गांधी के बाद हम राम से विमुख होकर रावण संस्कृति अपनाते गए

Dr SB MisraDr SB Misra   25 March 2018 12:27 PM GMT

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गांधी के बाद हम राम से विमुख होकर रावण संस्कृति अपनाते गएगांधी के बाद हम राम से विमुख होकर रावण संस्कृति अपनाते गए

भारतीय जीवन से राम को निकालकर ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। जब कोई मरता है तो उसकी शव यात्रा में आज भी कहते हैं ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है’ और जीवित रहते हुए गाँवों के लोग आज भी कहते हैं ‘भइया राम राम’ या ‘रमई भाई जै राम जी की।’

महात्मा गांधी कहते थे ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीता राम’ और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था, ‘हे भारत माता! मुझे राम का वचन और कर्म देना’ और वह हर साल चित्रकूट में रामायण मेला लगवाते थे। महात्मा गांधी के अन्तिम शब्द ही थे ‘हे राम’ , लेकिन इसी साल (2016 ) के अवसर पर रावण दहन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जय श्री राम’ का उद्घोष कर दिया तो कोहराम मच गया। राम विमुख होने के कारण ही आज यौन उत्पीड़न, दलित शोषण, राजनीति में बन्दर बांट, दूसरों की सम्पत्ति हड़पने के काम हो रहे हैं।

बहस इस बात पर हो सकती है कि आप भगवान राम को मानने की अथवा दशरथनन्दन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम को मानने की बात कर रहे हैं। हम जटायु, शबरी और अजामिल के उद्धार की बात न करें लेकिन हम लंका जीतने के बाद विभीषण को और बाली को पराजित करके सुग्रीव को राजगद्दी सौंप देने की बात कर ही सकते हैं। हम राजा राम की अनुपस्थिति में भरत द्वारा निर्लिप्त भाव से राज्य चलाते रहने की बात तो कर ही सकते हैं। क्या प्रासंगिक नहीं हैं ये उदाहरण जब राजनीति में उठापटक मची हो, परिवार टूट रहे हों।

भारतीय जीवन से राम को निकालकर ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। जब कोई मरता है तो उसकी शव यात्रा में आज भी कहते हैं ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है’ और जीवित रहते हुए गाँवों के लोग आज भी कहते हैं ‘भइया राम राम’ या ‘रमई भाई जै राम जी की।’ आजकल कुछ लोग जै भीम कहकर अभिवादन करने लगे हैं लेकिन कबीर को सुनते हैं जो कहते हैं ‘रामहिं राम रटन लागी जिभिया’ इसलिए राम को जीवन से अलग नहीं कर सकते।

लोहिया ने कहा भी है कि राजनीति ‘अल्पकालिक धर्म है’ और ‘धर्म दीर्धकालिक राजनीति है।’ मोदी ने जै श्री राम कह दिया तो लोग इतना परेशान हो रहे हैं।

भारत के लोग मानते हैं कि ‘घट घट में राम बसे हैं’ और आप किसी जिले या इलाके में निकल जाइए आप को राम के नाम पर कोई गाँव या कोई आदमी जरूर मिलेगा। बाबरी मस्जिद की पीड़ा बताने वाले आज़म खां के शहर का नाम भी राम के नाम पर है।

समाजवादी पार्टी के नेता राम मनोहर लोहिया और बहुजन समाज पार्टी के नेता काशीराम थे, इन दलों के कार्यकर्ता भले ही राम का विरोध करें।

समाजवादी पार्टी के नेता राम मनोहर लोहिया और बहुजन समाज पार्टी के नेता काशीराम थे, इन दलों के कार्यकर्ता भले ही राम का विरोध करें। फिर भी एक बात हमारे मन में रहनी चाहिए कि राम नाम की माला जपने से नहीं राम के मार्ग पर चलने से काम बनेगा यानी अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और कमजोर का साथ।

मूल संविधान में राम और सीता की तस्वीरें थीं या नहीं यह गौड़ है, महत्व इस बात का है कि राम को मानते हुए उनके मार्ग पर चलते हुए क्या हम सेकुलर रह सकते हैं या नहीं। इसकी परीक्षा तब होगी जब राम राज्य जैसा शासन होगा जिसमें ‘दैहिक दैविक, भौतिक तापा, राम राज्य काहुहिं नहिं व्यापा।’ यदि ऐसा नहीं तो भगवान राम मन्दिरों में विराजमान रहेंगे लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों को समाज के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने की जरूरत रहेगी।

हमारे सामने ‘रामराज्य’ का आदर्श रखा जाता है। यदि शासन व्यवस्था मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्श पर नहीं होगी तो क्या रावण को आदर्श मानकर होगी। इस समय मोदी ही नहीं दुनिया भर के सामने सबसे बड़ी चुनौती है आतंकवाद और आतंकवादी राक्षस ही तो होते हैं उनका न धर्म है न ईमान। राम ने हस सम्बन्ध में कहा था ‘निश्चर हीन करौं महि, भुज उठाय प्रण कीन।’ मोदी के सामने यही आदर्श होना चाहिए कि वह जब तक आतंकवाद को समाप्त नहीं कर लेंगे दम नहीं भरेंगे।

हमारे देश का दुर्भाग्य रहा कि महात्मा गांधी के न रहने के बाद सत्ता की कमान उन लोगों के हाथ में चली गई जो कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड में भारतीय संस्कृति पढ़े थे लेकिन भारत तो गाँवों में रहता है जहां वे कभी रहे नहीं थे। ऐसे लोग जानते ही नहीं थे कि गाँव के लोगों के लिए राम का कितना महत्व है और रामराज्य की उनकी क्या कल्पना है। उनसे तो कहीं अधिक रहीम, रसखान और कबीर जानते थे। राम का विरोध करके हमें वही मिलेगा जो 70 साल से मिल रहा है।

नोट- उपरोक्त लेख- मूलरुप से वर्ष 2016 में दशहरा के अवसर पर प्रकाशित लेख का अंश

  

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