आर्थिक पैकेज में गांव, गरीब, किसान, मज़दूर को क्या मिला?

कोरोना संकट से लड़ने के लिए केन्द्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इस पैकेज में किसानों, गरीबों, प्रवासी मज़दूरों, श्रमिकों व अन्य कमज़ोर वर्ग के लोगों का विशेष ध्यान रखने के दावे किए गए हैं। इस पैकेज के माध्यम से मंद पड़ती अर्थव्यवस्था को भी गति मिलने का दावा किया गया है।

Pushpendra SinghPushpendra Singh   22 May 2020 6:30 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
farmers in lockdown, package for farmers, लॉकडाउन में किसान, किसानों के लिए आर्थिक पैकेज

कोरोना संकट से लड़ने के लिए केन्द्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इस पैकेज में किसानों, गरीबों, प्रवासी मज़दूरों, श्रमिकों व अन्य कमज़ोर वर्ग के लोगों का विशेष ध्यान रखने के दावे किए गए हैं। इस पैकेज के माध्यम से मंद पड़ती अर्थव्यवस्था को भी गति मिलने का दावा किया गया है। सबसे पहले 26 मार्च को 1.70 लाख करोड़ रुपए के एक राहत पैकेज की घोषणा की गई। इसमें 80 करोड़ लाभार्थियों को तीन माह तक पांच किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल तथा एक किलो दाल प्रति परिवार देने, 20 करोड़ महिलाओं के जन-धन खातों में तीन माह तक 500 रुपये प्रति माह देने, तीन करोड़ गरीब बुजुर्गों, विधवाओं, दिव्यांगों के खातों में एक-एक हज़ार रुपए देने, पीएम-किसान योजना के तहत दो-दो हज़ार रुपए की एक किश्त लगभग नौ करोड़ किसानों को देने की घोषणा की गई।

आठ करोड़ गरीब परिवारों को तीन माह तक एक गैस सिलिंडर प्रति माह देने का प्रावधान भी किया गया। इसके अलावा मनरेगा योजना के तहत मज़दूरी को 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए प्रति दिन कर दिया गया। इस पैकेज में अतिरिक्त खाद्यान्नों का मूल्य भी जोड़ दें तो भी केवल एक लाख करोड़ रुपये की ही इस वित्त वर्ष के बजट से अतिरिक्त घोषणाएं थीं।

14 मई को सरकार ने फिर एक बार किसानों, श्रमिकों, प्रवासी मजदूरों के लिए अनेक घोषणाएं की। इनमें प्रवासी श्रमिकों के पलायन और कठिन हालात को देखते हुए दो महीनों तक इन लोगों को 8 लाख टन खाद्यान्न व 50,000 टन चना वितरण करने की घोषणा की। इसमें उन लोगों को भी शामिल किया गया जिनके पास राशनकार्ड नहीं है। इसमें 3,500 करोड़ रुपए के व्यय को भारत सरकार द्वारा वहन करने की बात कही गई।

यह भी पढ़ें- किसानों को संकट से उबारने के लिए किसान शक्ति संघ के 20 सुझाव

सारे देश में एक राष्ट्र, एक राशनकार्ड के व्यवस्थागत सुधार को मार्च 2021 तक लागू करने की घोषणा की गई। इससे कोई भी लाभार्थी अपने हिस्से के राशन को देश में कहीं से भी ले सकता है। यह हमारे जन वितरण प्रणाली में एक बहुत बड़ा सुधार होगा जिससे एक ही स्थान से राशन लेने की बाध्यता समाप्त हो जाएगी। परन्तु इस वक्त आधार कार्ड को ही राशनकार्ड का दर्जा देकर खाद्यान्न आवंटन किया जा सकता है। किसानों को खरीफ की फसलों की बुवाई हेतु ऋण उपलब्ध करवाने हेतु नाबार्ड के माध्यम से 30,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि उपलब्ध करवाई जाएगी।

इस योजना में तीन करोड़ लघु और सीमांत किसानों लाभ होने की बात कही गई। पीएम-किसान योजना में शामिल सभी किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा दी जाएगी, जिससे 2.5 करोड़ किसानों को दो लाख करोड़ रुपए का रियायती ऋण मिलेगा। इसमें मछुआरों और पशुपालक किसानों को भी शामिल किया जाएगा। इस वित्त वर्ष के बजट में कृषि क्षेत्र में 15 लाख करोड़ रुपए ऋण देने का प्रावधान पहले ही है। उपरोक्त ऋण इस प्रावधान के अतिरिक्त है या इसी का हिस्सा है यह स्पष्ट नहीं है।

15 मई को कृषि, मत्स्यपालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों के लिए आधारभूत ढांचे हेतु एक लाख करोड़ रुपए के कोष बनाने की घोषणा की गई। मत्स्य संपदा योजना के तहत 20,000 करोड़ रुपए, पशु रोग नियंत्रण व टीकाकरण हेतु 13,343 करोड़ रुपए, पशुपालन के आधारभूत ढांचे के लिए 15,000 करोड़ रुपए की घोषणाएं की गई। इसके अलावा औषधीय खेती, मधुमक्खी पालन और फल-सब्ज़ियों की खेती करने वाले किसानों के लिए भी कुल 5,000 करोड़ का प्रावधान किया गया।

