को बताया कि भारत के ग्रामीण इलाको में युवाओं के लिए पत्नी खोजना कितना मुश्किल काम साबित हो रहा है।

उदाहरण के लिए हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में अविवाहित लोगों की तादाद कई बरसों से लगातार बढ़ रही है। ऐसा वे स्वेच्छा से नहीं कर रहे हैं बल्कि वे लोग अपने लिए पत्नियां खोजने में नाकाम रहे हैं। शोध बताते हैं कि केरल जैसे दूर-दराज के इलाके से लड़कियां ब्याह कर लाई जा रही हैं। निम्न आय स्तर और काम करने की कठिन परिस्थितियां, मूलत: ये वे वजहें जिनकी वजह से लड़कियां ग्रामीण इलाकों में शादी के लिए राजी नहीं हो रही हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दूसरे बहुत से राज्यों का यही सच है। यहां तक कि हिमाचल के सेब उगाने वाले समृद्ध इलाके में भी मुझे बहुत कम ऐसी लड़कियां मिलीं जो गांवों में शादी करके बसना चाह रही हों।

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कुछ समय पहले जब मैं शिमला जिले के सेबों वाले इलाके में घूम रहा था मेरी मुलाकात कियारी गांव के राजेंद्र चौहान से हुई। यह गांव भारत के अमीर गांवों में से एक है। मुझे याद है मैंने उनसे पूछा था कि क्यों युवा शहरी जिंदगी की तरफ भाग रहे हैं। उन्होंने मुझे समझाया कि यह इस बात का संकेत है कि गांव में रहने वालों को अपने लड़कों की शादी के लिए योग्य लड़कियां नहीं मिल पा रही हैं। राजेंद्र चौहान ने कहा, " आप भले ही सेब की खेती करके एक करोड़ रुपए कमा रहे हो लेकिन लड़कियों को अब इसमें रुचि नहीं है। वे चाहती हैं कि उनका होने वाला पति शहर में नौकरी कर रहा हो भले ही उसका वेतन सेब की खेती से होने वाली कमाई का एक छोटा सा हिस्सा हो।" जब उनसे पूछा कि गांव में रहने वाली लड़कियों की क्या स्थिति है? वे कहां शादी करना पसंद करती हैं? जवाब था, "वे भी शहरी लड़का खोजती हैं।"

खैर, वापस गिल्बर्ट के पास लौटते हैं। गिल्बर्ट ने कुछ मिनट सोचा और बोले, "बेल्जियम तो नहीं लेकिन फ्रांस में यह एक बड़ी समस्या है। मैं कई बरसों से एक टीवी प्रोग्राम देखता आ रहा हूं, नाम है "लव इन द फील्ड" मतलब खेतों में प्यार। इसका मकसद था युवा किसानों के लिए सुयोग्य पत्नियां खोजना।" मेरे लिए यह एक नई बात थी। मैंने सोचा इस बारे में कुछ और जाना जाए। इसके कुछ दिन बाद मैं फ्रांस के लियोन शहर पहुंचा। वहां मैंने इस टीवी शो के बारे में लोगों से पूछना शुरू कर दिया कि क्या वे किसी ऐसे शो के बारे में जानते हैं या उन्होंने यह शो देखा है। एक युवा निक जैकब्स ने मुझे बताया, "मेरी मां कई बरसों से यह शो देख रही हैं आपको उनसे बात करनी चाहिए।"

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मैं उनसे बात तो नहीं कर पाया लेकिन मुझे जो जानकारी मिली वह बड़ी रोचक है। मेरे ख्याल से भारत में भी कुछ टीवी चैनल अगर चाहें तो ऐसा प्रोग्राम बना सकते हैं। दर्शकों को हिंदु-मुस्लिम की बहस में डुबोने से अच्छा है कि वे गांवों में रहने वाले युवा भारतीयों की गृहस्थी बसाने में उनकी मदद करें। "लव इन द फील्ड" एक साप्ताहिक टीवी शो है जिसे जुलाई 2006 में लॉन्च किया गया था और गर्मियों में इसका सफलतापूर्वक प्रसारण किया गया। शुरू में यह डेयरी किसानों पर केंद्रित रहा और इसे औसतन 45 लाख लोगों ने देखा।

हालांकि मैंने यह शो नहीं देखा है क्योंकि यह फ्रेंच भाषा में है लेकिन मुझे पता चला कि सामान्यत: इसमें 6 से 7 युवा किसान और 3 से 4 लड़कियां हिस्सा लेती हैं। इन लड़कियों को युवा किसानों के साथ कुछ दिन आकर रहने को आमंत्रित किया जाता है। यहां ये लड़कियां रोजमर्रा के काम का हिस्सा बनती हैं। अंत में उन पर यह फैसला छोड़ दिया जाता है कि क्या वे इन युवा किसानों में से किसी एक के साथ घर बसाना पसंद करेंगी। पहले 13 एपिसोड में कुल 157 युवाओं ने हिस्सा लिया इनमें 29 महिलाएं थीं।

शुरू में इस प्रोग्राम की काफी आलोचना हुई। पत्रकार इस बात से नाखुश थे कि इसमें किसानों को ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे कि वे जानवर हों। पर बाद में ब्रिटेन में भी इसी तर्ज पर एक शो लॉन्च हुआ, नाम रखा गया "फारमर्स वॉन्ट अ वाइफ"। हाल ही में, इसी तरह का एक शो कनाडा के शहर क्यूबेक में भी शुरू हुआ है।

मैं कह नहीं सकता कि भारत में टीवी चैनल "लव इन द फील्ड" की तर्ज पर कोई नया रियलिटी शो शुरू करना चाहेंगे या नहीं, लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर इसे ठीक से पेश किया जाए तो यह क्षेत्रीय चैनलों के लिए खूब टीआरपी बटोर सकता है।

(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं। उनका ट्विटर हैंडल है @Devinder_Sharma उनके सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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