नोट पर चोट से वोट प्रभावित होगा, कालाधन मरेगा नहीं

Dr SB Misra | Nov 20, 2016, 21:19 IST
Black Money
प्रधानमंत्री मोदी ने सोचा जरूर होगा कि काले नोट पर चोट करेंगे तो वह किधर भागेगा अथवा पहले से ही कहां सुरक्षित बैठा है। शायद यह ध्यान न रहा हो कि आर्थिक ऑपरेशन उसी दक्षता से होना चाहिए जैसे सेना ने किया था। कहीं ऐसा न हो शरीर के दाहिनी तरफ लीवर का ऑपरेशन करें और बाईं तरफ दिल में घाव हो जाए। वैसे कैंसर के ऑपरेशन में आस-पास कर मांस भी निकालना पड़ता है। बेइमानों के साथी संगी भी चपेट में आने ही चाहिए। मोदी को जाल बदलना होगा जिससे बड़ी मछलियां भी फंस सकें।

कैश में कालाधन एक अंश मात्र है असली खजाना तो कहीं और है जिसके विषय में शायद मोदी सोच रहे हैं जब कहते हैं उनके दिमाग में अनेक योजनाएं चल रहीं हैं। योजनाएं तो वह जानें लेकिन यदि कालेधन पर असली चोट करनी है तो राजनेताओं की खबर लेनी चाहिए थी। राजनेता ही देश-विदेश में कालाधन छुपाते घूमते हैं। यदि राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार 2005 के दायरे में ले आएं तो कालाधन मैदान में आ जाएगा। केवल राजनैतिक दलों का अरबों रुपया ही नहीं बल्कि उन लोगों के नाम भी सामने आ सकते हैं जो इनके दानदाता हैं। इन्हें दान में केवल कालाधन मिलता है इसलिए स्रोत तक पहुंच सकते थे लेकिन मोदी जी ऐसा करेंगे इसमें सन्देह है।

कालाधन का एक बड़ा अड्डा है सम्पत्ति में विशेषकर जमीन में। बड़े-बड़े इंजीनियर, वकील, आरटीओ, पुलिस अधिकारी, सोने-चांदी के व्यापारी और राजनेता गाँवों में जाकर खेती की जमीन खरीदते हैं और बैनामा में लिखते भी हैं खेती के लिए खरीद रहे हैं। उन जमीनों पर बड़े फार्म हाउस बनाते हैं जिनका उपयोग साल में एकाध बार रुतबा जमाने के लिए करते हैं। खेती की जमीन केवल किसान के पास होनी चाहिए जो वहां रहता और खेती करता है। ऐसे लोग भी भू-उपयोग बदलवाकर जमीन ले सकते हैं जो उस पर स्कूल, अस्पताल, कारखाना, या अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित करना चाहते हैं। बाकियों की जमीन सरकार उनका पैसा ब्याज सहित वापस कर दे और जमीन ले ले। भू-अधिग्रहण की समस्या ही नहीं रहेगी।

मोदी के ध्यान में बेनामी जमीन और बेनामी सम्पत्ति तो है लेकिन लेकिन बड़े भवन, कई-कई बिल्डिंगों के मालिक, सोने-चांदी का लॉकरों में अम्बार, एक-एक परिवार में बेतहाशा कीमत की गाड़ियां और फिर विदेशी बैंकों में जमा धन। इस सब पर प्रहार की प्राथमिकता क्या होगी, शायद सोचा होगा। शुरुआत कैश से हुई है कोई बात नहीं लेकिन यह कैश किधर भागेगा यह भी सोचना चाहिए था, एटीएम स्वीकार करेंगे या नहीं इसका प्रबन्ध पहले होना चाहिए था वर्ना नोटों का आकार समायोजित करना था। एक आदमी कई-कई बार नोट बदलेगा इसकी ओर भी ध्यान जाना था और मोबाइल एटीएम या मोबाइल बैंकों की व्यवस्था ध्यान में आनी चाहिए थी। आशा है अगले प्रहार के समय तैयारी पूरी होगी और मायावती को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि बिना तैयारी के नोटबन्दी कर दी।

जिनके पास बेतहाशा कालाधन है वे इसे बेरहमी से खर्च भी करते हैं। अभी बेंगलुरू में रेड्डी बंधुओं के कार्यक्रम में कितना खर्चा हुआ यह जानने की किसी आयकर वाले ने कोशिश नहीं की। यह वही रेड्डी बंधु हैं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी से खनन माफिया होने के कारण निकाला गया था। इस कार्यक्रम में भी अनेक भाजपाई मौजूद थे। क्या ऐसा कार्यक्रम किसी दूसरे देश में होता है, कम से कम चीन में तो नहीं। कालाधन के अड्डे बिना पता लगाए यदि प्रहार होगा तो बेगुनाहों को भी चोट लगेगी। शायद यही हो रहा है, गेहूं के साथ घुन पिस रहा है।

जहां कहीं भी काले धन का खुलकर उपयोग हुआ है वहां महंगाई बहुत तेज बढ़ी है। जब कई साल वहां रहकर 1970 में कनाडा से मैं भारत आया था तो 1500 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से कुछ जमीन खरीदी थी जिस पर गाँव का स्कूल आरम्भ किया था। अब वह जमीन 25 लाख रुपए एकड़ के दाम वाली हो गई है। जमीनों के दाम जिस गति से बढ़े शायद बाकी चीजों के दाम नहीं बढ़े। इस पक्ष पर रिसर्च करनी थी नोटबन्दी के पहले। मूल्य सूचकांक निकालने वाले लोग केवल सूचकांक न बताकर उसका कारण भी खोजें।

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