किसानों को अपनी उपज के लाभकारी मूल्य प्राप्ति हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की भी गई। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज़ सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थों को नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा की। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी परिस्थिति के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में भी सुधार करते हुए किसानों को मंडियों के अलावा भी अपने कृषि उत्पादों को कहीं भी बेचने की छूट प्रदान की जाएगी। इससे किसान अपनी उपज को जहाँ उसे उचित और लाभकारी मूल्य मिले वहाँ बेच सकता है।

कानून बनाकर कृषि जिंसों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार भी सुगम एवं निर्बाध बनाया जाएगा। इसके अलावा कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के माध्यम से बेचने की सुविधा को और बेहतर बनाया जाएगा। सरकार ऐसी कानूनी संरचना बनाएगी जिससे किसानों को अपनी उपज सीधे थोक व खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों, उद्योगों आदि को बेचने की सुविधा मिले।

यह भी पढ़ें- 'कोरोना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे बचाएं'

परन्तु इन तमाम घोषणाओं के बावजूद ग्रामीण भारत की तात्कालिक व वास्तविक मांगों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। कृषि क्षेत्र में सुधार की घोषणाओं का स्वागत है परन्तु इनका लाभ दीर्घकालिक होगा जबकि इस वक्त त्वरित राहत की सख्त आवश्यकता है। अभी तक 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में से गांव, गरीब, किसान, मज़दूर को वास्तविक धनराशि कुछ खास नहीं मिली है। इस राहत को 'ऊंट के मुहं में जीरा' कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। इस पैकेज में अधिकतर प्रस्ताव ऋण के रूप में हैं, ना कि सहायता के रूप में।

कुछ प्रस्तावों को पहले ही बजट में शामिल कर लिया गया था, अतः उनकी केवल पुनः घोषणा की गई है, जिसमें नया कुछ नहीं है। लॉकडाउन के कारण किसान की आमदनी गिर गई है। फल, फूल, सब्ज़ियों, दुग्ध उत्पादक, पशुपालक, मुर्गीपालक, मत्स्यपालक किसानों को बहुत नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई की दिशा में कोई ठोस धनराशि आवंटित करनी चाहिए। गन्ना किसानों का बकाया भुगतान भी तत्काल किया जाना चाहिए।

इस संकट में रबी की सारी फसलों की पूरी खरीद सुनिश्चित कर एमएसपी के ऊपर 250 से 500 रुपए प्रति कुंतल का बोनस देना उचित होगा। भविष्य में सभी फसलों की एमएसपी सम्पूर्ण लागत सी-2 के डेढ़ गुने के आधार पर घोषित करनी चाहिए, जैसा सरकार का वायदा था। पीएम-किसान योजना की राशि को 6,000 रुपए से बढ़ाकर 24,000 रुपए प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए। इसी प्रकार सभी 38 करोड़ जनधन खातों में तीन माह तक एक-एक हज़ार रुपए प्रति माह भेजना इस कठिन वक्त में उचित होगा। किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट दोगुनी और इस पर ब्याज दर एक प्रतिशत कर दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल धन-प्रवाह बढ़ जाएगा।

यह भी पढ़ें- 'कोरोना संकट से चीनी की मांग घटी, इस वर्ष गन्ने का रकबा कम करना किसान हित में होगा'

ग्रामीण क्षेत्रों की ओर वापस पलायन होने से अब यहां लगभग 75 प्रतिशत आबादी हो गई है जिसके लिए रोजगार का इंतज़ाम करना होगा। इन अतिरिक्त श्रमिकों को मनरेगा योजना के तहत कृषि कार्यों में भी लगाया जा सकता है। मनरेगा योजना का बजट इस वर्ष 61,500 करोड़ रुपए है, इसे भी 40,000 करोड़ रुपए और बढ़ा दिया गया है जो स्वागत योग्य कदम है।

पीएम ग्रामीण सड़क योजना का बजट 19,500 करोड़ रुपए है। पीएम ग्रामीण आवास योजना का बजट भी इतना ही है। इन दोनों योजनाओं का बजट दोगुना कर देना चाहिए जिससे गांवों में पलायन कर चुके सभी श्रमिकों को इन योजनाओं के तहत वहीं रोजगार मिल सके। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मिलने में आसानी होगी और अतिरिक्त धन-प्रवाह से देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल क्रय-शक्ति बढ़ेगी और खर्च बढ़ने से मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने से बिक्री बढ़ेगी, उत्पादन बढ़गा तो रोजगार भी बढ़ेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में इस धन के अतिरिक्त प्रवाह का अर्थव्यवस्था पर एक गुणक प्रभाव (मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट) भी पड़ेगा जिससे अर्थव्यवस्था मंदी से जल्द बाहर निकल सकती है। यानी इस घोर संकट काल में गांव ही देश को बचा सकते हैं। परन्तु अभी तो ग्रामीण भारत यही पूछ रहा है कि 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में से उसके हिस्से में आखिर क्या आया?

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.